फिल्म समीक्षा: क्रिकेट के शौकीन हों या न हों पसंद आयेगी सचिन- ए बिलियन ड्रीम्स

पेज-थ्री            May 27, 2017


डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी।

सचिन- ए बिलियन ड्रीम्स में नई बात कुछ भी नहीं है, लेकिन फिर भी फिल्म इतने दिलचस्प तरीके से बनाई गई है कि आप उसे कितनी भी बार देख सकते हैं। सिनेमा हॉल में जब फिल्म समाप्ति पर दर्शक तालियां बजाकर फिल्म की तारीफ करते हैं, तब कुछ अलग ही एहसास होता है। यही एहसास अमिताभ बच्चन को हुआ होगा, जो उन्होंने ट्वीट किया - हम उस देश के वासी है, जिस देश में सचिन रहता हैं। सिनेमा हॉल में दर्शक वर्ग पर नजर डालो, तो उसमें हर आयु वर्ग के लोग नजर आते है। कोई पोता अपने दादा के साथ आया है, तो 4-5 बहन-भाई गर्मी की छुट्टियों में फिल्म का आनंद ले रहे है। सचिन के बारे में शायद ही कोई ऐसी बात हो, जो लोग नहीं जानते हो, लेकिन फिर भी बड़े पर्दे पर उन्हें देखना एक अलग ही एहसास है। आप क्रिकेट के शौकीन हो या न हो, सचिन के फैन हो या न हो, फिल्म आपको पसंद आएगी।

एक साधारण मध्यवर्गीय परिवार के सचिन तेंडुलकर के बारे में यहीं बात बताने की कोशिश की गई है कि उनके पिता रमेश तेंडुलकर चाहते थे कि लोग उन्हें एक बेहतर क्रिकेटर के रूप में तो जाने ही, एक बेहतर इंसान के रूप में भी पहचाने। सचिन ने इस बात को गांठ बांध ली थी। वे लंबे समय तक क्रिकेट के मैदान में डटे रहे और क्रिकेट में उनका नाम ऐसे ही आता है, जैसे बॉक्सिंग में मोहम्मद अली या बॉस्केट बॉल में माइकल जॉर्डन का। सुनील गावस्कर की पत्नी अगर क्रिकेट की फिक्स डिपाजिट थी, तो सचिन तेंडुलकर और उनकी पत्नी शेयर इक्विटी की तरह रही। सचिन इस फिल्म में दोहराते है कि कोई भी खिलाड़ टीम से बड़ा कभी नहीं हो सकता, वह टीम का एक हिस्सा ही रहता है। इसी तरह कोई भी खिलाड़ी किसी खेल से बड़ा नहीं हो सकता।

सचिन का परिवार संगीत का शौकीन परिवार रहा है और सचिन का नाम संगीतकार सचिन देव बर्मन से प्रेरित होकर रखा गया है। संगीत से सचिन तेंडुलकर को भी खासा लगाव रहा है और वे संगीत को एक सीक्रेट वीपन की तरह इस्तेमाल करते हैं। जब कभी हताशा होती, तो पूरा दिन एक ही गाना सुनते रहते। बार-बार लगातार। वह गाना जो उन्हें खासा प्रिय रहा है, वह है अनू मलिक का ‘याद आ रहा है तेरा प्यार’।

इस फिल्म में 22 गज की पिच पर सचिन के 24 साल का सफर डॉक्युमेंट्री की तरह दिखाया गया है, लेकिन सचिन का जादू है कि लोग उसे पूरी शिद्दत के साथ देखते है। क्रिकेट का एक खिलाड़ी किस तरह ब्रांड बन जाता है और करोड़ों रुपए कमाता है, इसका जिक्र भी इस फिल्म में है और यह जिक्र भी कि एक दौर था, जब आईसीसी के क्रिकेट मैच का प्रसारण करने के लिए दूरदर्शन पांच लाख रुपए की फीस लेता था। उसके बाद वह दौर आया, जब टीवी चैनल वाले क्रिकेट के प्रसारण के लिए आईसीसी को पैसे देने लगे और क्रिकेट में दौलत की बरसात होने लगी। सचिन ने पैसे का लालची होने के आरोप पर भी सफाई दी है और कहा है कि पैसा हर एक के लिए जरूरी है, लेकिन मेरे लिए पैसा क्रिकेट की कीमत पर कोई मायने नहीं रखता।

फिल्म है तो अतिशयोक्ति होना लाजिमी है। फिल्म में कहा गया है कि सचिन का एक-एक चौका देश की किस्मत बदलने की ताकत रखता है। भारत जैसे देश में कितने प्रतिशत लोग क्रिकेट देखते है और कितने प्रतिशत नहीं देखते, यह एक दिलचस्प चर्चा का विषय हो सकता है। जिस तरह सिनेमा कला भी है और व्यवसाय भी, उसी तरह क्रिकेट एक खेल भी है और धंधा भी। सचिन महान खिलाड़ी है, उसमें दोमत नहीं है, लेकिन सचिन को भगवान बना देना कुछ अटपटा ही लगता है। सचिन को भारत रत्न मिला और इस फिल्म में उनकी निजी और प्रोफेशनल लाइफ दोनों को मिलाकर दिखाया गया। अलग-अलग दौर में सचिन तेंडुलकर ने जो संघर्ष किए, उसका वर्णन मार्मिक तरीके से फिल्म में है। एक छोटी सी झलक क्रिकेट के नाम पर हो रही बैटिंग की भी है, पर सचिन के साथी रहे विनोद काम्बली को कोई बहुत ज्यादा तवज्जो नहीं मिली।

 

 



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