मल्हार मीडिया डेस्क
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर महीने किसी रविवार को सुबह 11 बजे रेडियो पर 'मन की बात' करते हैं। आज से पहले वे सात बार इस कार्यक्रम के ज़रिए लोगों को संबोधित कर चुके हैं। उन्होंने काला धन, नशा विरोध, किसान और नेपाल में भूकंप जैसे कई विषयों पर अपने विचार साझा किए।
लेकिन अब लगता है पीएम की मन की बातों से जनता का भी मन भरने लगा है। इसमें भूमिका पीएम सहित उनके मंत्रियों संत्रियों द्वारा की गई जुमलेबाजी ने ज्यादा निभाया है। बातों और वायदों से जनता का पेट नहीं भरता न ही जरूरतें पूरी होती हैं।
इस कार्यक्रम के बारे में समाज में घटने वाली विभिन्न घटनाओं पर बेबाक़ राय रखने वाले सुहैल सेठ ने से बीबीसी से बातचीत में अपनी बेबाक राय रखी।
सेठ ने कहा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' से लोग अब तंग आ चुके हैं। हमारे देश में अगर वैसे भी कोई सिर्फ़ बातें करे तो हम कहते हैं कि ये बातूनी है।
अगर उन्हें 'मन की बात' कहनी है तो लोगों से कहें कि मैंने आपसे पिछले एक साल में ये-ये बातें कहीं थी और उनमें से ये-ये पूरी हो गई हैं। तभी लोग कहेंगे कि 'मन की बात' सिर्फ़ एक चर्चा का विषय नहीं है बल्कि वास्तव में देश में बदलाव हो रहा है। नहीं तो लोग 'मन की बात' सुन सुन कर उकता गए होंगे।
अमरीका के राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन भी लोगों से इसी तरह बात किया करते थे लेकिन उस ज़माने में द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था और अमरीका इसमें शामिल था।
भारत में जब हम विकास की चर्चा करते हैं तो केवल 'मन की बात' से बात बनती नहीं है। इस कार्यक्रम में उन लोगों की चर्चा होने चाहिए जो लोग 'घर वापसी' की बात करते हैं। ओवेसी और गिरिराज सिंह जैसे लोगों पर बात होनी चाहिए तभी इसकी कोई अहमियत होगी नहीं तो इसका कोई मतलब नहीं है।
इसमें कोई शक नहीं है कि मोदी बेहद शानदार वक्ता हैं। उनकी बोलने की शैली और लोगों को जोड़ने का अंदाज लाजवाब है। लेकिन उनकी बातों में कुछ ठोस नहीं है। हमने प्रधानमंत्री चुना है साहिर लुधियानवी नहीं... प्रधानमंत्री की बात में दम होना चाहिए और उन बातों से स्पष्ट होना चाहिए कि विकास हो रहा है।
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