पश्चिमी मध्यप्रदेश में बदला राजनीतिक हवा का रूख,जयस,सपाक्स की सेंध से भाजपा बेचैन

राजनीति            Oct 07, 2018


हेमंत पाल।
राजनीति की हवा का रुख इस बार पश्चिम मध्यप्रदेश में बदला नजर आ रहा है। क्योंकि, भाजपा और कांग्रेस के बीच इस बार कुछ तीसरी पार्टियां दिखाई दे रही हैं। 'मालवा-निमाड़' इलाके में कांग्रेस और भाजपा के अलावा जय आदिवासी संगठन (जयस) और कर्मचारी संगठन के गर्भ से जन्मी सपाक्स-समाज पार्टी के राजनीति में उतरने से भी समीकरण बदलने के आसार प्रबल हैं। जयस और सपाक्स मूलतः राजनीतिक पार्टियाँ नहीं, बल्कि संगठन हैं।

पर, अब ये राजनीति के लिए मैदान में उतर गए। दोनों ही पार्टियों के ही कर्ताधर्ता मालवा से हैं और दोनों के नाम भी हीरालाल हैं। जयस के डॉ हीरालाल अलावा झाबुआ से हैं और सपाक्स के हीरालाल त्रिवेदी बड़नगर (उज्जैन) के हैं।

डॉ अलावा दिल्ली एम्स जैसा संस्थान छोड़कर आदिवासी युवाओं में अलख जगाने आ गए। जबकि, हीरालाल त्रिवेदी आईएएस से रिटायरमेंट के बाद सवर्णों और पिछड़ों को एकजुट करके सपाक्स को खड़ा करने में सफल हुए।


इंदौर और उज्जैन संभाग वाले इस मालवा-निमाड़ इलाके में विधानसभा की 66 सीटें आती हैं। 2013 के चुनाव में मालवा की 50 सीटों में से 45 पर भाजपा जीती थी। जबकि, कांग्रेस केवल 4 सीटें ही जीत पाई थी। वहीं, झाबुआ जिले की थांदला सीट पर भाजपा का बागी निर्दलीय उम्मीदवार जीता था।

निमाड़ की 16 में से 11 सीटों पर भाजपा उम्मीदवारों ने जीत हांसिल की थी। तब कांग्रेस के हाथ महज 5 सीट ही लग थी। इस बार के विधानसभा चुनाव के लिए दोनों पार्टियां पूरी जोश से मैदान में हैं। अपनी पैठ बनाने के लिए सभी पार्टियां ने अलग-अलग रणनीति के साथ तैयारी की है।

यह भाजपा का गढ़ है और 15 साल से पार्टी इसी इलाके में अपनी पकड़ के बल पर प्रदेश पर राज करती आ रही है। लेकिन, अबकी बार कांग्रेस और भाजपा के परंपरागत मुकाबले में तीसरे विकल्प का तड़का लगने के आसार हैं।

जयस जनजातीय समुदाय के दबदबे वाली प्रदेशभर की 80 सीटों पर अपनी ताकत आजमाने की तैयारी में हैं। अबकी बार, आदिवासी सरकार' का नारा देने वाला जयस यदि आदिवासी वोट काटने में सफल हुआ तो इसका सीधा फायदा कांग्रेस को मिलना तय समझा जा रहा है।

उधर, सपाक्स ने भी भोपाल में अपने सफल जमावड़े के बाद सभी 230 सीटों पर लड़ने का एलान कर दिया। इसके अलावा दिल्ली से जुड़े पंचायत पदाधिकारियों के राष्ट्रीय संगठन ने भी भारतीय पंचायत पार्टी (बीपीपी) बनाकर इलाके में घुसपैठ शुरू की है।

नरेश यादव की अगुवाई में इसे चुनाव आयोग ने रजिस्टर्ड कर पोस्ट बॉक्स चुनाव चिन्ह भी आवंटित किया है। संगठन से राजनीतिक पार्टी बनकर जयस, सपाक्स और बीपीपी क्या रंग दिखाते हैं, ये चुनाव में स्पष्ट हो जाएगा।

ये पार्टियां कुछ सीटें जीत सकेंगी इसमें शक है, पर ये भाजपा की हवा बिगाड़ सकती हैं। भाजपा के प्रति मतदाताओं की नाराजी इस तीसरे विकल्प को ताकत तो देंगी, पर इतनी नहीं कि वे सीट निकाल ले!

