सिने जगत की सियासी भूख

पेज-थ्री            Jan 01, 2019


अभिषेक शर्मा।
चर्चा पहले मुद्दे से थोड़ा सा हटकर, बात साल 2014 की है जब मोदी लहर पर सवार होने के बाद एक फिल्मी चेहरे किरण खेर ने लोकसभा चुनाव में हिस्सा लेते हुए सक्रिय राजनीति में कदम रखा।

वह बीजेपी के टिकट पर चंडीगढ़ से चुनाव लड़ीं और कांग्रेस उम्मीदवार पवन बंसल और आम आदमी पार्टी की उम्मीदवार और अभिनेत्री गुल पनाग को हराकर जीत हासिल कर संसद पहुंच गईं।

अब आते हैं मुद्दे की बात पर, भाजपा सांसद किरण खेर अभिनेता अनुपम खेर की बीबी हैं। भाजपा सरकार में पहली फ़िल्म कांग्रेस के खिलाफ बनी अनुपम खेर की बदौलत। फ़िल्म का नाम था "इंदू सरकार" जिसमें इंदिरा गांधी और संजय गांधी पर जोरदार चोट की गई थी।

फ़िल्म हालांकि सफल ज्यादा नहीं हुई मगर सियासी गलियारे में इसे भाजपा की टीम बी का प्रोजेक्ट ही माना गया।

सरकार का छद्म मुखौटा ओढ़े अनुपम खेर यहीं नही हार कर बैठे, अब वह "द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर" के साथ ठीक लोक सभा चुनाव के पहले सोनिया गांधी पर चोट करने उतरे हैं। हालांकि फिल्म की हालत इंदू सरकार से बेहतर होने की जरा भी उम्मीद फ़िल्म विशेषज्ञ नही जता रहे।

मुझे याद है गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तानी उच्चायुक्त से मनमोहन सिंह की मुलाकात पर पाकिस्तान से मिलकर देश के खिलाफ साजिश करने का आरोप लगाया था। इस आरोप के ठीक बाद वाले शेष चरणों मे गुजरात में बैलेट ने थोक के भाव कमल खिलाये थे।

हालांकि मुझे इंतजार आज भी है कि मोदी जी उस आरोप को सिद्ध कर जल्द ही मनमोहन सिंह को देश के खिलाफ साजिश के आरोप में सार्वजनिक तौर पर फाँसी देंगे।

सियासत की बी टीम यानी इस फिल्मी चेहरे को याद रखियेगा, भविष्य में अटल जी को भी केंद्र में रखकर फ़िल्म बनेगी और मोदी जी भी फिर अछूते नही रहेंगे। उस दौर में सियासत का यह फिल्मी तौर तरीका इतिहास में अनुपम और चिंतनीय अक्षरों से रचा जाएगा।

फिर कोई सहाफी देश में सियासत को लेकर मेरी ही तरह चिंता जाहिर करेगा क्योंकि यह प्रश्न राजनीतिक भलाई से अधिक जरूरी देश की भलाई से जुड़ा हुआ है।

 

लेखक दैनिक जागरण बनारस में कार्यरत हैं।

 



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