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कांवर ढोए हरि मिले, तो मैं ढोऊं पहाड़!

खरी-खरी            Aug 06, 2015


chaitanya-naagar-bloger चैतन्य नागर आया सावन झूम के और साथ में आये कांवरिये घूम घूम के, लाये मुसीबतों की बारिश उनके लिए जो धर्म और धार्मिकता का सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं चाहते। जो नास्तिक हैं, अग्नॉस्टिक हैं, जिन्हे धार्मिक रूढ़ियों से एलर्जी है, जिन्हे हिंदुत्व का अर्थ कुछ और ही समझ में आता है, जो रेशनलिस्ट हैं, उनके लिए इस देश में बड़ी कम स्पेस बची है। अब आप निकल कर देखिये हाई-वे पर कांवरियों का नंगा नाच! एक तो ये ऐसे ही आधे नंगे रहते हैं—कच्छा बनियान पहने और फिर धार्मिक उन्माद की नंगई ऊपर से। यह उपद्रव उत्तराखंड से शुरू होकर पूरे हिंदी बेल्ट और बंगाल में भयंकर रूप में देखा जा सकता है, पर मैं ख़ास कर दिल्ली-कोलकाता वाले हाई-वे की बात करूंगा क्योंकि इसपर मैं अक्सर आता जाता हूं। यह फोर लेन हाई-वे है और बीच में डिवाइडर है। सावन के महीने में इसे एक ओर पूरा बंद कर दिया जाता है , और उसपर सिर्फ कांवरिये चलते हैं। और कोई नहीं। बाक़ी सभी वाहन एक ही ओर से आते जाते हैं। पूरे महीने की असुविधा है यह, और आपको जितनी बड़ी इमरजेंसी हो आप दूसरी ओर ड्राइव कर ही नहीं सकते। प्रशासन इतनी सतर्कता और संवेदनशीलता दिखाता है इन्हे बचाने में कि कम से कम ट्रैफिक के मामले में इतनी सतर्कता तो मैंने कभी नहीं देखी। इस प्रशासनिक सतर्कता का कारण है भय, क्योंकि कांवरियों को ऐसा महसूस भी हो कि कोई कार या बस छूने जा रही हैउन्हें, तो फिर तो जो बवाल काटेंगे सब मिलकर कि आप को शिव का सर्प ही सूंघ जाएगा। पुलिस वाले भी दूर ही रहते हैं, कौन कांवरिया के छत्ते में हाथ डाले! पूरे रास्ते इन अराजक, उत्पाती कांवरियों की सेवा के लिए पूरे सरकारी इंतज़ाम किए जाते हैं। उनकी बदसलूकी करने की आज़ादी का पूरा सम्मान किया जाता है। इनके साथ कई लाउड स्पीकर्स चलते हैं और जो ध्वनि प्रदूषण होता है, उसके क्या कहने! जुलाई-अगस्त में बारिश रुकने पर जानलेवा धूप पड़ती है, और हाई वे पर ट्रैफिक नियंत्रण का असर आस पास के शहरों पर भी पड़ता है। मैंने खासकर सोमवार को स्कूली बच्चों और दफ्तर जाने वालों को कई तकलीफों का सामना करते देखा है। बच्चे धूप में जलते अपने रिक्शे, ट्राली में दुबके बैठे रहते हैं, और फूहड़ फ़िल्मी गीतों पर परम भक्त उछलते-कूदते हैं, बच्चों के रास्ते रोककर। सोमवार का महत्व होता है सावन में। रविवार और मंगलवार को आप ट्रेनों में भी उत्पात देखेंगे इस पूरे बेल्ट में। क्योंकि ये कांवरिये वापस लौटते हैं, या कभी मंदिर पहुंचने की जल्दी में रहते हैं। थक कर चूर या हड़बड़ी में जब ये ट्रेनों में चढ़ते हैं तो आप की रिजर्व्ड बर्थ हो चाहे कुछ भी, आपके साथ छोटे बच्चे हों, या बूढ़े माँ बाप, ये आपको ठेल ठाल कर आपकी सीट कब्जिया लेंगे ज़रुर। कोई इसलिए नहीं बोलता क्योंकि मॉब मेंटलिटी से जोखिम कौन मोल लेगा। पता चला भोले शंकर की जगह आप का ही अभिषेक कर डालें! कांवर शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के ‘कावरांथी’ शब्द में है, जिसका अर्थ है बांस की एक ख़ास किस्म की बहंगी जिसमे दोनों और एक सी पिटारियां लटकी हों।