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छुट्टी पर राहुल,लेकिन सोनिया सक्रिय

खरी-खरी            Mar 18, 2015


मधुकर उपाध्याय विपक्ष की एकजुटता तो पहले ही संसद में दिख चुकी थी. कांग्रेस को जिस विधेयक पर सरकार का समर्थन करना था वो भी वो कर चुकी है.लेकिन विपक्षी दलों का साझा मार्च और राष्ट्रपति को ज्ञापन देना कांग्रेस का अंदरूनी दबाव और खेल प्रतीत होता है. कांग्रेस पार्टी राहुल गांधी को लेकर विकल्पहीन ज़रूर है, लेकिन उसके बावजूद सोनिया गांधी बहुत आश्वस्त नहीं दिखती.जिस तरह से पिछले दो-तीन दिनों से सोनिया गांधी को सक्रिय होते देखा गया उससे पता चलता है कि सोनिया अब भी पार्टी की सबसे बड़ी नेता हैं.वो न सिर्फ़ एकजुटता जताने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के घर गईं बल्कि भूमि अधिग्रहण पर राष्ट्रपति से भी जाकर मिली. इसके लगता है कि राहुल गांधी अभी उनकी जगह लेने की स्थिति में नहीं हैं. राजनीति समझने वालों को इस बात में कोई संदेह नहीं होगा कि एक दिन राहुल पार्टी अध्यक्ष ज़रूर बनेंगे.जिस दिन राहुल गांधी पार्टी अध्यक्ष घोषित हो जाएंगे उस दिन पूरी पार्टी उनके पीछे खड़ी हो जाएगी.ऐसे में सवाल उठता है कि इसमें देर क्यों? कांग्रेस को क्यों दिखाना पड़ता है कि राहुल गांधी को छुट्टी मांगनी पड़ती है और नाराज़गी दिखानी पड़ती है?छुट्टी तो नेहरू और इंदिरा ने भी मांगी. उन्हें पार्टी ने छुट्टी नहीं दी, लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से राहुल को छुट्टी मिल गई. वैसे जिस तरह नेहरू और इंदिरा कांग्रेस अध्यक्ष बने उसी तरह राहुल भी बनेंगे.राहुल गांधी को जनता से जुड़ने के लिए क़रीब दस साल का वक़्त मिला जिसमें वो सफल नहीं रहे. इसे उनकी कमी माना जा सकता है. राहुल को भी मालूम है राहुल गांधी को भी यक़ीनी तौर पर मालूम होगा कि पिछले दस सालों में जहाँ भी उन्होंने चुनाव का नेतृत्व किया है, उनमें से ज़्यादातर जगहों पर वो हारे हैं.उन्हें अपनी विफलता काग़ज़ पर तो नज़र आ ही रही होगी और इस कमी को दूर करना निश्चित रूप से उनकी रणनीति का हिस्सा होगा. कांग्रेस को जानने वाले कहते हैं कि राहुल गांधी किसी पुराने बोझ के साथ नहीं शुरू करना चाहते. वो नई इबारत लिखने के लिए बिल्कुल नई स्लेट चाहते हैं.कांग्रेस के अंदर 'नए बनाम पुराने' मुद्दे की यही सबसे बड़ी समस्या प्रतीत होती है. कांग्रेस के पिछले अध्यक्षों ने ऐसा नहीं किया था.वो अपनी विरासत की बुनियाद पर ही आगे बढ़े. राजीव गांधी तक ने भी पुरानी चीज़ों को एकदम ख़ारिज नहीं किया था. लेकिन हो सकता है कि राहुल गांधी सोचते हों कि अब तब पार्टी को जितनी भी हार मिली है उसकी ज़िम्मेदारी पुराने नेताओं पर डाल दी जाए और इस तरह वो एक नई शुरुआत कर सकते हैं.


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