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गौर करिये पेटलावद हादसे का प्रशासन के साथ असली गुनाहगार कौन?

खरी-खरी            Sep 13, 2015


ममता यादव इस बात में कोई गुंजाइश नहीं रह गई है कि पेटलावद हादसा प्रशासनिक लापरवाही का नतीजा है। मिल रही जानकारी के अनुसार इसकी शिकायत ज़िलाधिकारी से जन सुनवाई में की गई थी लेकिन इसके बावजूद प्रशासन की तरफ़ से कोई कार्रवाई नहीं की गई। इस विस्फोट में कम से कम 100 लोग मारे गए हैं और 90 लोग घायल हुए हैंं। विस्फोट कितना भयंकर था इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मौके पर ही लोगों के चिथड़े उड़ गये। आज तक मानव अंग यहां—वहां छितरे पड़े हैं। झाबुआ के प्रभारी मंत्री अंतर सिंह आर्य ने के अनुसार पहले सिलेंडर में धमाका हुआ और फिर पास के एक मकान में रखी जिलेटिन की छड़ों में धमाका हो गया, जिससे बड़े पैमाने पर नुक़सान हुआ। जिस व्यक्ति ने अपने पास ये छड़ें रखी थी उसके पास इसका लाइसेंस तो था लेकिन विस्फोटक तय मात्रा से ज़्यादा था। गोदाम जिस व्यक्ति की थी वह भाजपा का कोई स्थानीय पदाधिकारी बताया जा रहा है और घटना के बाद से ही परिवार सहित फरार है। बहरहाल यहां काबिल—ए—गौर बात यह है कि दोष सारा प्रशासन पर मढ़ा जा रहा है। नि:संदेह प्रशासन है जिम्मेदार लेकिन क्या इस बात पर गौर करना भी जरूरी नहीं है कि सत्तारूढ़ पार्टी के हाथों प्रशासनिक अधिकारी किस तरह कठपुतली बने हुये हैं? एक नहीं ऐसे कई पेटलावद हैं जो बारूद के ढेर पर बैठे हुये हैं। भरी आबादी के बीचों—बीच कई शहरों में ऐसी दुकानें और गैस एजेंसियां हैं। यहां तक कि चूल्हे सुधारने का बोर्ड लगाकर ब्लैक में रसाई गैस के सिलेंडर बेचे जाते हैं। सवाल है कि आखिर पॉवरफुल लोगों के लिये लायसेंस लेना इतना आसान क्यों है? क्यों लायसेंस देते समय पूरी प्रक्रिया का पालन करते हुये मौका—मुआयना नहीं किया जाता? जिस गुमाश्ता लायसेंस के लिये आम लोगों को महीनों निकल जाते हैं वही गुमाश्ता पैसा खर्च करने वालों या नेताओं को चंद दिनों में घर बैठे मिल जाता है। फिर लायसेंस मांगने वाले सत्तारूढ़ पार्टी के नेताजी हों तो अधिकारियों की क्या मजाल? कुलमिलाकर सीधी बात ये कि अधिकारियों की कोई बकत नहीं है नेताओं और उनके छुटभैयों के आगे। यदा—कदा विधायकों,मंत्रियों और उनके अनुयायियों द्वारा अधिकारियों से बदतमीजी करने और उन्हें धमकाने के आॅडियो,वीडियो,खबरें आती रहती हैं। कितनों पर सही कार्रवाई होती है सब जानते हैं। ऐसे में जरा ध्यान से सोचिये कि वाकई प्रशासन के साथ—साथ असली गुनाहगार कौन है? और क्या माननीय मुख्यमंत्री 200 लोगोंं के इस गुनाहगार को कड़ी सजा दिलवायेंगे? वरना ऐसे तो बस मुआवजे के चेक बांटते—बांटते आपका खजाना भी खाली हो जाये तो भी ये हादसे रुकने वाले नहीं है। घटना के बाद से वह व्यक्ति अपने परिवार के साथ फ़रार है.


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