भाजपा के लिए गुजरात चुनाव में परेशानी खड़ी करने वाले पाटीदार नेता व किसान क्रांति सेना के अध्यक्ष हार्दिक पटेल मध्यप्रदेश में भी भाजपा के लिए मुसीबत बन सकते हैं। उनकी मौजूदगी पाटीदार समाज को प्रभावित करती है और मालवा-निमाड़ में इस समाज का असर है।

प्रदेश की 58 सीटों को पाटीदार वोट प्रभावित करते हैं, जो ज्यादातर मालवा-निमाड़ सहित रीवा और सागर संभाग में रहते हैं। प्रदेश में 1 करोड़ 42 लाख लोग पाटीदार समाज के हैं। हार्दिक ने घोषणा की है, कि वे प्रदेशभर में आमसभा करेंगे। 17 दिन की जनजागृति यात्रा भी निकालेंगे, ये यात्रा 14 दिन मालवा-निमाड़ में रहेगी। घोषित तौर पर तो वे कांग्रेस या भाजपा के साथ होने की बात नहीं करते! लेकिन, सब जानते है कि वे हमेशा भाजपा के खिलाफ ही खड़े दिखाई देते है।

कृषि और व्यापार का केंद्र माने जाने वाले मालवा-निमाड़ पर भाजपा कुछ ज्यादा ही ध्यान दे रही है। क्योंकि, भाजपा को किसानों की नाराजी का भय सता रहा है, जिसके पीछे मंदसौर गोलीकांड है। देखा जाए तो प्रदेश में किसान आंदोलन का सबसे ज्यादा जोर मालवा-निमाड़ में ही था।

मंदसौर में हुए गोलीकांड में किसानों की मौत को कांग्रेस काफी हद तक भुनाने में सफल भी रही। इसके अलावा शिवराज सरकार पर उनकी ही पार्टी के लोग यह आरोप भी लगाते आए हैं कि पाँच साल से मालवा-निमाड़ को उपेक्षा का सामना करना पड़ा है। इंदौर, धार, देवास, शाजापुर, झाबुआ, रतलाम, मंदसौर, नीमच, और आलीराजपुर ऐसे जिले हैं जहां से इस बार सरकार में एक भी मंत्री नहीं रहा। जबकि, निमाड़ का प्रतिनिधित्व करने के लिए तीन मंत्री हैं।

मध्यप्रदेश की राजनीति के ज्यादातर संघ और भाजपा के दमदार बड़े नेता मालवा-निमाड़ से ही आते हैं। पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष कुशाभाऊ ठाकरे, पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा, वीरेंद्र सखलेचा, कैलाश जोशी के अलावा सत्यनारायण जटिया, विक्रम वर्मा, नंदकुमार सिंह चौहान और लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन, केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत भी यहीं से हैं। संघ में नंबर दो की हैसियत रखने वाले सुरेश भैय्याजी जोशी भी मालवा से ही हैं।

जबकि, कांग्रेस की तरफ से सुभाष यादव और बाद में उनके बेटे अरुण यादव ने ही निमाड़ का प्रतिनिधित्व किया है। मालवा से कांग्रेस के नेता तो कई हुए, पर जिन्हें याद रखा जाए ऐसे नेताओं में आदिवासी इलाके से शिवभानुसिंह सोलंकी और जमुना देवी ही रही। ये दोनों प्रदेश के उपमुख्यमंत्री तो रहे, पर मुख्यमंत्री की कुर्सी उनसे दूर ही रही। लेकिन, ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभाव को आज भी यहाँ नाकारा नहीं जा सकता! इसका कारण ये कि मालवा का एक बड़ा क्षेत्र सिंधिया रियासत का हिस्सा रहा है।

प्रदेश के पश्चिमी इलाके की मालवा-निमाड़ में 66 सीटें हैं। इनमे 35 सामान्य, 22 अनुसूचित जनजाति की और 9 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। अभी भाजपा के पास सामान्य वाली 32, अजजा की 16 (थांदला के निर्दलीय विधायक समेत) और अजा की 9 सीटें हैं। जबकि, कांग्रेस के पास 3 सामान्य, 6 अजजा सीटें हैं। अजा की कोई सीट पिछली बार कांग्रेस नहीं जीत सकी थी।

यहाँ की 12 सीटें शहरी इलाके में हैं, 11 अर्द्ध शहरी इलाकों में और 46 सीट ग्रामीण क्षेत्र की हैं। इनमें से कांग्रेस के जीतू पटवारी सिर्फ राऊ वाली अर्द्धशहरी सीट जीत सके थे। इसके अलावा सभी सीटें भाजपा के पास हैं।

2013 के चुनाव में मालवा इलाके में कांग्रेस के मुकाबले भाजपा को 10.76% वोट ज्यादा मिले थे, निमाड़ में यह अंतर 8.33% था। लेकिन, इस बार कांग्रेस मालवा-निमाड़ को साधने की पूरी कोशिश में है। उन्हें उम्मीद है कि किसान आंदोलन के बाद भाजपा के खिलाफ लोगों में जो नाराजी पनपी है, इसका फायदा उन्हें विधानसभा चुनाव में मिल सकता है।

लेखक 'सुबह सवेरे' इंदौर के स्थानीय संपादक हैं

 



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