पुराण बताते हैं जब समुद्र मंथन में विष निकला तो शिव नेउसे अपने गले से उतार लिया क्योंकि उस विष की वजह से धरती जलने लगी थी। फिर त्रेता युग में रावण ने एक कांवर से पानी लाकर शिवलिंग पर डाला तो शिव के शरीर से विष की जलन ख़त्म हुई। तो कांवर यात्रा की शुरुआत रावण ने की ।पर रावण तो विलन है पूरा। दशहरे पर उसे धूमधाम से जलाया जाता है। किडनैपिंग और अटेम्पटेड मोलेस्टेशन के गंभीर आरोप हैं उसपर। पूरी एक सत्तारूढ़ पार्टी उसके विपक्षी 'भगवान' के समर्थन में खड़ी है; ऐसे में तो रावण की परंपरा राम भक्तोंया हिन्दुओं को नहीं माननी चाहिए। रावण का, उसके किसी भी अवशेष का समर्थन करना, राम विरोधी होना है। इतने बड़े राम-विरोधी खलनायक की शुरू की हुई परंपरा को भाजपा राज में भी लोग मान रहे हैं? मैंने सुना है कि कांवरिये करीब 100 किलो मीटर की यात्रा पैदल पूरी करते हैं। और करीब एक डेढ़ महीने पहले से चप्पल जूते पहनना छोड़ देते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि सख्त सड़क पर नंगे पांव चलना पड़ता है। मैराथन रेस 42 किलो मीटर की होती है। धर्म के नाम पर युवक, युवतियां इतना चल लेते हैं, तो फुल मैराथन या हाफ मैराथन इनके लिए ज़्यादा कठिन नहीं होनी चाहिए। पर आप खुद देखिये कि अंतर्राष्ट्रीय एथलेटिक्स में हमारी क्या पोजीशन है। मेरे दोस्त और लेखक संजीव का कहना है: "मेरे समझ नहीं आता शिव ने किस बुरी घड़ी में कहा कि इतना हाहाकार मचाते हुए मेरे ऊपर गंगाजल लाकर चढ़ाओ! कहते हैं कि गंगा शिव की जटाओं से निकल रही है!! जब सबसे शुद्ध, ताजा गंगाजल शिव की जटाओं से ही निकल रहा है तो जगह-जगह से प्रदूषित गंगाजल शिव के ऊपर चढ़ाना कौन-सी धार्मिक क्रिया है?" मैं थोड़ा और प्रैक्टिकल होकर सोचता हूँ। शिव पर पानी चढ़ाता हूं, क्योंकि मुझे दादा-परदादा-लक्कड़दादा ने बताया है कि शिव पर चार लोटा दूध-पानी डालो तो मन के अरमान पूरे होंगे, शिव खुश होंगे और बढ़िया-बढ़िया आशीर्वाद देंगे। शिव मेरे आराध्य भी हैं, उनसे प्रेम भी है। मैं अपने मित्र से भी प्रेम करता हूं। मैं उसके घर जाऊं, 100 किलो मीटर चल कर और उसपर चार लोटा पानी डाल दूं, तो उसकी क्या प्रतिक्रिया होगी! या फिर मेरा कोई मित्र मुझसे 100 किलो मीटर चल कर आये और मुझपर दूध डाल दे, तो मैं तो ऐसी की तैसी कर दूं उसकी। प्रेम और श्रद्धा व्यक्त करने का यह कौन सा तरीका है? अब जब आपको ही कोई बात पसंद नहीं, वही आप उनके साथ कैसे कर सकते हैं जिन्हें आप अपना भगवान मानते हैं? चैतन्य नागर के ब्लॉग हंसा जाई अकेला से


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