विकास की संभावनाओं से लबरेज है बुंदेलखंड,गंभीर अध्येता अयोध्याप्रसाद गुप्त कुमुद का हुआ अभिनंदन

राज्य, राष्ट्रीय            Jul 20, 2019


मल्हार मीडिया भोपाल।
बुंदेलखंड को समझने के लिए जरूरी है उसे समग्रता में समझा जाए तभी उसकी संस्कृति को सही तरह से समझा जाएगा। राजस्व की दृष्टि से देखा जाए तो यह अंचल एक सशक्त अंचल रहा है। यदि इसे पृथक राज्य का दर्जा मिलता तो अपने साथ-साथ मध्यप्रदेश के विकास में भी सहायक होता। प्राकृतिक संसाधनों तथा पर्यटन की दृष्टि से भी यह क्षेत्र संपन्न है।

पृथक बुंदेलखंड की मांग जनता की आवाज नहीं बन पाई, यह बननी चाहिए। कुछ इस तरह के विचार आज सप्रे संग्रहालय में आयोजित 'बुंदेलखंड पर्व’ के अवसर पर हुए बहुआयामी विमर्श में उभर कर आए।

इस अवसर पर बुन्देली संस्कृति, साहित्य और परम्परा के गंभीर अध्येता अयोध्याप्रसाद गुप्त 'कुमुद’ का अमृत-जयंती पर अभिनन्दन किया गया तथा अमृत-अभिनन्दन प्रसंग पर प्रकाशित बुन्देलखण्ड समग्र ग्रन्थ का विमोचन भी किया गया।

सप्रे संग्रहालय के सभागार में दो चरणों में हुए इस कार्यक्रम के पहले चरण में अभिनंदन तथा ग्रंथ का विमोचन किया गया। जबकि दूसरे चरण में बुंदेलखंड से जुड़े चार विषयों पर विशेषज्ञों के व्याख्यान हुए।

पहले चरण में वरिष्ठ कहानीकार डॉ. गोविंद मिश्र की विशेष मौजूदगी में बुन्देली संस्कृति, साहित्य और परम्परा के गंभीर अध्येता अयोध्याप्रसाद गुप्त 'कुमुद’ का उनके द्वारा बुंदेलखंड पर किए गए कार्यों के लिए अभिनंदन किया गया। उनकी इस यात्रा में सहभागी रहीं उनकी धर्मपत्नी रानी गुप्त को भी सम्मानित किया गया।

इसी क्रम में 'बुन्देलखण्ड समग्र’ ग्रन्थ के संपादक हरि विष्णु अवस्थी को भी सम्मानित किया गया। इस सत्र में इतिहासकार शंभुदयाल गुरु तथा ग्रंथ के संपादक हरि विष्णु अवस्थी विशेष रूप से उपस्थित रहे।

अपने सम्मान के प्रतिउत्तर में कुमुद जी ने कहा - मैंने यह महसूस किया कि जहां मैं जन्मा वह बुंदेलखंड सर्वसंपन्न है। इसलिए मैंने इसे एक पहचान देने की ठानी। इस निश्चय में मुझे मेरे गुरुजनों का आदेश भी छिपा था। सभी का यह कहना था कि 'मैं बुंदेलखंड की पहचान बनूं।’ इसी उद्देश्य से मैं अर्जुन की तरह 'चिड़िया की आंख पर नजर रखने’ के मंत्र की तरह जुट गया। उन्होंने अपनी संघर्ष यात्रा को साझा करते हुए बताया कि लगभग हर क्षेत्र में मेरा काम पूरा हो गया है, अब इस अंचल को पर्यटन के मानचित्र पर लाने की कामना है। इस दिशा में कार्य चल रहा है।

सत्र के मुख्य अतिथि डॉ. गोविंद मिश्र ने बुंदेलखंड में बचपन में बिताए अपने समय को याद करते हुए कहा कि संस्कृति को पूरी तरह परिभाषित नहीं किया जा सकता। इसके रूप बताए जा सकते हैं। उन्होंने कुमुद जी को उनके योगदान के लिए बधाई देते हुए आने वाले समय में भी इसी तरह सक्रिय रहने की शुभकामनाएं दीं।

ग्रंथ के संपादक हरि विष्णु अवस्थी ने संपादन के दौरान हुए अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि पृथक बुंदेलखंड राज्य की मांग जनता की मांग नहीं बन पाई यदि ऐसा होता तो बुंदेलखंड राज्य बन सकता था।

स्वागत् वक्तव्य देते हुए संग्रहालय के अध्यक्ष राजेन्द्र हरदेनिया ने बताया कि कुमुद जी ने अपना बहुमूल्य साहित्य संग्रह सप्रे संग्रहालय को भेंट किया है। यह संग्रहालय के जनपदीय कक्ष में संजोई जाएगी इसका लाभ अध्येता एवं शोधार्थी ले सकेंगे। इस सत्र का संचालन पत्रकार ममता यादव ने बुंदेली भाषा में ही किया।

विपुल प्राकृतिक संपदा से धनी है बुंदेलखंड
कार्यक्रम के दूसरे चरण में बुंदेलखंड के विभिन्न आयामों से जुड़े पहलुओं पर विषय विशेषज्ञों ने अपने विचार रखे। लोक संस्कृति मर्मज्ञ डा. कपिल तिवारी ने 'बुन्देली संस्कृति’ पर अपने विचार रखते हुए कहा कि किसी भी क्षेत्र का आर्थिक विकास तो चरणबद्ध तरीके से हो सकता है लेकिन सांस्कृतिक विकास चरणों में होना संभव नहीं है।

