विधानसभा अध्यक्ष चुनाव:1967,1972 के बाद अब 2019 में मामला बराबरी का है

खास खबर, राज्य            Jan 08, 2019


राकेश दुबे।
कई दशकों बाद बाद आज फिर मध्यप्रदेश विधानसभा में विधान सभा अध्यक्ष का चुनाव होने जा रहा है। रात दिन अपने विधायकों को संभालने में जुटी कांग्रेस और भाजपा दोनों को “क्रास वोटिंग” का अंदेशा है।

वैसे यह कांग्रेस सरकार का पहला शक्ति परीक्षण है, दिग्विजय सिंह भाजपा पर विधायकों की खरीद का आरोप लगा ही चुके हैं।

कांग्रेस के एनपी प्रजापति और भाजपा के विजय शाह मैदान में हैं।  साल पहले 1967 में और उसके बाद 1972 में विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव हुआ था।

तब संविद सरकार थी। कांग्रेस के काशीप्रसाद पांडे 172 और सोशलिस्ट पार्टी के चंद्रप्रकाश मिश्रा 52 वोट प्राप्त करने में सफल रहे थे। तब और अब की राजनीति में जमीन आसमान का अंतर आ गया है। यह नौबत प्रोटेम स्पीकर के चुनाव में पिछली परम्परा को छोड़ने से आई है। हद तो ये है पक्ष-प्रतिपक्ष एक दूसरे पर स्थापित परम्परा तोड़ने का आरोप लगा रहा है। विधायकों की खरीद फरोख्त जैसी बातें ऐसे चल रही है, जैसे मंडी में नीलामी।

कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने आरोप लगाया कि भाजपा के कई नेताओं ने हमारे विधायकों को 100-100 करोड़ का ऑफर दिया है, ताकि वे भाजपा के पक्ष में वोटिंग करें। उन्होंने दावा किया कि ‘मेरे पास इस बात के पुख्ता सबूत रिकार्डिग में हैं। जरूरत पड़ने पर इसे सार्वजनिक करूंगा।’ वैसे कांग्रेस ने पहली बार के विधायकों को बताया- वोट कैसे डालना है।

मुख्यमंत्री कमलनाथ द्वारा दिए गये भोज में चारों निर्दलीय प्रदीप जायसवाल, सुरेंद्र ठाकुर, विक्रम राणा, केदार डाबर समेत बसपा के संजीव कुशवाह और सपा के राजेश शुक्ला शामिल हुए। नाराज चल रहे विधायक राजवर्धन दत्तीगांव से मुख्यमंत्री मिलने पहुंचे। लेकिन, केपी सिंह ने मुख्यमंत्री की ओर देखा तक नहीं भाजपा के आठ असंतुष्ट विधायकों पर भी कांग्रेस की नजर है। आज सदन में कुछ चौकाने वाला भी होने से इंकार नहीं किया जा सकता।

भाजपा ने विजय शाह को जिताने की जिम्मेदारी राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को दे रखी है। उनके रतजगे में नरोत्तम, भूपेंद्र सिंह और विश्वास सारंग समेत अन्य नेताओं ने शिरकत की |इस रतजगे के दौरान में कांग्रेस के असंतुष्ट, छोटे दलों के विधायकों से संपर्क के प्रयास किए गये । भाजपा संगठन ने तीन टीमें बनाई हैं जो भाजपा के विधायकों को निगरानी में रखे हुए हैं।

कल विधानसभा में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा था किकांग्रेस ने प्रोटेम स्पीकर के चयन में संसदीय परंपरा तोड़ी है। सदन में जब सात से आठ बार के विधायक हैं तो वरिष्ठता के आधार पर उन्हें प्रोटेम स्पीकर बनाया जाना चाहिए। सदन से बाहर भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने दोहराया कि 2014 में लोकसभा में भाजपा को स्पष्ट बहुमत होने के बाद भी वरिष्ठतम सांसद होने के नाते कमलनाथ को प्रोटेम स्पीकर बनाया गया था और उन्होंने ही सभी सदस्यों को सांसद पद की शपथ दिलाई थी।

अब मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने इस परंपरा को को तोड़कर वरिष्टता क्रम में दीपक सक्सेना को प्रोटेम स्पीकर बनाया है।

वैसे प्रोटेम स्पीकर की भूमिका सदन में शपथ दिलाने से अधिक नहीं होती है, मत विभाजन बराबर रहने पर उसे अपन मत देने का अधिकार होता है। इस बार सदन में दोनों दल आशंकित हैं। दोनों और असंतुष्ट है। मामला बराबरी का है।

 



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