कुमार सौवीर
पत्रकारों की लड़ाई नहीं, पत्रकारिता को कलंकित करने में जुटे हैं बड़े नेता। इन नेता जी की जिम्मेदारी मानी जाती है कि वे कम से कम अपनी बिरादरी के लोगों के प्रति थोड़ी संवेदनशीलता और संवेदना रखेंगे और पत्रकारों पर होने वाले अन्याय-अत्याचार पर अपनी आवाज निकालेंगे। लेकिन खुद को बड़ा पत्रकार मानने-कहलाने वाले यह पत्रकार-अगुआ लोग न सिर्फ इस मसले पर चुप्पी साधे हुए हैं, बल्कि जागेन्द्र की लाश को खरीदने-बेचने की गुपचुप कवायद में भी जुटे हैं।
जगेन्द्र सिंह के जिन्दा-दाहकाण्ड वाले हौलनाक हादसे के बाद इन इस पत्रकार-शिरोमणि ने ठीक वही स्टैण्ड लिया, जो सरकार के इशारे पर यूपी पुलिस कर रही है। बजाय इसके कि जिन्दा जगेन्द्र को मौत की नींद सुलाने वाले अपराधियों पर यह पत्रकार-नेता आंदोलन करते और हुंकारें भरते, इन लोगों ने पूरे मामले की आग पर ही पानी फेर दिया। पत्रकारिता को कलंकित करते इन पत्रकारों ने इस मामले में जो करतूत की है, उससे बड़े से बड़ा दलाल भी शरमा जाएगा।
दरअसल, शाहजहांपुर की खबरों में जिन्दा कौम बन चुके जागेन्द्र की खबरें इतनी तीखी होती थीं कि उसके खिलाफ यहां के पत्रकार ही नहीं, पुलिस, अपराधी, प्रशासन और व्यापारी नेता तक एकजुट हो गये थे। इसीलिए उसे जिन्दा फूंकने तक की खबरों में मीडिया ने उसे पत्रकार मानने से ही इनकार कर लिया था। लेकिन शाहजहांपुर जाकर जब मैंने इस दर्दनाक हत्याकाण्ड का पर्दाफाश करते हुए प्रत्यक्ष प्रमाण हासिल किये, कि जगेन्द्र सिंह एक बेबाक पत्रकार था, तो सोशल साइट्स पर हंगामा हो गया। आक्रोश और निन्दा का सैलाब उमड़ने लगा।
सहारनपुर से लेकर बलिया, बहराइच से लेकर बांदा और बनारस और जौनपुर से लेकर मथुरा-अलीगढ तक पत्रकारों ने अपना गुस्सा प्रदर्शित करना शुरू कर दिया। इतना ही नहीं, दबाव तो इतना बढ़ गया कि भारतीय प्रेस परिषद ने हस्तक्षेप करते हुए अपने तीन सदस्यों की एक टीम भेजकर रिपोर्ट मंगवायी। उधर दिल्ली में पत्रकारों ने जन्तर-मन्तर से मुलायम सिंह यादव के आवास तक प्रदर्शन जुलूस निकालने का फैसला किया है।
यह है कि जागेन्द्र हत्याकाण्ड पर आम पत्रकार का आक्रोश, लेकिन देश के श्रमजीवी पत्रकार संघ के सचिव पद को सुशोभित कर रहे के-विक्रम राव और उप्र मान्यताप्राप्त पत्रकार समिति में अध्यक्ष और सचिव की कुर्सी पर पिछले तीन साल से कब्जा जमाये हेमन्त तिवारी और सिद्धार्थ कलहंस ने इस मसले पर एक शब्द तक नहीं निकाला, बल्कि इसके उलट शाहजहांपुर के पत्रकारों को समझाना शुरू कर दिया कि वे जागेन्द्र सिंह के परिजनों को समझायें और उन्हें बतायें कि बड़े अफसर और आला नेता उन्हें इस मौत का मुआवजा देने पर राजी हैं।
हैरत की बात है कि शाहजहांपुर काण्ड के बाद से ही के-विक्रम राव, हेमन्त तिवारी और सिद्धार्थ कलहंस लगातार खामोश हैं। के-विक्रम राव, हेमन्त तिवारी और सिद्धार्थ कलहंस की इस तिकडी ने इस मसले को अपनी पत्रकार-बिरादरी पर हुए हमले के तौर नहीं लिया और न ही इस मामले को समझने के लिए शाहजहांपुर जाने तक की जहमत समझी। और तो और, लखनऊ में उन्होंने पत्रकारों को एकजुट करने या कोई विरोध-प्रदर्शन तक करने की कोशिश नहीं की। हां, खबर इतनी जरूर है कि इस काण्ड पर इन लोगों ने सरकार और शासन के नजरिये का ही पूरा समर्थन किया। मुझे पक्की खबर है कि हेमन्त तिवारी ने कई जिलों में जाकर जागेन्द्र की हत्या को आत्मदाह के तौर पर साबित करने के लिए पूरी पैरवी की, जहां इस प्रकरण पर जनमानस बहुत विह्वल और आक्रोशित था।
