हमें लोकप्रिय निर्णय नहीं सुविधा वाला नियोजन चाहिए, सवाल परिवहन सुविधा का है

राज्य            Jan 22, 2019


पंकज शुक्ला।
मध्यप्रदेश जैसे राज्य में जहां कांग्रेस 15 सालों बाद सत्ता में आई है, वह भाजपा राज में बनाई गई सभी नीतियों और योजनाओं की समीक्षा कर उनमें परिवर्तन कर रही है। ऐसे में अपने निर्माण के समय से विवादों में रहा बीआरटीएस (बस रेपिड ट्रांजिट सिस्टम) फिर चर्चा में आ गया।

नगरीय प्रशासन मंत्री जयवर्धन सिंह कह रहे हैं कि जनता की राय यदि बीआरटीएस हटाने के पक्ष में होगी तो उसे हटाया जाएगा। वे विशेषज्ञों की राय भी ले रहे हैं। यह ऐसा निर्णय है जो मंत्री को बहुमत के आधार नहीं बल्कि सूझबूझ से लेना होगा क्योंकि लोक परिवहन में सुधार आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है और बीआरटीएस को हटाने के पहले लोक परिवहन का कोई सशक्त विकल्प खड़ा करना होगा।

अपनी गाड़ियों का उपयोग करने से सड़क पर वाहनों की संख्या बढ़ने, उनसे पैदा हुए प्रदूषण, ईधन के व्यय और पार्किंग जैसी समस्याओं से निपटने का एकमात्र कारगर तरीका है कि लोक या सार्वजनिक परिवहन को सुधारा जाए। इसी कांसेप्ट के साथ दिल्ली सहित देश के प्रमुख शहरों में बीआरटीएस बनाया गया।

यह एक डेडिकेटेड कॉरिडोर होता है जिसमें आम लोगों की बसें ही आती जाती हैं। तय किया गया कि बसों के फेरों की संख्या ऐसी हो कि यात्री को दो मिनट से ज्यादा इंतजार न करना पड़े।

योजना तो यह भी थी कि लोग घर से साइकिल पर आएं, अपनी साइकिल बस स्टॉप के पास रखें और बसों का सफर कर कार्यस्थल पर पहुंचे। मगर, विदेशी योजना को देश की स्थिति के अनुसार परिवर्तित किए बिना मूर्खतापूर्ण ढंग से लागू करने का परिणाम यह रहा कि जनता उसके लिए लाई गई एक अच्छी योजना के खिलाफ हो गई।

अपने देसी अंदाज वाले शहरों को लंदन, पेरिस बनाने के सपने दिखाने वाले नेताओं के जुमलों की तरह अफसरों ने सिंगापुर, लंदन की तर्ज पर ही बीआरटीएस को लागू कर दिया। शहर के बीचों बीच 2 लेन सिर्फ पब्लिक ट्रांसपोर्ट के लिए छोड़ी गईं है, ताकि लोगों को ट्रैफिक जाम और सुस्त रफ्तार से छुटकारा मिल सके।

मगर, ऐसा करते समय वे नियमों के अनुसार सर्विस लेन बनाना भूल गए। वे भूल गए कि जिन शहरों में आधी से ज्यादा गाडि़यां सड़कों पर पार्क की जाती हैं, जहां आधी दुकानें और पारिवारिक आयोजन के तम्बू सड़कों पर सजते हैं, वहां पार्किंग और अतिक्रमण की समस्या हल किए बिना कॉरिडोर बनाना विवाद का कारण बनेगा।

जहां लोग लाल बत्ती पर रूकते नहीं, लेन के मुताबिक चलते नहीं, वन वे को मानते नहीं, वहां विदेशी तरीकों को अपनाते हुए साइकिल ट्रेक के लिए सड़क की जमीन हड़प लेना नागवार तो गुजरेगा ही। ऐसे कितने लोग साइकिल चलाते हैं जिनके लिए सड़क को छोटा कर लाखों के खर्च में अलग से लेन बनाई जाए?

हम भारतीयों को कुछ समय पहले तक बसों और ट्रेन में घंटों की देरी से भले कोई फर्क नहीं पड़ता था लेकिन अब जाम में देर तक उलझना हाईपर टेंशन का कारण बनता है। लोगों को समय पर बस चाहिए, अधिक आवाजाही वाले क्षेत्रों में अधिक सुलभ परिवहन चाहिए।

अभी आलम यह है कि बीआरटीएस की लंबी-लंबी बसें रखरखाव के अभाव में जर्जर हो चुकी है, न वे समय पर चलती है और न उनकी संख्या पर्याप्त है। ऐसे में जनता की नाराजगी उभरना तय है। बीआरटीएस को खत्म करने भर से यह नाराजी दूर नहीं होने वाली, क्योंकि लोगों की नाराजगी का कारण बीआरटीएस नहीं है बल्कि उनके गुस्से का कारण तो यातायात समस्या का समाधान न होना है।

सवाल यह नहीं है कि बीआरटीएस हटे या न हटे, जरूरी यह है कि सड़क से पार्किंग खत्म हो और उन्हें आवाजाही के लिए ही रखा जाए। हमें मिनी बसों की धींगामस्ती का गुजरा दौर नहीं चाहिए बल्कि मेट्रो के समानांतर वैसा ही कुशल लोक परिवहन चाहिए। हमें सही चौराहे, सही रोटरी, चालू सिग्नल, पर्याप्त ब्रिज, फ्लाय ओवर और रिंग रोड़ चाहिए। हमें लोकप्रिय निर्णय नहीं सुविधा वाला नियोजन चाहिए। यही सरकार के लिए चुनौती है कि वह आसान नहीं दूरंदेशी वाला फैसला ले।

लेखक सुबह सवेरे के स्थानीय संपादक हैं।

 



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