मल्हार मीडिया
दादरी बिसाहड़ा में हुये हत्याकांड के बाद बीफ के बहाने राजनीति चमकाने का खेल शुरू हो गया है। आलम यह है कि कोई इसके पक्ष में कोई विपक्ष में बिना सोचे—समझे बयानबाजी कर रहा है। आलम यह है कि मांस खाने न खाने का मुद्दा अहम और एक इंसान की बेरहमी से की गई हत्या गौड़ हो गई है। माहौल को गर्माने वाला बयान सबसे पहले भाजपा सांसद महेश शर्मा की तरफ से आया था जिन्होंने इस घटना को सिर्फ हादसा करार दिया था। इसके बाद उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पीएम मोदी से पूछा था कि वे मीट एक्सपोर्ट बैन क्यों नहीं करते?

बहरहाल, बिहार में चुनावी माहौल गर्म है और आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव एमवाई यानी मुस्लिम-यादव समीकरण को मजबूत करने में लगे हैं। इस मुद्दे को लेकर देश-विदेश में हल्ला है, सभी पार्टियों के नेताओं के बयान आ रहे हैं।
अंग्रेजी अखबार गौ मांस को लेकर बीफ शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं और यहां तक कि शोभा डे जैसी प्रख्यात लेखिका कह रही हैं कि 'मैंने अभी बीफ खाया है, आओ और मुझे मार दो'। लालू यादव ने भी इसी कड़ी में अपनी सियासत चमकाई है और कह दिया है कि हिंदू भी गौ मांस खाते हैं। उम्मीद के अनुरुप ही भाजपा की तरफ से इस मामले में कड़ी प्रतिक्रिया आई है और पार्टी नेता व केंद्र सरकार में मंत्री गिरिराज सिंह ने लालू से अपना बयान वापस लेने की मांग की है। गिरिराज का कहना है कि लालू ने हिंदू बीफ खाते हैं, ये कहकर देश के करोड़ों हिंदुओं का अपमान किया है।
सवाल उठता है कि क्या बीफ और गौ मांस एक ही शब्द है या फिर इसके जो मायने लगाये जा रहे हैं वो गलत हैं। अगर ठेठ अंग्रेजी संदर्भ में देखें, तो कैंब्रिज डिक्शनरी के मुताबिक बीफ का मतलब होता है मवेशी यानी गाय का मांस। वैसे भी अगर वैश्विक संदर्भ में देखें, तो बीफ को गाय, बैल, सांढ़, बछड़े या बछिया के मांस को परिभाषित करने के लिए ही उपयोग में लाया जाता है। ऐसे में भारत से बड़े पैमाने पर बीफ का निर्यात कैसे होता है, जिसका हवाला दे रहे हैं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और इसी बहाने हमला कर रहे हैं केंद्र की सरकार पर और उसके अगुआ मोदी पर, ये याद दिलाते हुए कि लोकसभा चुनावों के पहले मोदी खुद पिंक रिवोल्यूशन के नाम पर यूपीए की तत्कालीन सरकार पर हमला बोल चुके हैं।
दरअसल जब भारत में हम बीफ शब्द का इस्तेमाल करते हैं और खास तौर पर निर्यात के संदर्भ में, तो इसका मतलब गाय, बैल, सांढ, बछिया या बछड़े के मांस के निर्यात से नहीं होता, बल्कि इसका अर्थ होता है भैंस के निर्यात से। इस तथ्य की तरफ इशारा खुद केंद्रीय वाणिज्य राज्य मंत्री निर्मला सीतारामन ने भी एक प्रेस कांफ्रेंस कर किया। सीतारामन के मुताबिक, भारत से गाय, बैल, सांढ, बछिया या बछड़े के मांस का निर्यात नहीं होता, बल्कि भैंस के मांस का निर्यात होता है।
इसी भैंस के निर्यात को आम आदमी तो ठीक, खुद मीडिया भी बीफ एक्सपोर्ट कह देता है, जिसका अर्थ ये लगा लिया जाता है कि भारत से गौ मांस का निर्यात होता है। अगर हम विविध राज्यों के कानूनों को देखें, तो कुछ राज्यों को छोड़कर ज्यादातर राज्यों में गौ हत्या पर प्रतिबंध है. ऐसे में भला गौ मांस का निर्यात कैसे हो सकता है। यहां तक कि भैंसों के मांस का जो निर्यात होता है, उसमें उनकी हड्डियां तक नहीं होती हैं, सिर्फ और सिर्फ बोनलेस भैंस मांस का निर्यात होता है।
सवाल ये उठता है कि जो लालू ये बयान दे रहे हैं कि हिंदू भी बीफ खाते हैं, उन्हें बीफ की परिभाषा वाकई मालूम है या फिर जानबूझकर वो ऐसे बयान दे रहे हैं। मुख्यमंत्री के तौर पर अपने कार्यकाल के दौरान चरवाहा विद्यालय खोलने वाले लालू को गाय और भैंस के बीच फर्क तो पता ही होना चाहिए, वो भी तब जब वो ये बात लगातार कहते रहे हों कि भैंस की पीठ पर चरवाही करते हुए ही उनका बचपन बीता है। जहां तक अखिलेश यादव का सवाल है, उन्हें उस राज्य का कानून ही इस संदर्भ में पढ़ लेना चाहिए, जिस राज्य के वो मुख्यमंत्री हैं। 1955 से यूपी में लागू गौ हत्या निरोधी कानून के मुताबिक, बीफ का मतलब है गाय, बैल या सांढ का मांस. इस मामले में लालू और उनके रिश्तेदार अखिलेश दोनों को गंभीर होने की जरूरत है क्योंकि ये मामला सदियों से संवेदनशील रहा है।
आरएसएस के जन्म के चार सौ साल पहले जब भारत में मुगल सल्तनत की स्थापना बाबर ने की, तो अपने बेटे हुमायूं को समझाया कि गो हत्या से परहेज रखना, तभी तुम बहसंख्यक भारतवासियों के दिल में जगह बना सकोगे। बाबर की उस सलाह पर शायद संघी भी उंगली न उठाएंगे, जिसके नाम से मौजूद बाबरी मस्जिद को 1992 में उन्होंने जमींदोज कर दिया।
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