जनप्रतिनिधियों, लोकसेवकों के किए धरे की समीक्षा जरूरी है

राजनीति            Jun 30, 2019


प्रकाश भटनागर।
दुष्यंत कुमार ने लिखा था, "कैसे मंजर सामने आने लगे हैं, गाते-गाते लोग चिल्लाने लगे हैं।" शहरयार ने फरमाया, "सीने में जलन, आंखों में तूफान-सा क्यूं है? इस शहर में हर शख्स परेशान-सा क्यूं है?"

सचमुच मंजर कुछ ऐसे ही विचित्र दिखते हैं। इंदौर में आकाश विजयवर्गीय, सीहोर में गोविंद सिंह राजपूत और गंजबासौदा में लीना जैन का किया-धरा देखकर दुष्यंत कुमार और शहरयार की लेखनी का स्मरण हो आना स्वाभाविक है।

भाजपा विधायक आकाश ने इंदौर में नगर निगम के अफसरों को क्रिकेट के बल्ले से धुन दिया। प्रदेश सरकार में मंत्री राजपूत का गुस्सा एक तहसीलदार के निलंबन का कारण बन गया। भाजपा की ही विधायक जैन एक अफसर को ग्यारसपुर में न रहने देने की धमकी देने के चलते सुर्खियों में आ गयी हैं।

जनप्रतिनिधियों और लोकसेवकों के इन किए धरे की समीक्षा जरूरी है।

बात आकाश से शुरू करते हैं। बल्ला कांड के बाद सामने आ रही खबरें बताती हैं कि यह युवा विधायक हताश हो रहा था। वजह यह कि उसके विधानसभा क्षेत्र की कई इमारतों को जर्जर बताकर तोड़ दिया गया था।

इंदौर की राजनीति को जरा भी जानने वाला इस बात से असहमत नहीं होगा कि वहां जमीन माफिया का हमकदम हुए बगैर चल पाना मुश्किल है। यह प्रभावशाली समूह तथा नेता एक-दूसरे को समय-समय पर सहारा देते हैं। माफिया मौके की जमीन तलाशता है। नेता वहां मौजूद निर्माण के गिरने का मार्ग प्रशस्त करता है।

खबर है कि आकाश वाले मामले में भी ऐसा ही हो रहा था। बल्कि भू-माफिया से अधिक इसमें भाजपा की गुटीय राजनीति काम कर रही थी। महापौर मालिनी गौर और आकाश के पिता कैलाश विजयवर्गीय के बीच छत्तीस का आंकड़ा किसी से छिपा नहीं है। कैलाश के दाहिने हाथ रमेश मैंदोला पहले और अब उनके साथ-साथ आकाश भी महापौर गुट के निशाने पर हैं।

आलम यह कि नगर निगम में पार्षद पिटाई कांड के बाद उपेक्षा से क्षुब्ध मेंदोला धड़े के पार्षदों ने पिछले तीन साल से नगर निगम की बैठकों से स्थायी दूरी बना ली है। यहां तक कि उनके खिलाफ अयोग्य ठहराने की कार्रवाई की मुहिम तक शुरू कर दी गयी है।

इसी बीच हुआ यह कि आकाश के प्रभाव क्षेत्र की इमारतों को जर्जर बताकर गिराने का खेल शुरू कर दिया गया। इस घटना से पांच दिन पहले ही एक इमारत गिराई गई। पीड़ितों ने विधायक को बुलाया लेकिन आकाश उनकी कोई मदद नहीं कर पाए।

लिहाजा, जनता का उलाहना तो झेलना ही था। हालत यह हुई कि आकाश के विरोध के बावजूद एक इमारत ध्वस्त कर दी गयी। इसका सीधा-सा असर आकाश समर्थकों के यकीन पर पड़ा और उसकी परिणति विजयवर्गीय के बेटे ने गुस्से के तौर पर प्रकट की।

