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जनता ने खराब और महाखराब के बीच कांग्रेस को चुना था मगर क्या लुट्टस मची है

राज्य            Sep 11, 2019


राघवेंद्र सिंह।
मध्यप्रदेश की सियासत में अजीबोगरीब सीन चल रहा है। सरकार बदलते ही ऐसा लगा जैसे जनता के सिर मुड़ाते ही ओले पड़ गए हों।

कमलनाथ सरकार में भारी भरकम तबादलों को लेकर भृष्टाचार के गम्भीर आरोप लग रहे हैं। गुड गर्वनेंस के नाम पर सत्ता में आई भाजपा के पन्द्रह साल में जब बेड गर्वनेंस का शिकार हुई तो हुकुमत में आने के लिए छाती पीट रहे कांग्रेस नेताओं को बहुमत से दो कदम दूर(114 विधायक) रहकर सरकार बनाने का मौका मिला।

उम्मीद थी सत्ता का सूखा झेल रहे तजुर्बेकार कांग्रेसी साल दो साल तो ठीक से काम करेंगे। लेकिन जो कुछ हो रहा है उसे देख दिलो दिमाग में कई सारी लोककथाएं घूम रही हैं।

इन में हास परिहास से जुड़ी एक दो कथाएं पाठक माईबाप से साझा कर रहे हैं। आशा है पसंद भी आएंगी और हाल ए हुकमत समझ में भी आएगा।

किस्सा ए सियासत ये है कि एक आदमी को भोजन का न्यौता मिला। मेजबान से उसने कहा कि मेरे साथ नेत्रहीन मित्र भी है। उसे भी बुलाएंगे तो अच्छा रहेगा। आयोजक ने सहर्ष स्वीकार कर सूरदास साथी को भी निमंत्रित कर दिया।

इस पर मित्र ने समस्य़ा बताई कि मैं भला नेत्रहीन कैसे जान पाऊंगा कि पंगत में पत्तल पर भोजन कब परसना शुरू हुआ,कब परसाई पूरी हुई और भोजन कब शुरू हुआ।

इस पर साथी ने संकेत के तौर पर चार कोहनी मारने का फार्मूला तय किया कि जब परसना शुरू होगा मैं तुम्हे पहली कोहनी मारूंगा। तुम समझ जाना कि खाना परसना शुरू हो गया है।

दूसरी कोहनी जब मारूं तो जान लेना कि पत्तल में भोजन सामग्री परसी जा चुकी है। इसके बाद जैसे ही पंगत में लोग खाना शुरू करेंगे तब मैं तीसरी दफा कोहनी मारूंगा तो समझ लेना खाना शुरु करना है।

भोजन स्थल पर भारी भीड़ थी एक तरह से नगर भोज था। जैसे तैसे भीड़ भाड़ में दोनों मित्र भोजन करने के लिए जगह ढ़ूढ़कर बैठ जाते हैं। इसी आपाधापी में नेत्रहीन मित्र को अन्य व्यक्ति की कोहनी लग जाती है और उसे वह पहला संकेत मान एकदम अटेंशन की मुद्रा में आ जाता है।

इधर तय फार्मूला के मुताबिक भाई अपने साथी को पहली कोहनी मारता है जिसे वह परसाई पूरी होने का संकेत मान भोजन करने के लिए तैयार हो जाता है। इसके बाद अगली कोहनी लगते ही सूरदास मित्र परसाई के दौरान ही भोजन शुरू कर देता है।

यहीं से गड़बड़ी शुरू होती है।घबराया साथी उसे रोकने के लिए कोहनी मारकर इशारा करता है मगर वह तो बजाए रुकने के खाना खाने की गति तेज कर देता है। मामला बिगड़ता देख वह अपने साथी को दो तीन कोहनी जोर से मारकर यह कहता है कि क्या कर रहे हो..?

