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विश्व हिंदी सम्मेलन बनाम भाजपा की रैली

खरी-खरी            Sep 09, 2015


rakesh-achalराकेश अचल विश्व हिंदी सम्मेलन को लेकर आखिर सारे मुगालते दूर हो ही गए। प्रधानमंत्री के लिए हिंदी प्रेमियों की भीड़ कम पड़ी तो पार्टी कार्यकर्ताओं को पूरे प्रदेश से ढो कर लाने का फरमान जारी कर दिया गया है। अब सम्मेलन के लिए कलेक्टर अपने-अपने जिले से पचास-पचास हिंदी प्रेमियों[?]के दस्ते भोपाल भेज रहे हैं। पार्टी की रैलियों की तर्ज पर ही इन हिंदी प्रेमियों को भोपाल भेजने के लिए आरटीओ को बसों का इंतजाम करना पड़ रहा है। विश्व स्तर के सम्मेलन की ऐसी फजीहत पहले कभी नहीं हुयी। हिंदी के विश्व सम्मेलन का अर्थ भीड़ या प्रदर्शन कभी नहीं रहा लेकिन भाजपा के हिस्से में जब ये महत्वपूर्ण आयोजन आया तो पार्टी ने इस आयोजन को सम्मेलन की जगह रैली में तब्दील कर दिया। सम्मेलन के निमंत्रण पत्र ऐसे लोगों के हाथों तक पहुँच गए हैं जिनका हिंदी से कोई लेना-देना नहीं है। निमंत्रण पत्रों की हालत एक अनार,सौ बीमार जैसी हो गयी है। ग्वालियर में पचास निमंत्रण पत्रों में से ४० पर संघ परिवार ने अपना हक जमा लिया। पत्रकारों को छह निमत्रण पत्रों की पेशकश की गयी तो पत्रकारों ने मना कर दिया। सम्मेलन के निमंत्रण पत्रों को लेकर नौकरशाही परेशान है,नौकरशाही को पता ही नहीं की सम्मेलन में किसे भेजा जाना चाहिए और किसे नहीं। ऐसे में दागी,और अपात्र लोगों का जमावड़ा होना तय है। किसी को किसी के बारे में कुछ पता नहीं? hindi-ki-amar-jyoti भोपाल में विश्व हिंदी सम्मेलन को लेकर प्रदेश के हिंदी सेवी उत्साहित थे किन्तु बेचारों का उत्साह उस समय ठंडा पड़ गया ,जब अधिकाँश को टके सेर भी नहीं पूछा गया। प्रभु जोशी जैसे हिंदी सेवी का मन खट्टा हो गया तो दूसरों की कहे कौन?मैंने हिंदी सम्मेलन में शामिल होने के लिए सामान्य श्रेणी में अपना ऑनलाइन पंजीयन कराया और बदले में पांच हजार रूपये दिए। मेरी लालसा थी की सम्मेलन में देश-विदेश के हिंदी विद्वानों से सत्संग का अवसर मिलेगा ,लेकिन अब मै पछता रहा हूँ। मुझे क्या पता था की ये सम्मेलन विशेषज्ञों की महफ़िल नहीं किसी राजनीतिक दल की रैली है। जिसमें एक पार्टी के पंत प्रधान को अपना मुजाहिरा करना है। हिंदी के बारे में भाजपा की चिंता देश की चिंता से अलग है शायद,तभी इस सम्मेलन का स्वरूप गंभीर चिंतन शिविर के बजाय रैली का कर दिया गया। इस सम्मेलन में राज्य की सरकार अपना चेहरा चमकाना चाहती है और मानव संसाधन मंत्री ,प्रधानमंत्री का चेहरा चमकाना चाहता है। विदेश मंत्री अपने नंबर बढ़ाने में लगीं हैं। अनिल माधव दावे जैसे संघनिष्ठ लोग इस सम्मेलन के ध्वजवाहक हैं..सम्मेलन में आमंत्रित किये गए ११० सांसदों में से अधिकाँश वे हैं जिनका हिंदी से कभी कोई निकट संबंध नहीं रह। अधिकारी वर्ग कारर्पोरेट संस्कृति की हिन्दी के लिए वकालत करने जमा हो रहे हैं। प्रभु जोशी कीइस आशंका में दम है की ये सम्मेलन हिंदी का रोमनी करण करने की दिशा में एक षणयंत्र है। सम्मेलन के लिए आमंत्रित तथाकथित विद्वानों को पांच सितारा सुविधाओं से नवाजा गया है ताकि वे आयोजकों की जय-जय करें और बाकी सभी से कह दिया गया है की वे अपने ठौर-ठिकाने खुद तलाश ल। आयोजक केवल दो वक्त का खाना खिला सकते हैं।।इस खाने में भी बड़ी संख्या मुफ्तखोरों की रहने वाली है,ऑनलाइन पंजीयन करने वाले हमारे जैसे लोग उँगलियों पर गिने जाने लायक हैं। अधिकाँश सरकारी मेहमान हैं या सरकारी सेवक ..जो भी हो इस सम्मेलन से हिंदी को कितना बल मिलेगा ये तो राम ही जाने,हिंदी वाले तो इतना जानते हैं कि उन्हें इस सम्मेलन बनाम रैली के बहाने अपने ही घर में अपमानित किया जा रहा है। हिंदी सेवियों का आशय केवल हिंदी साहित्यकारों से नहीं लगाया जाना चाहिए,लेकिन हिंदी के लिए दूसरे तरीके से काम करने वाले भी तो इस सम्मेलन का हिस्सा नहीं है। बेहतर होता की इस सम्मेलन को किसी एक होटल में आयोजित कर लिया जाता ,संख्या भी सीमित राखी जाती। देश-विदेश के हिन्द सेवियों को मुख्यमंत्री अपने निवास पर आमंत्रित कर सम्मानित करते,लेकिन ये सब नहीं हुआ। इस सम्मेलन से राज्य के लात साहब तक का कोई रिश्ता नहीं है,जबकि वे बेचारे कुलाधिपति हुआ करते हैं। राजयपाल महोदय चूंकि व्यापमं घोटाले में घसीटे जा चुके हैं इसलिए उन्हें एक किनारे कर दिया गया ,लेकिन बाकी लोगों को तो इस तरह से अपमानित नहीं किया गया। चूंकि पंजीयन राशि आयोजक वापस करने वाले नहीं है इसलिए विश हिंदी सम्मेलन के नाम पर आयोजित की जा रही इस रैली में मुझे भी मौजूद रहना है,किन्तु अब मन का उत्साह मर चुका है। क्योंकि सम्मेलन के आरम्भ में नेता जी का भाषण सुन्ना पडेगा और समापन में एक अभिनेता के संवाद। हिंदी साहित्य,संस्कृति और उसका आभामंडल दूर-दूर तक देखने को नहीं मिलेगा. शायद ।


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