गरीबों के लिये बनी योजना में गरीब ही बेघर

राज्य            Nov 12, 2017


छतरपुर से धीरज चतुर्वेदी।
सुनकर आश्चर्य होगा कि मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में जिन गरीबों को मकान उपलब्ध कराने के लिये प्रधानमंत्री आवास योजना शुरू हुई। उन्हीं गरीबों के रजिस्ट्रीकृत मकानों को तोड दिया गया और अब यहां प्रधानमंत्री आवास योजना की नींव रखी जानी है। कई परिवार बेघर हो गये पर इस सवाल का जवाब आज भी नहीं मिल पा रहा कि आखिर इस पूरे मामले के लिये दोषी कौन है?

वो गरीब दोषी है जिसने जमीन खरीदी थी जिससे वो एक आशियाने का सपना पूरा कर सके? वो आखिर दोषी क्यों नहीं जिन्होंने जमीन को बेचा और वो भ्रष्टतंत्र जो किसी जमीन की रजिस्ट्री के पहले सारी वैधानिक औपचारिकतायें पूरी कराता है। मजेदार बात यह है कि जिस बगौता मौजा में सरकारी जमीन पर कब्जा करने का दावा किया जा रहा है, उस पटवारी हल्का बगौता का विधिवत और वैधानिक नक्शा तक जिला प्रशासन के पास उपलब्ध नहीं है। जिसे प्रशासन पूर्व में अदालत के मामलों में स्वीकार कर चुका है।

एमपी अजब है और गजब है। यह गजब कारनामा एक बार फिर प्रधानमंत्री आवास योजना मामले में देखने को मिल रहा है। गरीबों की छत उजाड़ दी गई और गरीबों के लिये मकान बनाये जायेंगे। जिस श्रीराम कालोनी के मकानों को गुरूवार के दिन ढहा दिया गया वो भी वैधानिकता की पूर्ति करते थे। कई वर्षो से यहां लेाग रह रहे थे। कुछ तो आठ वर्ष पूर्व बने मकान थे जिन पर बुलडोजर चला दिया गया।

प्राप्त जानकारी के अनुसार कांग्रेस के आलोक चतुर्वेदी द्धारा गरीबो को हक दिलाने के लिये एक सूची तैयार कराई जा रही है। जिसके अनुसार श्रीराम कालोनी में 53 प्लाट की रजिस्ट्री है। इन प्लाटों को कई लेागों ने बेचा। पीड़ित पजना रैकवार बताती है कि 800 वर्गफीट का प्लाट श्वेता शर्म पत्नी प्रदीप शर्मा से खरीदा था जिसकी, बकायदा रजिस्ट्रार कार्यालय से 12 दिसंबर 2012 को रजिस्ट्री हुई थी। बगौता मौजा के खसरा नंबर 19/88 में यह प्लाट क्रय हुआ। गरीबी के दौर से गुजरते इस परिवार ने पक्का मकान बनाया जिसे ढहा दिया गया।

इसी तरह इस श्रीराम कालोनी में रजिस्ट्रीयुक्त कई मकान है। जिन्हे तोड दिया गया और आज सडको पर आकर न्याय की गुहार लगा रहे हैं। किस तरह सिस्टम का भ्रष्ट तंत्र गरीबों से ही कमाता है और उसे ही चोर बना देता है।

यह मामला कई पोल खोलता है। यहां के सभी लोगों के पाास आधार कार्ड, राशन कार्ड, मतदाता परिचयपत्र है। जिसमें सटई रोड श्रीराम कालोनी का पता है। जानकारों के मुताबिक किसी प्लाट की रजिस्ट्री पूर्व उस जमीन का बकायदा मौका मुआयना रजिस्ट्रार कार्यालय द्धारा किया जाता है। पटवारी और आरआई सहित राजस्व अमला रजिस्ट्री के लिये खसरा नकल इत्यादि वैधानिक तौर पर उपलब्ध कराता है। बैधनिक प्रक्रिया से गुजरने के बाद भी प्रशासनिक दावो के तहत कैसे सरकारी जमीन पर पर कब्जा हो गया, यह गंभीर हो जाता है।

अब जिला प्रशासन अपना पल्ला झाडता दिखाई दे रहा है। तहसीलदार वर्मा के अनुसार सीमांकन कराकर नगरपालिका को बगौता मौजा में 15 एकड जमीन प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत राजस्व विभाग ने आंबटित की थी। जिसकी देखभाल की जिम्मेदारी नगरपालिका की थी। मुख्य नगरपालिका अधिकारी छतरपुर की दलील है कि अतिक्रमण में निर्मित मकानो से टेक्स वसूलना उनका अधिकार है।

सरकारी दफ्तरों के अधिकारियों की दलीलों में गरीब की व्यथा उलझ कर रह गई है। सवाल उठता है कि जब सरकारी जमीन की रजिस्ट्री हो रही थी और मकान निर्मित हो रहे थे तब प्रशासनिक अमला क्या गुल खिला रहा था। नगरपालिका उसी सरकारी जमीन पर बने मकानों से टेक्स वसूलती रही और अब उन्हें ही ढहा दिया गया। कानूनी जानकारों के अनुसार प्रशासन अगर गंभीर है तो इस मामले में प्लाट की रजिस्ट्री करने वालो और पटवारी, आरआई, रजिस्ट्रार व अन्य जिम्म्दारो के खिलाफ अपराधिक प्रकरण दर्ज किया जाना चाहिये।

सबसे महत्वपूर्ण है कि राजस्व संबधी पूर्व में अदालत में चले मामलो में जिला प्रशासन स्वीकार कर चुका है कि उनके पास बगौता मौजा का विधिवत और वैधानिक नक्शा मौजूद नही है। सवाल उठता है कि बिना नक्शा के किस आधार पर पूरी कालोनी को धवस्त कर सैकड़ों लोगों को सड़कों पर लाकर खड़ा कर दिया गया। वो भी प्रधानमंत्री आवास योजना के कारण जिसका मकसद ही गरीबों को आशियाने उपलब्ध कराना है।

 


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