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ऐसे तो धुलने से रहा व्यापमं का पाप...?

खरी-खरी            Jun 29, 2015


ममता यादव मन कसैला सा हो गया है व्यापमं मामले में सरकार का चरित्र देखकर। किस प्रदेश के निवासी हैं हम। लाखों गरीब, योग्य मासूम बच्चों का भविष्य बर्बाद कर दिया गया नोटों की खातिर। जो आरोपी बनाये गये हैं उनमें से भी कितने गुनहगार हैं कितने बेगुनाह कोई हिसाब नहीं। दीनहीन सा मुंह लिये सरकार के लोग कहते हैं किसी जांच की जरूरत नहीं। और सूबे के मुखिया ने मौन धारण किया हुआ है। उनकी नजर में सब विपक्षियों की चाल है। सारे सबूत सारे दस्तावेज..... जय हो मामाजी की हद हो गई ये तो। अगर व्यापमं मामले के आरोपियों और गवाहों की मौत की ही बात करें तो इसके भी सही—सही आंकडे नहीं हैं। बेशक गृहमंत्री सही कह रहे हैं कि मौत तो सबकी आनी है राजा को भी रंक को भी जो आया है वो जायेगा। मगर गौर साहब इस बात पर भी तो गौर कर लेते कह किस संदर्भ में रहे हैं। देश में शिक्षा के नाम पर इस देश के युवाओं से हमेशा से मजाक होता रहा है,लेकिन मध्यप्रदेश में व्यापमं से लेकर पीएससी तक के घोटाले वो घोटाले हैं जिनमें उन युवाओं के साथ अन्याय हुआ है जो सालों अपनी जिंदगी के कीमती घंटे प्रिपरेशन में बर्बाद करते हैं। बहरहाल, पता नहीं क्यों जबसे यह घोटाला सामने आया एक सवाल रह—रहकर परेशान करता है और वो सच हो भी तो हैरानी नहीं होगी मुझे और वो यह कि मध्यप्रदेश के मुख्यमत्री सपत्नीक कन्यादान बहुत करते हैं। बुंदेलखंड में तो यह कहा जाता है, माना जाता है और परंपरा भी है और पूरे भारत में भी होगी कि मामा भांजियों का कन्यादान करे तो कई जन्मों का पुण्य मिलता है और कई जन्मों के पाप धुल जाते हैं। मध्यप्रदेश में हर साल सामूहिक विवाह होते हैं कन्यादान योजना के तहत। मुख्यमंत्री सपरिवार शामिल होते हैं इन आयोजनों। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह बुजुर्गों को तीर्थयात्रा करवा रहे हैं। ये भी पुण्य कमाने और पाप धोने का एक तरीका माना जाता है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह यह सब करके अपने आपको धोखा तो दे सकते हैं कि सब ठीक हो जायेगा। लेकिन क्या इस सबसे वाकई बैकुंठ में पहुंच जायेंगे? मेरी इस राय से कोई इत्तेफाक रखे या नहीं परवाह नहीं लेकिन सच ही है कि शिवराज सिंह ने मुख्यमंत्री बनने के बाद हर चीज को साधा है। मीडिया को, जनता को और जो राह में रोडा बन सकते थे उन्हें ऐसा निपटाया है कि राजनीतिक कैरियर ही खत्म हो गया। लक्ष्मीकांत को व्यापमं में और राघवजी को सीडीकांड में। व्यापमं मामले में एक नहीं पूरी सरकार के लोगों की एक सी प्रतिक्रिया होती है। आज कैलाश विजयवर्गीय और उमाशंकर गुप्ता के भी गौर से मिलते—जुलते बयान सुनाई और दिखाई दिये मगर मीडिया ने लपेटा सिर्फ गौर को। इस मामले में ऐसी बातें करने वालों का जमीर उन्हें धिक्कारता भी है कि नहीं? या जमीर आत्मा जैसी कोई चीज है भी कि नहीं? व्यापमं मामले पर जोरदार हंगामा करने वाली कांग्रेस भी बतौर ​विपक्ष कोई चमत्कार नहीं दिखा पा रही है। कांग्रेस के हर वार की काट है मुख्यमंत्री के पास। उदाहरण इससे बडा कुछ नहीं हो सकता कि हाईकोर्ट से भी क्लीनचिट ले आये। व्यापमं मामले में एक चीज बहुत साफ है कि बडी मछलियों को बचाने के लिये छोटी मछलियों की बलि ली जा रही है। यहां तक मध्यपदेश के राज्यपाल रामनरेश के बेटे की मौत भी संदिग्ध रही। परिवार ने जांच और पोस्टमार्टम से भी मना कर दिया। राज्यपाल पर भी आरोप हैं लेकिन गर्वनर साहब को पद का लाभ मिल गया सो एफआईआर तक दर्ज नहीं हुई। ये एक अकेला ऐसा व्यापक घोटाला है जिसमें प्रदेश के गर्वनर, मंत्री,संत्री,चपरासी एक और पता नहीं कौन—कौन शामिल हैं। एसआईटी की जांच चल रही है,सालों से चल रही है कभी पूरी नहीं होगी। एसआईटी ने भी जांच का जो तरीका अपनाया वह कोई मानवीय नहीं था। पता नहीं कितने लडके—लडकियों को जेल में ठूंस दिया गया। और मामाजी के मुंह से यह तक नहीं फूटा कि किस आधार पर कार्रवाई का ये तरीका अपनाया जा रहा है। सवाल बहुत सारे हैं,लेकिन सारे सवालों पर ये सवाल भारी हैं कि क्यों भाजपा सरकार के खिलाफ इस मामले के सारे सबूत हाईकोर्ट तक जाकर झूठे हो जाते हैं? क्यों सरकार इस मामले को सीबीआई को नहीं सौंपना चाहती है? कांग्रेस इस मुद्दे को अचानक से जोर—शोर से उठाकर बैकफुट पर क्यों चली जाती है? कांग्रेस पर सवाल इसलिये भी कि राजधानी में जब भी किसी बडे नेता की कॉन्फ्रेंस हुई है उनसे व्यापमं के बारे में सवाल किया गया ये पूछा गया कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी इस मामले में कुछ क्यों नहीं बोलते जवाब मिला ये प्रदेश का मुद्दा है। लाखों छात्रों के भविष्य से खिलवाड करने वाला ये मुद्दा सिर्फ प्रदेश स्तर का कैसे हो सकता है? और सबसे बडा सवाल हमारे 56 इंच की छाती वाले पीएम मोदी से क्या हुआ न खाउंगा न खाने दूंगा का? अपनी ही पार्टी की सरकार पर कोई कार्रवाई उनकी तरफ से क्यों नहीं की जा रही है? और सौ बातों की एक बात व्यापमं के पाप इतनी आसानी से तो नहीं धुलेंगे।


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