सचिन कुमार जैन।
मध्यप्रदेश का श्योपुर जिला कई सालों से संकट में है।गुजरात से शेर लाने थे, नहीं आये। विस्थापन जरूर हुआ। सहरिया आदिवासी टुकड़ों-टुकड़ों में जोड़ कर जिंदगी को पूरी करने की कोशिश करता रहा। अक्सर कईयों की जिंदगी में टुकड़े जोड़ने की प्रक्रिया ही शुरू नहीं हो पाती, क्योंकि बीमारी और कुपोषण का दुष्चक्र बच्चों को खड़े ही नहीं देता,जान ले लेता है।
हम अक्सर आंगनवाड़ी और स्वास्थ्य केंद्र की बहस में फँस जाते हैं, पर यह भूल जाते हैं कि स्वास्थ्य और पोषण के लिए आजीविका के स्रोत चाहिए; जो सहरियाओं से छीन लिए गए हैं। पानी, रोटी, रोज़गार और सम्मान का अधिकार हमारा राज्य और समाज उन्हें नहीं देता है। जो वर्ग सत्ता में है, उसे भ्रष्टाचार करने का पूरा अधिकार है। भोपाल से घोषणाएं होती है, और उन घोषणाओं को आग में जलाकर विकास दर का आंकड़ा पकाया जाता है।
श्योपुर इस बात का उदाहरण है कि, हम सामाजिक संगठन भी निष्प्रभावी साबित हुए हैं। हम राज्य-बाज़ार के बनाए जाल में फँस गए हैं। हम नहीं देख पा रहे हैं कि अस्पताल, मलेरिया-डेंगू की जांच, पोषण आहार, इलाज़ से लेकर पानी तक तो निजी क्षेत्र को बेचा जा रहा है।
अब बाज़ार तो संविधान का पालन करेगा नहीं। बाज़ार तो जंगल छीनेगा, जल छीनेगा, हवा छीनेगा, खेत छीनेगा, उपज छीनेगा, जड़ी-बूटी छीनेगा, शहद छीनेगा, कांड और भाजी छीनेगा......और छीन कर झूठी सरकारी घोषणाएं करवाएगा।. ये घोषणाएं भी हमारे सरीखे संस्था वाले भी करवाते हैं। कुछ राष्ट्र की संस्थाएं होती हैं और कुछ अंतर्राष्ट्रीय। आज से पांच महीने पहले भी एक ऐसी ही रिपोर्ट सरकार को दी गयी थी। उन्होंने गंभीर कार्यवाही की और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता को हटा दिया। कितनी मासूमियत से कार्यवाही करते हैं सरकार वाले।
नीति और व्यवस्था के भ्रष्टाचार का श्रृंगार करने के लिए मैदानी कार्यकर्ताओं की बलि ली जाती है। उन लाशों से श्रृंगार होता है। हम सच नहीं बोल पाते क्योंकि हमारे भी अपने हित है। कहीं धंधा न चौपट हो जाए। ये 19 बच्चे तो खबर बन गए, किन्तु ये 19 बच्चे बाल-संहार की प्रक्रिया के कुछ उदाहरण भर हैं। इन्हें आधार बना कर सरकारें आंगनवाड़ी, स्वास्थ्य केंद्र और दूसरी जरूरी सेवाओं को निजी क्षेत्र पर ठेके पर देने के लिए उठ खड़ी होंगी। उनके लिए तो 19 बच्चों की मौत अवसर है सेवाओं के निजी करण का।
समाज भी खुशी—खुशी उस नीति को स्वीकार कर लेगा क्योंकि उसे यह भ्रम होता है कि निजी क्षेत्र उनकी जान की सुरक्षा करेगा। कुछ और नहीं होगा तो अब पैकेट बंद भोजन, दवा युक्त भोजन, कोई नया उत्पाद लेकर कोई संस्था "कुपोषण और बाल मृत्यु" के मेले में अपनी दुकान सजा लेगी। कोई यह नहीं कहेगा कि कुछ मत करो अच्छा भोजन और पानी ही सुनिश्चित कर दो। कुपोषण का इलाज़ भोजन है। नियमित रूप से, विविधता पूर्ण, अच्छी गुणवत्ता का, सम्मान के साथ, हर समय उपलब्ध होने वाला; जरा सोचिये कि भोजन कैसे मिलेगा? खेती से, जंगल से, रोज़गार से, नदी और झील से, स्थानीय बाज़ार से, जनकल्याणकारी राज्य से.......विद्वान लोग कोई नयी तालिका बना रहे होंगे।
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