मिली पुख्ता खबरों के मुताबिक हेमन्त तिवारी ने शाहजहांपुर के कई पत्रकारों को फोन करके बताया था कि सरकार और उसके अफसर इस मामले में रहमदिल हैं और पीडि़त परिवार को राहत पहंचाने की कोशिश करा रहे हैं। हेमन्त तिवारी के इस प्रस्ताव पर इस पत्रकार ने जब पूछा कि राहत के तहत क्या-क्या पैकेज मिल सकता है तो, इस पत्रकार के मुताबिक, हेमन्त ने जवाब दिया कि बीस लाख रूपया तक का मुआवजा वगैरह राहत दी जा सकती है। हेमन्त तिवारी ने इस पत्रकार से कहा कि अमुक-अमुक बड़े-बड़े अफसर तुम्हें अभी फोन करेंगे, तो उनसे बात कर लेना।
अब सवाल यह है कि हेमन्त तिवारी को अगर जागेन्द्र सिंह के परिजनों तक पहंचाना था, उसके लिए उन्होंने चन्द पत्रकारों को अपना माध्यम क्यों बनाया। बेहतर तो यह होता कि हेमन्त तिवारी इस मुआवजा का ऐलान सरेआम करते, पत्रकारों की मीटिंग आयोजित कराते और ऐसी मीटिंग में राहत दिलाने वाले अधिकारी या मन्त्री वगैरह को सरेआम गुलदस्ता पेश कर उन्हें सम्मानित करते। आपको खूब याद होगा कि बड़े मंत्री और अफसरों को बात-बात पर गुलदस्ता पेश करना उनकी खास अदा-स्टाइल है।
कुछ सवाल जिनके जवाब जरूरी
1- सवाल यह है कि शाहजहांपुर काण्ड पर हेमन्त तिवारी, के-विक्रम राव व सिद्धार्थ कलहंस आदि लोग आखिरकार खामोश क्यों हैं।
2- क्यों जागेन्द्र सिंह के पीडि़त परिजनों के बीच स्थानीय पत्रकारों को दलाल-बिचौलिया बनाया जा रहा है?
3- क्या वजह है कि जागेन्द्र के हत्या का विरोध नहीं कर रहे हैं यह पत्रकार नेता?
4- हत्यारों की गिरफ्तारी की मांग आखिरकार क्यों नहीं कर रहे हैं यह पत्रकार नेता?
5- शाहजहांपुर काण्ड को लेकर पुलिस ने 11 दिन बाद ही एफआईआर दर्ज नहीं की थी, क्या यह हालत पत्रकारों की बिरादी के लिए शर्मनाक नहीं था?
6:- जागेन्द्र काण्ड को आज 19 दिन पूरे हो चुके हैं, लेकिन पुलिस ने अब तक किसी अपराधी को क्यों नहीं पकड़ा?
7- फेसबुक पर जागेन्द्र सिंह कई बार लिख चुका था कि उप्र सरकार के मन्त्री राममूर्ति वर्मा उसे जान से मारने की साजिश कर रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद के-विकम राव, हेमन्त तिवारी और सिद्धार्थ कलहंस जैसे बड़े पत्रकार नेता अपनी खामोशी क्यों नहीं तोड़ रहे हैं?
8- लखनऊ सिविल अस्पताल में अपनी जिन्दगी और मौत के बीच जूझ रहे और दर्द से छटपटाते हुए जागेन्द्र सिंह ने कई लोगों से बयान दिया था कि उसे राममूर्ति वर्मा की साजिश में कोतवाल श्रीप्रकाश राय और कई पुलिसवालों समेत गुफरान, अमित भदौरिया आदि ने उस पर तेल डाल कर जिन्दा फूंक डाला था। इस बयान को कई लोगों ने अपने मोबाइल पर रिकार्ड किया और आज ऐसे वीडियो सोशल साइट्स पर वायरल हो चुके हैं। फिर के-विक्रम राव, हेमन्त तिवारी और सिद्धार्थ कलहंस किस ओर खड़े हैं, पत्रकारों के बीच जुझारू नेता की भूमिका में, अथवा अफसरों-मंत्रियों की भद्दी दलाली की पटरी पर?
9- क्या पत्रकारों के नेता बने इन नेताओं का यह दायित्व नहीं होता कि विधानसभा अध्यक्ष और मंत्री-मुख्यमंत्री समेत डीजीपी के रवैये पर ऐतराज दर्ज कराने के लिए अपनी-अपनी यूनियनों-समिति की बैठक बुलाते और सरकार-शासन को मजबूर करते कि पत्रकार के हत्यारों पर तत्काल जेल भेजा जाए?
भडास4मीडिया से साभार
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