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तमाशाईयों और तमाशबीनों के मजमे में कौन सुने अवाम की

खरी-खरी, मीडिया            Apr 15, 2015


ममता यादव मध्यप्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्षी कांग्रेस के बीच एक खेल चल रहा है कई सालों से। या यह मान लें जब से व्यापमं घोटाला सामने आया है। महीने में एक बार दिग्विजय सिंह भोपाल आते हैं एसआईटी में जाकर गवाही देते हैं एक खत लिखते हैं और फिर गायब। एक महीने पहले भी विधानसभा के विशेष सत्र के दौरान कांग्रेसी ड्रामा हुआ। विधानसभा परिसर में लग्जरी अनशन। सरकार के बिना किसी जवाब के सिर्फ एक नोटिस पर दो दिन से भूखे बैठे कांग्रेसियों ने अनशन और धरना खत्म कर दिया। महीने में एक बार यह ड्रामा जरूर होता है। भाजपा कहती है कांग्रेस के आरोप निराधार हैं और कांग्रेस कहती है भाजपा के फर्जी नियुक्ति के आरोप बेबुनियाद हैं। कुछ समय के लिये कांग्रेस ने बीच में किसानों का मुद्दा उठाया था फिलहाल वह ठंडे बस्ते में है। यहां यह सब कहने का तात्पर्य यह है कि दोनों ही दल या तो जनता को मूर्ख समझ रहे हैं या फिर इन्हें दूसरी समस्यायें दिख नहीं रही हैं? barish-anaaj यह सिर्फ मध्यप्रदेश ही नहीं पूरे प्रदेश का दुर्भाग्य है कि मेट्रो ट्रेन और पर्यटन वर्ष के आयोजनों और एसी कमरों में कार्यसमितियों की बैठकों के लिये तो करोड़ों पैसा बहाने में जरा भी नहीं सोचा जाता, लेकिन इस ओर कभी गलती से भी ध्यान नहीं दिया जाता कि हर साल हजारों टन अनाज पर्याप्त सुरक्षित शेडों और भंडार गृहों के अभाव में बारिश में भीग कर बरबाद हो जाता है सड़ जाता है। अभी-भी यही हो रहा है। खेतों में खड़ी फसल बारिश ने तबाह कर दी° जो बचा-खुचा अनाज लेकर किसान मंडियों में पहुंचे उसे या तो खरीदा नहीं जा रहा खरीदा भी गया तो पर्याप्त भंडारण के अभाव में बारिश में ही फिर बरबाद हो गया। यानी किसान की मेहनत पानी में ही जाना है। [caption id="attachment_4312" align="alignnone" width="300"]पानी कभी उनकी कमर तक जाता है कभी गले तक हाथ-पैर गलने लगे पानी कभी उनकी कमर तक जाता है कभी गले तक हाथ-पैर गलने लगे [/caption] गल जायें मर जायें कोई नहीं सुनेगा दूसरा मुद्दा खंडवा के घोंगलगांव में चल रहे जलसत्याग्रह का है। यहां के किसानों की ओंकारेश्वर बांध की डूब में आ रही है। जिसके एवज में सरकार ने किसानों को मुआवजा दिया। किसानों ने मुआवजा वापस कर दिया सरकार ने दूसरी जमीन दी लेकिन वह बंजर और अनुपयोगी निकली। यहां तक ठीक था लेकिन सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की भी नहीं सुनी और शनिवार को अचानक पानी छोड़ दिया गांव वाले क्या करते अपनी जमीन के हक के लिये पानी में ही खड़े हो गये और आज पांच दिन बीत जाने के बावजूद पानी में ही खड़े हैं पानी कभी उनकी कमर तक जाता है कभी गले तक हाथ-पैर गलने लगे हैं,लेकिन शिवराज सरकार और न ही उसके मंत्रियों के कान पर जूं रेंग रही है। मीडिया भी इस मामले पर खामोश है क्यों? इसका जवाब कोई देने तैयार नहीं है। माना यह जा रहा है कि ओंकारेश्वर बांध की ऊंचाई बढ़ाने का उद्देश्य गुजरात सरकार को फायदा पहुंचाना है। सो यह तो तय है कि आप जल सत्याग्रह करें गल जायें मर जायें सरकार नहीं सुनेगी। कांग्रेस की तरफ से भी प्रदेश अध्यक्ष अरूण यादव ने पहले दिन जाकर रस्म अदायगी कर दी। हां आम आदमी पार्टी की सक्रियता और खुद जल सत्याग्रह में उतर जाना बहुत कुछ इशारा दे रही है भविष्य के लिये। ये अलग बात है कि दिल्ली में हो रहे तमाशों से जनता का मोहभंग इस पार्टी से हुआ है, लेकिन प्रदेश में इस पार्टी की गतिविधियां और आमजनता के लिये बराबरी से खड़े होकर हक के लिये आवाज उठाना कहीं न कहीं जनता में विश्वास बनाये हुये है और उसे प्रभावित भी कर रही है। फर्क नहीं भाजपा कांग्रेस में पिछले कुछ दिनों की खबरों और तस्वीरों पर नजर डालें तो कांग्रेस और भाजपा में बहुत ज्यादा फर्क नहीं रह गया है। मीडिया को नवाजने और जनता के मुद्दों से ध्यान हटाने के अलावा सरकार कुछ और कर नहीं रही है। हां सामाजिक समरसता के ढोंग के बहाने अंबेडकर जयंति पर जमीन पर बैठकर पत्तल मेंखाना जरूर खाया जा रहा है और मीडिया निहाल हुआ जा रहा है मुख्यमंत्री की इन अदाओं पर। एक अजीब सी अफरा-तफरी का माहौल है प्रदेश की जनता में। यूं तो जनता खामोश है,लेकिन इस खामोशी के पीछे छुपे आक्रोश को सरकार और नेता पहचान लें तो बेहतर है। वरना आगे परिस्थितियां गंभीर ही होने वाली हैं। अभी तो सिर्फ वीके सिंह ने मीडिया को प्रोस्टीट्यूट कहा है अब वह दिन दूर नहीं जब दबी जुबान में कहने वाली जनता खुलेआम मीडिया को प्रोस्टीट्यूट कहेगी।


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