Breaking News

जब असरादारों का इलाज हो प्राईवेट में तो सरकारी की तो ये हलत होनी ही है

खरी-खरी            Aug 26, 2016


sriprakash-dixitश्रीप्रकाश दीक्षित। भोपाल के दैनिक नवदुनिया ने एक झकझोरने वाली खबर छापी है। इसके मुताबिक राजधानी के न्यू मार्केट में सरकारी काटजू अस्पताल ने यह बोर्ड चस्पा कर दिया है की यहाँ पर डाक्टरों का अभाव है इसलिए मरीज इलाज के लिए जेपी अस्पताल जाएँ। तो यह है भोपाल के सरकारी अस्पतालों की दर्दनाक असलियत जहाँ सारी हुकूमत विराजमान है। हर रोज किसी ना किसी अखबार में यहाँ के सबसे बड़े हमीदिया और सुल्तानिया अस्पतालों की दुर्दशा पर खबरें छपती रहती हैं जिस पर मंत्री और अफसर औचक मुआयने का नाटक कर खामोश हो जाते हैं। कमोवेश यही दशा इंदौर के एम वाय अस्पताल और ग्वालियर, जबलपुर आदि बड़े शहरों के सरकारी अस्पतालों की है। जिला अस्पतालों की दुर्दशा की तो चर्चा करना ही बेकार है। वह बहुत पुराना नहीं, 15—20 साल पहले का दौर था जब राज्यपाल हो या मंतरी-संतरी, सब बीमार होने पर पहले भोपाल के हमीदिया अस्पताल में इलाज कराते थे। हालत ज्यादा गंभीर होने पर दिल्ली के एम्स का रुख किया जाता था। अब तो आलम यह है कि राज्यपाल हों या मुख्यमंत्री या उनका परिवार, मंतरी हो या संतरी, सांसद हो या विधायक और नेता प्रतिपक्ष सब फ़ोकट में याने सरकारी खर्चे पर सितारा अस्पताल में ही इलाज कराना पसंद करते हैं। hospital-navdunia-1 भोपाल में उनके पसंदीदा अस्पतालों में बंसल या नेशनल अस्पताल हैं। प्रदेश के बाहर के अस्पतालों में मुंबई का लीलावती और कोकिला बेन दिल्ली में नरेश त्रेहन का मेदांता, अपोलो और एस्कॉर्ट आदि हैं। प्रदेश के राज्यपाल का एक पैर राज भवन में तो दूसरा बंसल अस्पताल मे रहता है। मुख्यमंत्री के सारे परिजनों का इलाज मुंबई में होता है तो नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे लम्बे समय से मुंबई के सितारा अस्पताल में भर्ती हैं। उनके इलाज पर सरकार का करीब चार करोड़ खर्च हो चुका है। इस प्रकार वीवीआईपी, वीआईपी और सरकारी अमले का सरकारी खर्च पर प्रदेश और बाहर के प्राइवेट सितारा अस्पतालों में इलाज होने से इनमे से कोई भी सरकारी अस्पतालों में झांकता तक नहीं है। इसलिए जब तक सरकारी खर्च पर असरदार लोगों का इन प्राइवेट अस्पतालों में इलाज पर पूरी तरह बंद नहीं होगा तब तक ये यतीमखाने और कसाईघर ही बने रहेंगे।


इस खबर को शेयर करें


Comments