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गुर्जर आन्दोलन:कहाँ थीं मोदी और सिंधिया की सरकारें..?

खरी-खरी            May 28, 2015


श्रीप्रकाश दीक्षित पाँच फीसदी रिजर्वेशन को लेकर गुर्जरों द्वारा रेल और सड़क मार्ग को जाम करने की अराजकता के सामने केंद्र और राज्य दोनों सरकारें असहाय दिखीं। रेल मुसाफिरों, रेल संपति और रेल मार्गों की हिफाजत के लिए रेल्वे पुलिस और आरपीएफ का अमला तैनात रहता है। जिस सूबे से रेल गुजरती हैं वहाँ की सरकार की भी जवाबदारी रहती है। इसके बावजूद दोनों सरकारें हाथ पर हाथ धरे बैठी रहीं और गुर्जरों की दादागिरी चलती रही।अब यह कह कर भी नहीं बचा जा सकता है की राज्य या केंद्र ने सहयोग नहीं किया क्योंकि दिल्ली और जयपुर दोनों जगह बीजेपी की सरकारें हैं। बहुत जरूरी था की सड़कों और रेल लाइनों को बंधक बनाने वालों को हुकूमत की ताकत का एहसास कराया जाता, पर लगता है सुशासन भी चुनावी जुमला ही है..! आन्दोलन से रेल्वे को करोड़ों-करोड़ों का नुकसान हुआ जो हमारे आपके पैसे की ही बरबादी है। ऐसा लगता है की भारतीय जनता पार्टी आंदोलन से होने वाले नफा-नुक्सान का आंकलन करने मे लगी रही और रेलों तथा मुसाफिरों को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया। महीनों पहले रिजर्वेशन कराने वाले मुसाफिरों की दुर्गति का सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है। आंदोलन के डर से ट्रेनों के मार्ग बादल दिए गए जिससे इस भीषण गर्मी मे मुसाफिर लुटते-पिटते अपनी मंजिल तक पहुँच पाए। कई ट्रेनों मे मुसाफिर भी बगावत पर उतार आए थे।बहुत शोर सुनते थे वसुंधरा सिंधिया की दूसरी पारी का, पर एक ही झटके मे असलियत उजागर हो गई। ऐसा लगा ही नहीं की केंद्र और सूबे की सरकार कहीं मौजूद रही हो, हर तरफ रामराज था।


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