कम शब्दों में अपनी बात कहने का कौशल विकसित करें कला पत्रकार

मीडिया            Dec 18, 2018


मल्हार मीडिया भोपाल।
आज सांस्कृतिक आयोजनों की संख्या बढ़ी है, लेकिन समाचार पत्रों में स्थान की कमी है। ऐसे में कला पत्रकार कम शब्दों में अपनी बात कहने का कौशल विक सित करें। इससे समाचारों में कसावट के साथ उसकी पठनीयता भी बढ़ेगी। यह कहना है वरिष्ठ कला समीक्षक एवं साहित्यकार डॉ. सुशील त्रिवेदी का। वे आज माधवराव सप्रे समाचार पत्र संग्रहालय द्वारा आयोजित कला-संस्कृति पत्रकारिता पर सृजन-संवाद में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे। संग्रहालय के सभागार में आयोजित इस संवाद में विषय विशेषज्ञों तथा कला पत्रकार एवं पत्रकारिता के बीच विचार विनिमय हुआ।

मुख्य वक्ता डॉ. सुशील त्रिवेदी ने पत्रकारों से कहा कि वे विषय की समझ के साथ ही विभिन्न संदर्भों को भी बढ़ाएं। इससे उन्हें रिपोर्टिंग या साक्षात्कार के पहले तैयारी करने में मदद मिलेगी। उन्होंने आगे कहा कि जिस तरह रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और न्यूक्लीयर क्रांति ने संस्कृति को बदल दिया था उसके बाद आई सूचना क्रांति ने भी सब कुछ बदल कर रख दिया है। चौथी औद्योगिक क्रांति के बाद तो इंसान भी बदल जाएगा और उसका स्थान मशीनें ले लेंगी ऐसे समय में केवल कलात्मक चेतना ही हमको बचा पाएगी। इसलिए हमें अपनी कल्पनाशीलता, नवाचारिता और सृजनात्मकता को बढ़ाना होगा।

वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार युगेश शर्मा ने कहा कि कला पत्रकारिता नई विधा नहीं है। जब से आयोजन होते आ रहे हैं तभी से किसी न किसी रूप में यह विद्यमान है। आज इसका स्वरूप भले ही बदला है। उन्होंने कहा कि कला पत्रकार सहज और सरल शब्दावली के साथ ही देशज शब्दों का प्रयोग समाचारों में करेगा तो उसका सौंदर्य बढ़ेगा। पाठक भी सहजता से समझ सकेगा। वरिष्ठ रंगकर्मी और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र दिल्ली के मानद सदस्य सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि समीक्षा और रिपोर्टिग दोनों में अंतर है। कला पत्रकार जिस विधा की रिपोर्टिंग कर रहे हैं उसकी पूर्व तैयारी के साथ ही शब्द जंजाल से बचें। यदि समाचारों में तथ्यात्मकता होगी तो उसकी गुणवत्ता बनी रहेगी। राज्य नाट्य विद्यालय के निदेशक आलोक चटर्जी ने कहा कि कार्यक्रमों की समीक्षा के मापदंड होने चाहिए। उन्होंने खासतौर पर नाटकों की रिपोर्टिंग के लिए सलाह दी कि एक रिपोर्टर संभव हो सके तो नाटकों की रिहर्सल देखें इससे उन्हें समाचार या समीक्षा लिखने में मदद मिलेगी। श्री चटर्जी ने समाचार पत्रों में संपादक की कम होती भूमिका पर भी दु:ख जताया। कहानीकार एवं दूरदर्शन के पूर्व निदेशक शशांक ने कहा कि महानगरों की अपेक्षा छोटी शहरों या कस्बों के अखबारों में कला-संस्कृति की खबरों को ज्यादा स्पेस मिलता है। उन्होंने आयोजकों से भी आग्रह किया कि अपने कार्यक्रम का साहित्य पत्रकारों को उपलब्ध करायें तो दोनों के लिए ही सुविधाजनक होता है। सिने समीक्षक सुनील मिश्र ने कहा कि यह सही है कि आज समाचार पत्रों में जगह की कमी है, लेकिन पत्रकार संपादकों से ज्यादा स्थान की मांग कर सकते हैं। इसके लिए उन्हें उस कार्यक्रम का महत्व संपादक को बताना आना चाहिए। जबलपुर से आए रंगकर्मी हिमांशु राय ने कहा कि केवल प्रशंसा ही नहीं लिखी जाए बल्कि उस विधा के सभी पक्षों को उभारा जाना चाहिए। जबलपुर से ही आए रंग निदेशक बसंत काशीकर ने कहा कि सही समीक्षा से कलाकार को अपने भीतर सुधार का अवसर मिलता है उन्होंने आयोजकों से भी कहा कि अपने काम को इतना बड़ा बनाएं कि अखबार उसे पर्याप्त जगह देने को विवश हो। संगीतकार श्याम मुंशी ने कहा कि कला पत्रकार विषय की सही और सटीक जानकारी हासिल करें। इंदौर से आए वरिष्ठ पत्रकार रवीन्द्र शुक्ल ने समीक्षाओं पर एकाग्र गोष्ठी किए जाने का सुझाव दिया। ऋतु शर्मा ने कला संस्कृति की पत्रकारिता विशद् विषय है। कला पत्रकार तथ्यात्मक जानकारी जुटाने का काम करें। संस्कृतिकर्मी आनंद सिन्हा ने भी पूर्व तैयारी और विषय की समझ बढ़ाने की सलाह पत्रकारों को दी। आरंभ में पहले सत्र का संचालन कर रहे कला पत्रकार एवं संपादक विनय उपाध्याय ने कहा कि आज पत्रकारों पर कई तरह के दबाब हैं लेकिन फिर भी कला रिपोर्टिंग में गंभीरता की भी दरकार है। समाचार पत्रों में कला की रिपोर्टिंग तो बहुत है लेकिन गुणवत्ता खारिज है।