जाहिर है आकाश की कोशिश खुद की एक विधायक के तौर पर धाक जमाने के फर्स्टेशन से जुड़ी है। खुद कैलाश विजयवर्गीय की धाक भी उनकी शुरूआती राजनीति के दौर में ऐसे ही बनी थी। उन्होंने किसी वर्दीधारी पुलिस अफसर पर हाथ छोड़ा था।

इसलिए अगर आकाश के कदमों की उनके पिता वकालत कर रहे हैं तो जाहिर है यह सलाह भी उनकी ही हो सकती है।

हालांकि लोकतंत्र में विरोध जताने के लोकतांत्रिक तरीके देश में स्थापित हैं। लेकिन ऐसे तरीकों से पहचान नहीं मिलती और जो आकाश ने किया वो झटके से मीडिया की सूर्खियों में आ गया।

भाजपा विधायक के इस कृत्य को किसी भी कीमत पर उचित नहीं ठहराया जा सकता है। उन्हें कानून हाथ में नहीं लेना चाहिए था। लिहाजा, कानून ने उनके साथ जो व्यवहार किया है वो सौ फीसदी सही है।

गोविंद सिंह राजपूत के गुस्से को भी उनकी झुंझलाहट से जोड़ा जा सकता है। वे ज्योतिरादित्य सिंधिया के कोटे से मंत्री बने हैं। इसलिए सरकार में उनकी खास चल नहीं पा रही है। कमलनाथ गुट उन्हें निपटाने में लगा हुआ है।

मंत्रिमंडल की बैठक में राजपूत सहित सिंधिया के करीबी एक भी मंत्री की बात को तवज्जो नहीं दी जा रही। अफसर भी उन्हें भाव नहीं देते हैं। विभाग तो उन्हें भारी—भरकम मिल गए हैं लेकिन महत्वपूर्ण काम खास कर परिवहन विभाग का, उसमें मंत्री से ज्यादा मुख्यमंत्री के ओएसडी और परिवहन के आला अफसर मलाई काट रहे हैं।

बहुत संभव है कि सीहोर के तहसीलदार कार्यालय में राजपूत को अपने आदर-सम्मान में कोई कमी महसूस हुई होगी। या फिर यह भी मुमकिन है कि वहां उन्हें वाकई कोई खामी नजर आयी हो। जिसके चलते उन्होंने तहसीलदार को निलंबित कर राज्य भर में इस पद पर काम कर रहे लोगों को सरकार के विरोध में एकजुट कर दिया।

लिहाजा, गोविंद राजपूत या फिर सिंधिया खेमे के बाकी मंत्रियों में भी एक कुंठा तो पनप ही रही है। इससे उपजा उनका गुस्सा ही ऐसी घटनाओं से बाहर आ रहा है।

लीना जैन के लिए ज्यादा लिखना नहीं बनता है। पहली बार विधायक बनने के बाद ताकत का गुरूर हो जाना स्वाभाविक है। फिर राज्य भाजपा में तो बीते पंद्रह साल से गुरूर का परनाला ही बह रहा था। हो सकता है कि इसी हवा में बहकर जैन ने अफसर को धमकी दे डाली हो।

खैर, बड़ी मुश्किल से गरमी ले-देकर प्रदेश से विदा लेने के मूड में आयी है। इसे प्यार से ही विदा करें। क्यों नाहक उस गरमी को अपने दिमाग में ठौर देकर जनप्रतिनिधि अपनी छवि से खिलवाड़ कर रहे हैं।

राजनीति में संयम के साथ हर गुस्सा पी जाने वाले राजनेता आज भी भाजपा तथा कांग्रेस, दोनों में मौजूद हैं। आकाश, गोविंद और लीना को चाहिए कि अपने-अपने दल में ऐसे लोगों से प्रेरणा लें।

लेकिन भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने बेटे के लिए अपना आपा खोकर अपने कद के अनुरूप किसी के लिए कोई प्ररेणा बाकी नहीं छोड़ी है।

 



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