Breaking News

जातियां खत्म हो जायें वर्णाश्रम बना रहे

खरी-खरी            Aug 24, 2015


srinivas-rai-shankar श्रीनिवास राय शंकर जातियां जरूर ख़त्म हो जाएँ ,पर वर्णाश्रम बना रहे। ये हमेशा प्रासंगिक रहेंगे। रुकिए ,रुकिए ! ……… गरियाने के पहले थोड़ा रुकिए! चतुर्वर्णं मया सृष्टं गुण कर्म विभागसः। जब परमात्मा ने ही त्रिगुण मयी प्रकृति में से आपको जन्म दिया है ,तो गुण और कर्म में अंतर तो रहेगा ही ,वह भी हमेशा। लेकिन यह विभिन्नता किसी प्रकार के भेदभाव को नहीं मान्यता देती है। न ही यह जन्म पर आधारित हो सकती है ,यह तो गुणों पर आधारित होगी ,कर्म पर आधारित भी होगी। खासकर तब जबकि अपने स्वाभाव या गुण के अनुसार जब हम आजीविका या वृत्ति को अपनाएं। इसलिए जातियां ख़त्म कर दो , क्योंकि यह समाज को तोड़ती हैं ,पर स्वाभाव और गुणों को को ख़त्म नहीं किया सकता । उन्हें रोकोगे वे दूसरे रूप धरकर प्रकट हो जायेंगे ,उन्हें भुलाओगे वे तुम्हारे मन के किसी भाव का रूप धरकर सामने आ जायेंगे। क्योंकि हमेशा कुछ लोग अधिक बुद्धिमान रहेंगे ,कुछ दूसरे लोग अधिक बलवान रहेंगे ,कुछ धन के लिए अधिक परेशान रहेंगे तो कुछ शक्ति के लिए ,कोई थोड़े में संतुष्ट हो जायेगा ,तो किसी के लिए पूरी दूनिया की दौलत भी कम लगेगी। कइयों का मन में बौद्धिक कामों में लगेगा ,तो कुछ व्यापर में मस्ती पाएंगे ,बहुत विरले सेवा भाव में ही संतुष्टि पाएंगे तो अनेक लोगों को राजकाज चलाने में स्वबाह्विक निपुणता होती है। ठीक है इसे संस्थागत ढांचा मत बनने दो ,पर क्या तुम इन गुणों को ,स्वभावों के अंतर को प्रकट होने से रोक दोगे ? क्या तुम्हारे बस में है की तुम प्रकृति की विभिन्नता को अपने साम्यवादी ,और अनेकानेक पिद्दी विचारों से रोक सको ? बदल सको ? नहीं ! यह किसी मनुष्य की सीमा है। हाँ हम भेदभाव ,असमानता ,ऊँच नीच और अवसर न मिलने की असमनता को जरूर ख़त्म कर सकते हैं। भारत को समझो ,ठीक से समझ लोगे तो ,दुनिया को खुद ब समझ जाओगे। और आश्रम व्यवस्था ,वह तो मनुष्य की स्वाभाविक परिणीति है। सन्सार के बियावान जंगल में कोई तुम्हारा अपना तुम्हारे लिए अपने सुख और सरोकार छोड़ नहीं रुकने -आने वाला है ,तो तुम्हे वानप्रस्थी तो बनना ही होगा ,सन्यासी तुम भले बन सको न बन सको ,पर गृह त्याग तो करना ही होगा ,चाहे वृद्धाश्रम ही क्यों जाना न जाना पड़े.तो चुन लो आश्रम से बचना चाहोगे तो वृद्धाश्रम होगा। एकांत प्रिय नहीं बनोगे,तो भी अकेलापन तो काटना होगा ,किसी पाश कालोनी के तीन बैडरूम वाले घरमे किसी नौकर या हाथों किसी दिन मरना होगा फिर । इससे बेहतर हो की सन्यास ही ले लो। तो वर्ण और आश्रम व्यवस्था मनुष्य के लिए प्रकृति के साथ तादाम्य और जुड़ाव की प्रासंगिक परिणीति है ,ये सनातन हैं , इन्हे ख़त्म नहीं किया जा सकता। इसे किसी न किसी रूप में मानना ही होगा। श्रीनिवास राय शंकर के फेसबुक वॉल से


इस खबर को शेयर करें


Comments