अंत में हस्तक्षेप करते हुए कला पत्रकार दीपक पगारे ने कहा कि कला पत्रकार जटिल स्थितियों में रिपोर्टिंग कर रहा है ऐसे में आयोजक संस्थाएं उससे केवल समाचारों की ही अपेक्षा नहीं करें बल्कि उसे पर्याप्त महत्व और सहयोग भी दें। ममता यादव ने भी कहा कि रिपोर्टिंग में कौन सी बात उठानी चाहिए इस बारे में भी कला जगत की विभूतियां मार्गदर्शन दें। कला पत्रकार प्रिंस गाबा ने भी कहा कि समाचारों में हमेशा सुधार की गुंजाइश होती है ऐसे में वरिष्ठों का मार्गदर्शन कला पत्रकार के लिए सहायक होता है। सप्रे संग्रहालय के संस्थापक संयोजक विजयदत्त श्रीधर ने आयोजन का उद्येश्य बताते हुए कहा कि इसके पीछे विषय विशेषज्ञ तथा कला पत्रकारों के बीच आपसी संवाद स्थापित कर कला समाचार कैसे प्रभावी हो इस दिशा में वातावरण तैयार करने की मंशा है। उन्होंने कहा कि यहां जो सुझाव आएं हैं उस बारे में संपादकों तथा आयोजक संस्थाओं को पत्र लिखकर आग्रह किया जाएगा कि इन पर अमल करें। आरंभ में संग्रहालय की निदेशक डा. मंगला अनुजा ने अतिथियों का स्वागत् किया। कार्यक्रम में शहर के प्रबुद्धजन तथा कला प्रेमी और पत्रकारिता के विद्यार्थी मौजूद रहे।

इस अवसर पर लखनऊ से आई सुभाषा मिश्रा ने समाचार पत्र 'ग्रामवासी' की 1924 से 1984 तक की प्रतियां तथा उन्हें रखने के लिए बुकसेल्फ भी भेंट किया।

 



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