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आप टीवी एंकर हैं, अपनी सीमा समझें

मीडिया            Oct 15, 2017


राकेश दुबे।
टीवी शो के दौरान एंकरों की भूमिका देखकर आम लोगों को यह एहसास होने लगता है कि एंकर ही सर्वज्ञाता है, इसे चीखने चिल्लाने की छूट है। कई बार तो एंकर अपनी आवाज और बॉडी लेंग्वेज से उस मेहमान पर हावी होने लगते हैं जिसे उन्होंने चर्चा के लिए बुलाया होता है। ऐसे एंकरों को पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने न केवल नसीहत दी,बल्कि ऐसे कृत्य को आपतिजनक भी करार दिया।

हुआ यूँ पूर्व राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने पद छोड़ने के बाद 12 अक्‍टूबर को पहली बार किसी टीवी चैनल को इंटरव्‍यू दिया। इंडिया टुडे पर राजदीप सरदेसाई ने प्रणब दा का इंटरव्‍यू लिया। पूर्व राष्‍ट्रपति शांति से राजदीप के सवालों का जवाब देते रहे। बीच में कई बार राजदीप ने आदतन प्रणब दा को टोका तो प्रणब मुखर्जी नाराज हो गए।

प्रणब दा ने राजदीप को नसीहत देते हुए कहा मुझे अपनी बात पूरी करने दीजिए। आप ये आदत मत रखिए। मुझे यह बताते हुए दुख हो रहा कि आप एक पूर्व राष्‍ट्रपति को टोक रहे हैं। कृपया जरूरी शिष्‍टाचार बनाए रखें। टोकाटाकी न करें।’ इस पर राजदीप ने कहा, ‘जी ठीक है।’ प्रणब दा ने इसके बाद राजदीप से कहा,‘मैं टीवी पर आने के लिए बेचैन नहीं रहता हूं। आपने मुझे यहां बुलाया है। पहली बात तो आप अपनी आवाज ऊंची नहीं कर सकते हैं। मैं सवाल का जवाब दे रहा हूं।’ इस पर राजदीप ने माफी मांगते हुए खेद प्रकट किया और इंटरव्‍यू को आगे बढ़ाया।

राजदीप सरदेसाई ने माफ़ी मांग ली, क्योंकि सामने प्रणब दा जैसी शख्सियत थी और कोई और होता तो राजदीप सरदेसाई तो क्या किसी छोटे चैनल का एंकर भी माफ़ी नहीं मांगता। प्रणब मुखर्जी अपने संसदीय जीवन में भी बेहद अनुशासित और कड़ाई पसंद राजनेता रहे हैं। राजदीप सरदेसाई को प्रणब दा से डांट खाते देख ट्विटर यूजर्स ने इसका काफी आनन्द लिया। इन दिनों यह आम बात होती जा रही है कि टीवी एंकर्स खुद को सर्व ज्ञाता समझने लगे हैं, वे कई अपनी सीमाएं पार कर जाते हैं।

आम राय है कि, ‘पूर्व राष्‍ट्रपति ने राजदीप को सही जवाब दिया। सच तो यह जिनके भीतर पत्रकारीय गुणों की कमी है, वे ही साक्षत्कार के दौरान सामने वाले पर हावी होने की कोशिश करते हैं या लेखन के दौरान अपनी राय बेवजह सामने वाले के मुंह से कहलाने की कोशिश करते है।

ऐसे कृत्यों सम्पूर्ण पत्रकार जगत की छबि गलत निर्मित होती है। पत्रकारों का काम तथ्यों की जाँच के लिए प्रश्न पूछना है, सौम्यता से। वे पुलिस या न्यायालय नहीं है, जो तथ्यों को उगलवाने के लिए आक्रामक हों या फैसला करें। सारे पत्रकारों को अपनी पेशेगत ईमानदारी का निर्वहन सज्जनता और सौम्यता से करना चाहिए। अभी भारत के मीडिया के ऐसे कृत्यों से जग हंसाई होती है।

 


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