राकेश अचल।
बचपन से पचपन पार करने तक पंडित जवाहर लाल नेहरू से माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी के भाषण सुनने का सौभाग्य इस नाचीज को है /चौदह प्रधानमंत्रियों में से पांच टोपी वाले थे और एक साफे यानि पगड़ी वाले। सबने अपने-अपने हिसाब से अपनी टोपी और पगड़ी के सम्मान की रक्षा की ,जो टोपी या पगड़ी धारण नहीं करते थे उनके पांडित्य पर भी किसी ने कभी संदेह नहीं किया ..संदेह करने का कोई कारण नहीं था।
देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पांडित्य को भी कोई चुनौती नहीं दे सकता,मैं तो आखिर हूँ ही किस खेत की मूली?लेकिन आज अजीब ये लगा कि टीवी की स्क्रीन हमारी,प्रधानमंत्री हमारा,अवाम हमारी लेकिन संबोधन लगातार पाकिस्तान की जनता को किया गया। उड़ी हमले के बाद जबाब पाकिस्तान के हुक्मरानों को दिया जाना था,बात उनसे करना थी ,हड़काना उन्हें था लेकिन हो गया उलटा। पाकिस्तान की अवाम आखिर क्या कर सकती है?अवाम को अगर दोनों देशों के रिश्ते सुधरने की सहूलियत हासिल होती तो शायद ही पाकिस्तान आतंकवाद का विश्व विद्यालय बन पाता।
बड़ी अजीब बात ये भी है कि हमारे पन्त प्रधान पाकिस्तानी अवाम से गरीबी और बेरोजगारी के मुद्दे पर मुकाबला करने के लिए कहते रहे। ये मुकाबला जनता को नहीं सरकारों को करना होता है ,लेकिन अपनी जिम्मेदारी से भागने वाली सरकारें चाहे किसी भी देश की हों ये काम नहीं करतीं। बेचारी अवाम क्या करे। मुझे नहीं लगता की पाकिस्तानी हुक्मरानों ने हमारे नेताजी का गरमा-गर्म मसालेदार भाषण अपनी अवाम को सुनने दिया होगा। अगर किसी दुसरे जरिये से पाकिस्तानी अवाम उसे सुन भी लेती तो क्या वो अपने राष्ट्र के खिलाफ आपकी नसीहत को मान लेती?कदापि नहीं। क्या हम नवाज की बातें सुनकर उन्हें मानने का अक्षम्य राष्ट्रीय अपराध कर सकते हैं ?
कोझिकौड में माननीय प्रधानमंत्री के भाषण में जितनी ऊर्जा थी उतना ही खोखलापन भी था। भारत की जनता मूर्ख नहीं है,उसे पता है कि 17 महीने में देश में कितने आतंकी मारे गए और कितने सैनिक शहीद हुए। पाकिस्तान का हर आतंकी भारत में मारने और मरने के लिए ही आता है। आतंकी एक मरता है लेकिन हमारे जवान एक के बदले चार मारे जाते हैं। हमसे हर बार सुरक्षा चूक होती है और हम बगलें झांकते दिखाई देते हैं।
अपने दोस्तों और दुश्मनों से किस भाषा में बात करना चाहिए यदि किसी को ये नहीं आता हो तो उसे प्रधानमंत्री कार्यालय के संदर्भ कक्ष में रखे पूर्व प्रधानमंत्रियों के भाषण जरूर पढ़ना चाहिए। पंडित नेहरू और इंदिरा गांधी के भाषणों से अगर एलर्जी हो तो लालबहादुर शास्त्री ,मोरारजी देसाई,चौधरी चरण सिंह के भाषणों को पढ़ा जा सकता है। राजीव गांधी के भाषण न पुसाते हों तो वीपी सिंह ,चंद्र शेखर,और पीव्ही नरसिंह राव के भाषण नजीर बनाये जा सकते हैं। भाजपा के ही श्री अटल बिहारी वाजपेयी,एचडी देवगौड़ा ,इंद्र कुमार गुजराल और डॉ मनमोहन सिंह के भाषण पांडित्य के लिहाज से कभी सतही नहीं रहे। सतही तो माननीय नरेन्द्र मोदी का भाषण भी नहीं कहा जा आसकता,क्योंकि उनका भाषण तो सर के ऊपर से उड़ जाता है। उसे केवल शाखामृग ही समझ सकते हैं। शेष अवाम के लिए उनका भाषण किसी पहेली से कम नहीं है। आज का भाषण तो सबसे बड़ी पहेली रहा।
उडी हमले के एक सप्ताह बाद प्रधानमंत्री जी के भाषण का पूरे देश को बेसब्री से इन्तजार था। किंतु उन्होंने देश के अवाम के बजाय जब पाकिस्तानी अवाम से बात शुरू कर दी तो देशवासियों का निराश होना स्वाभाविक था,देश की इस निराशा को भला कौन दूर करेगा। देश उडी हमले के बाद पाकिस्तान से युद्ध नहीं प्रतिकार की मांग कर रहा है। देश की और से क्या कूटनीतिक प्रयास हो रहे हैं वे नजर आना चाहिए। ठीक है सीमा पर सेना क्या रणनीति अपना रही है ये देश को नहीं बताया जा सकता लेकिन कूटनीतिक उपायों के बारे में तो खुलासा किया जा सकता है। न हमने अपने राजदूत वापस बुलाये, न कोई प्रतिबंध लगाया और न ही ऐसा कोई कदम उठाया कि दुश्मन पशोपेश में दिखाई दे। बलोचिस्तान का मुद्दा उठाकर जैसे हम अवाम का ध्यान बंटा रहे हैं वैसे ही पाकिस्तान, कश्मीर का मुद्दा ऊठाकर अपने अवाम को भटका रहा है। इसे सियासत कहते हैं,यहां भी और वहां भी। अवाम इस सियासत को जानती है। जब सरकारें असल मुद्दों पर नाकाम होने लगतीं हैं तो उन्हें मजबूरी में आएसी सियासत करना पड़ती। पहले भी ऐसा हुआ है।
इस देश में कुछ महीनों के लिए प्रधानमंत्री बने राजनेताओं ने भी ऐसी गलती नहीं की कि किसी दुसरे देश के अवाम को अपने देश से संबोधित किया हो। लेकिन ये एक नयी परंपरा शुरू हुई है। हम शत्रु देश के शासकों से नहीं बल्कि वहां की अवाम से बात करके मसले सुलझाने की कवायद करेंगे। मुबारक हो!मुबारक हो!मुबारक हो!
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