इस पर वह दोनों हाथों से यह सोच कर खाने पर पिल पड़ता है कि पंगत खत्म होने वाली है और ऐसा न हो कि मैं भूखा रह जाऊं। मामला बिगड़ता देख साथी ने उसे तीन चार बार जोर जोर से कोहनी मारी और रुकने के लिए कहा।

अगला कुछ समझने की बजाए दोनों हाथों से पत्तल समेटते हुए कहता है अरे क्या लुट्टस मच गई है...सरकारों में धन कमाने की भूख को देखकर लगता है कि जनकल्याण के नाम पर सरकार में आने वाले कई नेतागण दूसरों को नेत्रहीन समझ कर बटोरने में लग जाते हैं।

कमलनाथ सरकार में जो आरोप प्रत्यारोप का दौर चल रहा है उसे लेकर सत्ता के साथ संगठऩ व आमजनता कुछ इस तरह का ही सोच रही हो तो हैरत नहीं होगी।

दरअसल यह बात इसलिए भी सटीक लगती है क्योंकि कैबिनेट मंत्री उमंग सिंघार ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पर अपने समर्थकों के लिए रेत शराब और तबादलों के रास्ते खोलने का आरोप लगाया है।

इसके बाद मंत्री विधायकों के बयानों की बाढ़ आ गई और ऐसा लगा जैसे पंगत में लुट्टस मची हो और लोग अपनी अपनी पत्तल समेटने में लगे हैं। इसमें कोई शक नहीं दिग्विजय सिंह जिस कद के नेता हैं आरोप लगाने वाले उमंग उत्साह में कम सत्ता और गुटबाजी की तरंग में ज्यादा नजर आए।

जाहिर है कि उन्हें कांग्रेस में किसी बड़े नेता का संरक्षण है वरना उन्होंने जो आरोप लगाए हैं वे किसी भी कांग्रेसी तो क्या विपक्ष का नेता के भी बूते की बात नहीं होती। लेकिन अब तो लाख की मुट्ठी खुल गई है और इसे खाक की होने से बचाने का जतन किया जा रहा है।

मामला हाईकमान की अदालत में पहुंच चुका है मगर इससे दिग्विजय और कांग्रेस की प्रतिष्ठा में गिरावट आई है। कमलनाथ की नेतृत्व क्षमता पर भी गहरे दाग लग गए हैं।

ऐसा इसलिए भी क्योंकि नाथ सरकार के साथ अभी प्रदेश कांग्रेस के भी नाथ बने हुए हैं। पूरे मामले में असली आनंद लगता है हाशिए पर चल रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया ले रहे हैं। लेकिन ये तो ऐसा है आज दिग्विजय सिंह तो कल सिंधिया की बारी भी आएगी।

पूरे मामले में कह सकते हैं बुढ़िया के मरने का गम नहीं है संकट ये है कि मौत ने घर देख लिया है। कुलमिलाकर मतदाता ने भाजपा को कानी होने के साथ दूसरी आंख में मोतियाबिन्द के कारण बहुमत नहीं दिया था लेकिन हालात देख कर लगा है कि काने के बदले उसे नेत्रहीनों की सरकार मिल गई है।

एक और बात है 15 साल विपक्ष में रही कांग्रेस के यहां जब सत्ता रूपी बच्चा पैदा हुआ तो पार्टी के लोग उसे कहीं खुशी के मारे चूम चूम कर ही न मार डालें। हमारी तो शुभकामना है सरकार पांच साल चले और यशस्वी हो...

भाजपा में खुशी का माहौल...
मध्यप्रदेश कांग्रेस और कमलनाथ सरकार की हालत को देखते हुए नौ महिने पहले विधानसभा चुनाव हारी भाजपा फिर सत्ता में आने की उम्मीद से है। खुशी से फूली नहीं समा रही है। कल तक जो भाजपा नेता अपने सत्ता जनित दुर्गुणों के कारण अपराध बोध में थे अब वे अपने गुनाहों पर शर्माने की बजाए गर्व महसूस करने लगे हैं। कार्यकर्ता व जनता से उन्हें यह कहते संकोच नहीं लगता कि हमारे राज में प्रशासन ज्यादा प्रभावी और ईमानदार था। जबकि हर कोई जानता है प्रशासन को ठीक करने के लिए डंडे लेकर निकलने की बातें भी खूब हो चुकीं हैं। इस स्थिति के लिए कांग्रेस ज्यादा जिम्मेदार है क्योंकि जनता ने खराब और महा खराब के बीच कांग्रेस को चुना था। एक तरह से कांग्रेस सपनों को तोड़ने का गुनाह कर रही है। लोकतंत्र के लिहाज से हम तो यही कहेंगे प्रभु इन्हें माफ करना क्योंकि इन्हें नहीं पता कि ये कर रहे हैं।

 



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