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कश्मीरियत का दुश्मन बन गया है मसरत

खरी-खरी            Apr 19, 2015


सिद्धार्थ शंकर गौतम जम्मू-कश्मीर के शीर्ष अलगाववादी नेता मसरत आलम ने एक बार फिर राज्य सरकार के माथे पर बल ला दिए हैं। बुधवार को श्रीनगर में अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी की रैली में मसरत आलम भी शामिल हुआ था और उसने रैली में पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगवाए थे। इस रैली मे पड़ोसी मुल्क का झंडा भी लहराया गया था। इतना ही नहीं, रैली में मौजूद भीड़ ने वहां तैनात पुलिस बल की गाड़ियों पर पत्थर भी फेंके थे। विवाद बढ़ने पर देर शाम मसरत आलम, गिलानी समेत कई नेताओं के खिलाफ बड़गाम थाने में एफआईआर भी दर्ज की गई थी। एफआईआर दर्ज़ होने के बाद भी मसरत ने बेफिक्री से बयान दिया था कि उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मसरत का कहना था कि मेरे ऊपर कई मामले दर्ज हैं, एक और सही। मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। हालांकि अब मसरत इस मामले में सफाई देते हुए कह रहा है कि उसने पाकिस्तान का झंडा नहीं लहराया है और वह आगे कानून का पालन करेगा। ऐसी भी सूचना है कि रैली के दौरान पाकिस्तानी आतंकी जकीउर रहमान लखवी ने मसर्रत आलम से बात की और घाटी में आतंक फैलाने का निर्देश दिया। इस बीच, मसरत के पास 15 से 20 कॉल पाकिस्तान से आए। केंद्र सरकार पाकिस्तान से आए कॉल्स और यहां कॉल रिसीव करने वाले व्यक्ति के आवाज की सैंपल की जांच करवा रही है। शुक्रवार को मसरत की गिरफ्तारी से इस मामले की और परतें खुलने का अंदेशा है। kashimr-railly मसरत आलम को अलगाववादी हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी का करीबी माना जाता है। मसरत २००८-१० में राष्ट्रविरोधी प्रदर्शनों का मास्टरमाइंड रहा है। उस दौरान पत्थरबाजी की घटनाओं में ११२ लोग मारे गए थे। यह मामला अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काफी चर्चित रहा था। मसरत के खिलाफ देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने समेत दर्जनों मामले दर्ज थे। मसरत पर संवेदनशील इलाकों में भड़काऊ भाषण के आरोप भी लग चुके हैं। मसरत आलम को अक्टूबर 2010 में श्रीनगर के गुलाब बाग इलाके से 4 महीने की मशक्कत के बाद गिरफ्तार किया गया था। उसपर दस लाख रुपये का इनाम भी था। मसरत 2010 से पब्लिक सेफ्टी एक्ट यानी पीएसए के तहत जेल में बंद था। मसरत की रिहाई के बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस ने कहा था कि पिछले चार साल से कश्मीर में शांति की एक बड़ी वजह यही थी कि मसरत आलम जेल में था। दरअसल मार्च में मसरत आलम की रिहाई के बाद से ही यह आशंका जताई जा रही थी कि मसरत भले ही मुफ़्ती मोहम्मद सईद की कृपा से रिहा हो गया है किन्तु वह अपनी बेजा हरकतों से उन्हें परेशानी में ज़रूर डालेगा। ताज़ा प्रदर्शन में मसरत आलम ने यह सिद्ध कर दिया है कि वह कश्मीर की अवाम को चैन से तो नहीं रहने देगा। आलम की राजनीतिक रिहाई करवाकर मुफ़्ती ने कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी की ओर बातचीत का जो हाथ बढ़ाया था, निश्चित रूप से वह अब वापस लौट आया है। उधर केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने भी मुफ़्ती सरकार को स्पष्ट संदेश दिया था कि वे मसरत को जल्द से जल्द गिरफ्तार करे। हालांकि मुफ़्ती सरकार का यह कहना कि 'मसरत मामले में कानून अपना काम करेगा' यह संकेत कर रहा है कि राज्य में भाजपा-पीडीपी गठबंधन सरकार जिस कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के तहत बनी थी, उसमें अब भी बहुत से झोल हैं। खैर यह पूर्णतः राजनीतिक मसला है मगर सोशल मीडिया से लेकर आम हिंदुस्तानी के मन में मसरत आलम के प्रति जो गुस्सा दिख रहा है, वह अद्वितीय है। और हो भी क्यों न, खाते हमारे यहां हैं, रहते हमारे यहां हैं और प्यार पडोसी दुश्मन मुल्क पर दिखाते हैं। यदि मसरत आलम और उनके समर्थकों को पाकिस्तान से इतना ही स्नेह है तो वे सभी एक बार पाकिस्तान ज़रूर जाएं। उन्हें वहां के हालात देखकर खुद के लिए खुदा से मौत की दुआ करना पड़ेगी। मसरत आलम जैसे दोगले 'सांपों' को मुफ़्ती सरकार जितनी इज़्ज़त, मान-सम्मान और आज़ादी देगी, वे उतना ही फुंकारेंगे। केंद्र सरकार मुफ़्ती से दोस्ती निभाकर परिणाम भुगत चुकी है और यह सही मौका है कि मसरत मामले में मुफ़्ती को उनकी जमीन दिखा दी जाए। वैसे भी मसरत जैसे लोग कश्मीरियत के दुश्मन हैं और इनपर रहम करना अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा। इन पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई होना ही चाहिए।


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