कीर्ति राणा।
कभी इंदौर में नईदुनिया का एक तरफा साम्राज्य था, जैसा राजस्थान में राजस्थान पत्रिका का हुआ करता था। इंदौर में दैनिक भास्कर के शुरु होने के बाद नईदुनिया का यही गुरूर 1983 से चूर चूर होना शुरु हुआ, जैसे राजस्थान में जयपुर से दैनिक भास्कर के प्रकाशन के साथ पत्रिका का हुआ ।
16 जुलाई का दैनिक भास्कर (इंदौर) देख कर लगा कि यह भी नईदुनिया की राह पर चल पड़ा है। इसमें आज दो महत्वपूर्ण खबरें नदारद हैं जो पाठकों की च्वाइस की हैं। एक तो पत्रकार कल्पेश याग्निक को आत्महत्या के लिए मजबूर करने वाली सलोनी अरोरा की फर्जी जमानत मामले में मल्हारगढ़ से गिरफ्तारी और दूसरी खबर शहर के नामचीन वकील पीके शुक्ला के निधन की खबर ।
पहले बात सलोनी अरोरा की गिरफ्तारी की
दैनिक भास्कर में पत्रकार रही सलोनी अरोरा के कथित हनी ट्रेप (सिद्ध होना बाकी है) और मानसिक यंत्रणा के कारण कल्पेश याग्निक (तब दैनिक भास्कर समूह के नेशनल एडिटर थे) को आत्महत्या जैसा कदम उठाना पड़ा था। उनके निधन के समाचार को भी भास्कर ने अपनी लाज बचाते हुए तोड़मरोड़ कर प्रकाशित किया था।
स्व याग्निक की मौत के तीसरे (उठावने) दिन से ही भास्कर ने एक तरह से इस कांड से खुद को अलग कर लिया था। तब से अब तक उनके छोटे भाई नीरज याग्निक अपने बलबूते पर ही कोर्ट में लड़ाई लड़ रहे हैं।
इंदौर पुलिस की क्राइम ब्रांच को सलोनी अरोरा को मल्हारगढ़ से गिरफ्तार करने मे जो कामयाबी मिली वह भी नीरज द्वारा दी गई जानकारी पर ही। सलोनी ने अपनी जमानत के लिए दो बार जिन जमानतदारों की मदद ली थी उनमें से एक आदतन जमानतदार होने से कोर्ट ने उस पर रोक लगा रखी थी, फिर भी सलोनी की उसने जमानत दी, दूसरी जमानतदार उसकी भाभी थी जिसने कोर्ट में आवेदन देकर सलोनी की जमानत मामले से खुद को अलग कर लिया था।
दोनों जमानत स्वत: रद्द हो जाने पर पुलिस ने तो सलोनी की खोजबीन में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई लेकिन अपने बड़े भाई की असमय मौत और परिवार को न्याय दिलाने के लिए पहले दिन से ही संघर्षरत नीरज ने ही पुलिस को सलोनी के मल्हारगढ़ में होने की खबर दी । इसी आधार पर पुलिस उसे वहां से मंगलवार की रात लेकर आई, कोर्ट में पेश किया और जेल भेजा जा सका।
मंगलवार की रात से ही सलोनी की गिरफ्तारी से जुड़ी पल पल की खबर, उसे पुलिस कस्टडी में लिए जाने के फोटो सोशल मीडिया पर वॉयरल थे। आज बुधवार को दैनिक भास्कर के अलावा लगभग सभी दैनिक, सांध्य दैनिक समाचार पत्रों और न्यूज साइट पर यह खबर है। बस दैनिक भास्कर में ही नहीं है । जिसे बोलचाल की भाषा में कहते है भास्कर में क्राइम की हगी-मूती खबरें तो हैं लेकिन सलोनी अरोरा लापता है।शायद इसलिए यह खबर भास्कर में नहीं है कि कल्पेश याग्निक का नाम लिखना पड़ेगा तो पाठकों को भास्कर की याद आएगी।
एक झांसेबाज युवती के जाल में फंसकर आत्महत्या करने को मजबूर हुए कल्पेश याग्निक के परिजनों के दर्द का भी लिहाज नहीं किया, सलोनी की गिरफ्तारी से नजरें चुरा ली भास्कर ने और यह भी साबित कर दिया कि ‘सच के साथ’ लिखना और सच का साथ देने में कितना फर्क है। इस खबर का भास्कर में ना होना यह भी साबित कर रहा है कि बस उनके उठावने तक ही भास्कर इस परिवार के साथ था। उसके बाद दूध में से मक्खी की तरह फेंक दिया।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं यह टिप्पणी उनके फेसबुक वॉल से लिया गया है।
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