अमित जी इतनी बेबाकी से किसी राजनेता ने कलमघसीटों को उनकी असलियत नहीं बताई

मीडिया            Aug 20, 2017


अरूण दीक्षित।

अमित भाई
जय श्री कृष्ण...
आज आपकी (20 अगस्त को) भोपाल यात्रा का तीसरा दिन है। इस बात का भरोसा आप कल ही दिला चुके हैं कि भोपाल में आप चौहान बंधुओं की "सेवा" से बहुत खुश हैं,इसलिए आज मैं आपसे यह नहीं पूछूंगा कि आपकी रात कैसी गुजरी?नींद तो ठीक से आयी ?कोई परेशानी तो नही हुई?सब कुछ बहुत अच्छा है और आप बहुत खुश हैं यही बताने के लिये आपने हमारे चौहान बंधुओं को 100 में से पूरे 100 नबंर दिए हैं!आप मोटी संटी बाले हेडमास्टर हैं जरूर लेकिन आप का दिल मास्टरों की तरह छोटा नही है!आपका खुला मूल्यांकन देख कर मुझे अपने स्कूल बाले बड़े पंडित जी (हम गांव में अपने हेड मास्टर को बड़े पंडित जी ही कहते थे) की बहुत याद आयी!

मन में बार बार यही ख्याल आया कि काश आप हमारे भी हेड मास्टर रहे होते? क्योंकि हमारे पंडित जी स्कूल की कक्षा में तो हमें जमकर धुनते ही थे साथ में घर आकर अम्मा से भी यह काम करबाते थे।एक वे थे और एक आप हैं !वे पूरे गांव में ढ़िढोरा पीट देते थे कि ये लड़का नालायक है । और आप ,आपने कक्षा के भीतर किसे ठोका, किसे मुर्गा बनाया,किसकी उंगलियां डस्टर से कूटी -किसी को कानों कान पता नही चलने दिया ! इतना ही नहीं बाहर आकर आपने अपने विद्यार्थियों को 100 में से 100 नबंर देकर हम अखबारनबीसों एक झटके में मूर्ख भी साबित कर दिया !!

अमित भाई सच कहें तो हम आपकी इस योग्यता के कायल हो गए हैं। आज तक हमने इतना क्षमता और उर्जाबान हेडमास्टर नही देखा था! पिछले 48 घंटे में आप हजारों लोगों से मिले हैं। जिनमें समाज के हर वर्ग के लोग शामिल हैं। लेकिन जिस तरह आपने हम कलम घसीटों को यह प्रमाण के साथ बताया कि हम "मूर्ख" हैं -वह सच में अद्भुत था। हमें आजतक किसी राजनेता ने इतनी बेबाकी से असलियत नहीं बताई थी !!

अमित जी हम आपके सामने उपस्थित होकर आपके इस अहसान का धन्यवाद ज्ञापित करना चाहते थे। लेकिन हमारा दुर्भाग्य कि हम "चुनिंदा" में नहीं हैं इसलिये खुला खेल फर्रुखाबादी खेलना पड़ रहा है!

हम आपको बताएं कि हमें इससे पहले कई बार यह इलहाम हुआ था कि हम " मूर्ख"बन रहे हैं। लेकिन तब हमें किसी ने आपकी तरह बताया नहीं था। हमसे सबसे पहले तब मूर्ख बने थे जब कुछ डंपर अचानक चर्चा में आ गए थे।डंपरों के सम्बंध में लोकायुक्त महोदय की अनुशंसा को मानकर भी हमने अपनी मूर्खता साबित की थी।

यही नहीं दर्जनों बलि लेने वाले व्यापम महाघोटाले के समय भी हम इसी श्रेणी में थे। पहले छोटे तोते और फिर सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बड़े तोते ने भी हमें यही अहसास कराया कि हम बज्र मूर्ख हैं। इस दौरान चाहे मध्यप्रदेश में अवैध खनन का मामला हो या फिर बहुचर्चित नर्मदा यात्रा हुई हो हम मूर्ख बनते ही रहे।नर्मदा के किनारे खाली पड़े करोड़ों गढ्ढे हों या फिर जगह जगह सड़ रही प्याज हो ,सब ने हमें तो मूर्ख सावित किया ही है।

एक बात और अमित जी हम सबसे बड़े मूर्ख तो तब बने थे जब हमने आपसे 100 में से 100 नम्बर पाने बाले , हमारे बच्चों के मामा भाई शिवराज सिंह द्वारा अपनी फूलों की खेती से होने बाली लाखों की आय का फार्मूला आंख बंद करके स्वीकार किया था। आप को यकीन न हो तो आप विदिशा जाकर शिवराज जी के खेत देख सकते हैं। खेतों को देखने के बाद आप यह यकीन के साथ कह सकेंगे कि हम आपके द्वारा निर्धारित श्रेणी से भी उच्च श्रेणी के मूर्ख हैं।
अमित जी ऐसे हजारों उदाहरण आपको मिल जाएंगे जो यह बताएंगे कि हम मूर्ख के अलावा कुछ हो ही नहीं सकते !!!?

आपने तो अपनी बैठक की सूचना के आधार पर ही हमें मूर्ख निरूपित किया, जरा गौर से देखेंगे तो पाएंगे कि हम तो मैदान में खुली प्याज की तरह पड़ी सूचनाओं के मामले में भी मूर्ख ही हैं।अपनी मूर्खता का एक और प्रमाण हम आपको दे रहे हैं-हमने आपके द्वारा चौहान बंधुओं को 100 में से 100 नंबर देने के ऎलान पर वैसे ही भरोसा किया है जैसे आप उन दोनों पर करते हो!

हमारी मूर्खताओं के प्रमाण तो इतने हैं कि आप गिनते गिनते थक जाओगे! इसलिये अब ज्यादा न गिनाते हुए इतना ही कहूंगा कि आप अमित जी भोपाल आते रहिये और हमें हमारी मूर्खता का भान कराते रहिये !
धन्यवाद!
अगर कोई बात आपको अच्छी न लगी हो तो उसके लिये मूर्ख मान कर क्षमा कर दीजियेगा।
एक बार फिर...
जय श्री कृष्ण !!!!!!

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और नवभारत टाईम्स के भोपाल ब्यूरोचीफ हैं। यह टिप्पणी उनके फेसबुक वॉल से ली गई है।



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