संस्कृति का विकास या तो होता है या नहीं होता। उन्होंने कहा कि बुंदेलखंड को समझने के लिए वहां के समाज को समग्रता में समझना होगा तभी सही तरीके से हम उसकी संस्कृति समझ पाएंगें। उन्होंने इस बात पर भी दु:ख जताया कि बुंदेलखंड के विकास के जो सपने थे वे राजनीति ने धूल-धुसरित कर दिए। जो चेतना जरूरी थी अब उसकी कमी दिखाई दे रही है।

साहित्यकार ध्रुव शुक्ल ने 'बुन्देली साहित्य’ पर कहा कि लोक साहित्य केन्द्रित दृष्टि हमारे समाज में रही है। बुंदेलखंडी साहित्य बारहमासी साहित्य है। यहां की परंपरा, तीज त्यौहारों पर लिखा जाता रहा है। उन्होंने आल्हा के बारे में फैली भ्रांतियों को स्पष्ट करते हुए कहा कि ऐसा प्रचारित किया जाता रहा कि यह राजाओं के गुणगान के लिए गाया जाता है जबकि यह सामान्य समाज की शक्ति का गुणगान करता है।

'बुन्देलखण्ड का आर्थिक सामर्थ्य और संभावना’ विषय पर बोलते हुए टीवी पत्रकार राजेश बादल ने विभिन्न क्षेत्रों के करीब 50 वर्ष के आंकड़ों से वर्तमान स्थिति की तुलना की। उन्होंने आंकड़ों के जरिए बताया कि यदि आजादी के बाद या राज्य पुनर्गठन के समय इसे पृथक राज्य का दर्जा दिया जाता तो यह अंचल अपने विपुल संसाधनों से न केवल अपना विकास करता बल्कि मध्यप्रदेश का विकास भी करता। उन्होंने मौजूदा समय में यहां के गृह उद्योग तथा कुटीर उद्योगों के बंद होने पर भी चिंता जताई।

वरिष्ठ पत्रकार शिव अनुराग पटैरिया ने 'बुन्देलखण्ड : राह के रोड़े’ विषय पर व्याख्यान देते हुए अपने पत्रकार जीवन के अनुभवों के आधार पर कहा कि बुंदेलखंड को पृथक राज्य का दर्जा दिलाने के लिए यहां के राजनेताओं में जिस जुझारूपन की आवश्यकता थी वह दिखाई नहीं दी। विकास के नाम पर भी यही स्थिति रही, नतीजतन अपने भीतर तमाम संभावनाओं के बाद भी यह अंचल पिछड़ गया। उन्होंने विश्वास जताया कि यदि आज भी विकास की संभावनाओं पर विचार किया जाए तो बुंदेलखंड के अच्छे दिन आ सकते हैं।

कार्यक्रम के संयोजक सप्रे संग्रहालय के संस्थापक-संयोजक विजयदत्त श्रीधर ने आयोजन के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इसके पीछे बुंदेलखंड को पृथक राज्य बनाने के लिए राजनीतिक अभियान चलाना उद्देश्य नहीं बल्कि एक जनचेतना जगाना है। इस तरह के प्रयास में यदि और लोग भी लगे हों तो हमारे साथ जुड़ सकते हैं।

विमर्श का सार वक्तव्य डा. प्रभुदयाल मिश्र ने दिया। इस सत्र का संचालन पुष्पेन्द्र पाल सिंह ने किया। दोनों ही सत्रों में शहर के प्रबुद्धजन तथा बुंदेलखंड अंचल से जुड़े लोग बड़ी संख्या उपस्थित रहे।

किताबों का विमोचन भी हुआ --
कार्यक्रम में हरि विष्णु अवस्थी की किताब 'जल प्रबंधन : बुंदेलखंड की पारंपरिक जल संभावनाएं’ तथा वरिष्ठ कवि आशाराम त्रिपाठी के काव्य संकलन 'चौकडिय़ा की मडिय़ा’ का विमोचन किया गया।

ऐसा है अभिनंदन ग्रंथ
अमृत-अभिनन्दन प्रसंग में प्रकाशित ग्रन्थ 'बुन्देलखण्ड समग्र’ में भूगोल, इतिहास एवं पुरातत्व, बुन्देली भाषा, साहित्य, कला एवं संस्कृति, स्वतंत्रता संग्राम, महापुरुष और उनका अवदान, प्रकृति और उसके वरदान इत्यादि विषयों पर गवेषणात्मक आलेख सँजोए गए हैं। ग्रन्थ का संपादन श्री हरि विष्णु अवस्थी ने किया है।

सम्मान में यह भी रहे सहभागी 
कार्यक्रम में संस्था की ओर से कुमुदजी के अभिनंदन के साथ ही उपस्थित लोगों की ओर से सुरेश मिश्र, लाजपत आहूजा, प्रवीण श्रीवास्तव, राकेश दीक्षित, सतीश एलिया, रामभुवन सिंह कुशवाहा आदि ने स्वागत् किया।

 



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