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आतंकवाद पर बेबाक मोदी और भारत के विश्वगुरू बनने का एजेंडा

खरी-खरी            Sep 29, 2015


ऋतुपर्ण दवे नरेन्द्र मोदी की दूसरी अमेरिका यात्रा और संयुक्त राष्ट्र संघ को ‘आतंकवाद’ पर चेतावनी भरे में लहजे में परिभाषा स्पष्ट न करने की लताड़ को जल्द ही दुनिया भर में भारत के आत्मविश्वास और विश्वगुरू बनने के एजेण्डे के रूप में देखा जाएगा। अब जहां-तहां, राजनीतिक-कूटनीतिक पण्डित इस बयान की चीरफाड़ करेंगे और कई मायने निकालेंगे। लेकिन प्रधानमंत्री का, बेबाकी भरा लहजा और आतंकवाद पर संयुक्त राष्ट्र संघ की 70 वर्षों की कार्यशैली को घेरना, भारत की बढ़ती साख, ताकत और स्थायी सदस्यता के लिए मानवतावादी देशों से खुले समर्थन के आव्हान की कूटनीतिक रणनीति से कम नहीं है। इतना ही नहीं, अच्छे और बुरे आतंकवाद को लेकर संयुक्त राष्ट्र को कोसना, इशारों ही इशारों में पाकिस्तान का नाम लिए बिना सारा ठीकरा एक तरह से अमेरिका, चीन पर फोड़ना, लगता नहीं कि भारत विश्व पटल पर नई ताकत बनता जा रहा है? यूं तो प्रधानमंत्री ने इस दौरे में उपलब्धियों के लिहाज से नया कुछ भी नहीं गिनाया, लेकिन जिस दम-खम से उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के ढुलमुल रवैये का जिक्र किया, जरूर हैरान कर देने वाला रहा। शायद संयुक्त राष्ट्र के मठाधीशों ने भी ऐसा नहीं सोचा होगा। दूसरे शब्दों में भारत की स्थायी सदस्यता को लेकर संपन्न और ताकतवार देशों की बार-बार की टोका-टाकी, प्रधानमंत्री का आंख दिखाना और कार्यपध्दति पर ही सवाल उठाना मानवतावादी, गरीब और विकासशील देशों का झुकाव भारत की ओर करने का आव्हान ही था। शायद ऐसे बयान की उम्मीद अमेरिका को भी नहीं होगी। आतंकवाद और ग्लोबल वार्मिंग को बराबर नजरिए से देखना, अंर्राष्ट्रीय मामलों में भारत की बढ़ती दखल और हैसियत का परिचायक है। सच है, बिना आंतकवाद के खात्मे दुनिया में शांति कैसे आएगी? फेसबुक के मुख्यालय में प्रधानमंत्री एक अलग ही अंदाज में नजर आए। मार्क जुगरबर्ग से सार्वजनिक मंच पर बातचीत में मां और गरीबी पर उनका भावुक चेहरा, आम भारतीय सा नजर आया। वहीं मार्क जकरबर्ग का खुलासा कि जब फेसबुक बिकने की कगार पर थी, उनके गुरू और एपल के पूर्व सीईओ स्टीव्ह जॉब्स की सलाह पर वो बड़ी उम्मीदों के साथ भारत आए। महीने भर मंदिर-मंदिर घूमकर वो हासिल करते रहे जिसने फेसबुक को न केवल फिर खड़ा किया बल्कि अरबों डॉलर की कंपनी बन गई। मार्क जकरबर्ग ने भारत की आध्यात्मिक ताकत को विश्वमंच पर स्वीकार, हमारी संभावनाओं के द्वार का अहसास कराया। प्रधानमंत्री ने भी हाथों—हाथ बार-बार मंदिरों की याद दिलाकर मार्क जकरबर्ग को फेसबुक मुख्यालय भारत में बनाने का न्यौता दे दिया। मार्कजुबर की बात में दम है क्योंकि उपनिषद से उपग्रह तक भारत की पहुंच और पहले ही प्रयास में मंगलयान की सफलता यही बताती है। प्रधानमंत्री ने भारत की अंतरिक्ष क्षेत्र की ताकत और हैसियत का अहसास करा, धनवान देशों को भारत में निवेश का आमंत्रण भी दिया जो कि भावी रणनीति के रूप में देखा जाएगी। यकीनन यह बहुत बड़ी कूटनीतिक, आर्थिक मोर्चेबंदी जैसा ही है क्योंकि भारत में स्किल्ड मैनपॉवर की लागत दूसरे विकसित-विकासशील देशों के मुकाबले लगभग आधी से भी कम है। यह भारत के विकास के लिए मील का पत्थर ही है। हमेशा की तरह इस बार भी नरेन्द्र मोदी ने नया सूत्र ‘जैम’ (जेएएम) दिया और भारत में उनकी इसकी सफलता का ब्यौरा भी। ‘जे’ यानी जनधन बैंक एकाउण्ट जिसमें 18 करोड़ सर्वहारा वर्ग के खाते खुले और गरीबों की दरियादिली से देश को 32 लाख करोड़ रुपए का डिपॉजिट मिला। ‘ए’ अर्थात आधार कार्ड पर फोकस किया जिससे बायोमीट्रिक पध्दति से हर नागरिक की विशिष्ट पहचान बने और धोखाधड़ी को रोका जा सके। ‘एम’ अर्थात मोबाइल गवर्नेंस जो कि तकनीकी की ताकत और तुरंत पहुंच से सबको रू-ब-रू कराना है जिससे डिजिटल इण्डिया का संजोया सपना पूरा होगा। नरेन्द्र मोदी की सोशल मीडिया की जोरदार वकालत बताती है कि इस जनताकत को नकारना किसी जोखिम से कम नहीं। दुनिया भर की सरकारों के कामकाजों का यही, सही विश्लेषक है। इसी ताकत ने दुनिया में तेजी से बड़े बदलाव दिखाए। अब कुछ भी गोपनीय या देर मिलने वाली जानकारी नहीं है। सेकेण्डों में दुनिया को सब कुछ पता चल जाता है। इसलिए आने वाले समय में सरकारों के कामकाज और संचालन में महती भूमिका भी होगी। सबसे बड़ी बात यह रही कि जहां अमेरिका में भी लोकनायक बाबू जयप्रकाश नारायण को याद कर, चुनाव के वक्त बिहार के मतदाताओं पर गहरा असर डाला वहीं शहीद भगत सिंह को भी उनकी जयंती पर याद कर सभी को फिर भावविभोर कर अपनी राजनीतिक कौशलता का परिचय देने से भी नहीं चूके।बस देखना यह है कि अब प्रधानमंत्री की बेबाकी का संयुक्त राष्ट्र पर क्या असर दिखता है वह भी तब, जब भारत विश्वगुरू बनने की राह पकड़ चुका है।


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