डॉ आंनद राय
वर्ष 1993 में मैं हरदा जिले से मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के उद्देश्य से पीएमटी (प्री मेडिकल टेस्ट)की तैयारी के लिए इंदौर आया था। पीएमटी की परीक्षा के दौरान मैं जूलॉजी का पेपर देकर बाहर आया। पेपर अच्छा गया था, लेकिन पता चला कि ग्वालियर में पेपर लीक हो गया था। प्रवेश परीक्षा देने वाले हम छात्रों के भारी विरोध के बाद जूलॉजी की परीक्षा फिर से हुई। तब पीएमटी की प्रतिष्ठा बहुत थी। पहली बार लगा कि पीएमटी के भी पेपर आउट होते हैं। ऐसा कभी सुना ही नहीं था। भरोसा नहीं हो रहा था। एमबीबीएस करने के बाद जब मैंने 2005 में पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए परीक्षा दी तो टॉप टेन में ऐसे लड़के थे, जिनका पढ़ने-लिखने का कोई अच्छा रिकॉर्ड नहीं था। भोपाल मेडिकल कॉलेज होस्टल के एक ही सी ब्लॉक के पांच लड़के टॉप टेन में थे। पढ़ने वाले लड़के पीछे रह गए थे। हमने टॉपर्स का इतिहास देखा तो पता चला कि किसी के पिता आईएएस तो किसी के आईपीएस अफसर हैं। सब रसूखदार लोगों की संतानें हैं। पता चला कि सक्सेना ने पेपर आउट करवाया था और उसके माध्यम से ये सिलेक्शन हुए। तब हमारा विरोध दबा दिया गया, क्योंकि ऐसे मामलों के लिहाज से हम बच्चे ही थे। ज्यादा कुछ समझते नहीं थे। फिर हम जूनियर डॉक्टर्स की राजनीति में आए। अब मामला समझ में आने लगा था और लोग भी जानने लगे थे। 5 जुलाई 2009 को पता चला कि इंदौर में पेपर आउट किया जाने वाला है।
मैंने क्राइम ब्रांच को सूचना दी। अपराध दर्ज हुआ। अभी तक वह मामला चल रहा है। फिर मैंने 15 जुलाई 2009 को शिकायत दर्ज करवाई कि दूसरे राज्यों से आने वाले ‘इम्पर्सोनेटर’ परीक्षा देकर सिलेक्शन करवा रहे हैं। ऐसा कुछ हो सकता है, तब किसी ने सोचा नहीं था। कोई किसी की जगह परीक्षा कैसे दे सकता है। व्यापमं घोटाले का आरोपी दीपक यादव भोपाल आता था। जगदीश सागर भी 2004-08 में इंदौर मेडिकल कॉलेज में था। इनकी गतिविधियां देखकर मुझे समझ में आ गया कि यह सब कैसे हो रहा है। हमारी शिकायत पर 17 दिसंबर 2009 को कमेटी गठित हुई। उस कमेटी को काम सौंपा गया कि आप मुन्ना भाइयों को आइडेंटीफाई करो। 2010 तक दो बैठक हुई। काम कुछ हुआ नहीं। हमने आरटीआई लगाई, कोई जवाब नहीं मिला। फिर विधायकों से संपर्क कर विधानसभा में प्रश्न उठाया कि कितने लोगों की पहचान हुई है। मुख्यमंत्री उस समय चिकित्सा शिक्षा के प्रभारी भी थे जवाब मिला कि पहचान किसी की नहीं हुई है, लेकिन सूत्रों से पता चला कि लोगों का पता लगाकर सूची सौंपी जा चुकी है। फिर मैंने जुलाई 2011 में रंजना बघेल के जरिये प्रश्न उठाया तो जवाब मिला कि जानकारी एकत्र की जा रही है। नवंबर 2011 में पारस सकलेचा ने प्रश्न उठाया तो जानकारी मिली कि 14 लोग फर्जी पाए गए हैं। ऐसे ही प्रश्न उठाते-उठाते 2012 तक हमारे पास 295 इम्पर्सोनेटर के नाम एकत्र हो गए। ऐसे करते-करते स्कोरर पकड़े गए और वह घोटाला उजागर हुआ, जिसे हम व्यापमं घोटाला कहते हैं।

इन लोगों ने बताया कि हम जगदीश सागर के लिए काम करते हैं। वह फरार हो गया। फरारी में ही उसने मुझे फोन किया कि जो चाहिए ले लो, लेकिन मीडिया में बोलना बंद करो। धमकी भी देने लगा कि यह कर दूंगा, वह कर दूंगा। मैंने वह नंबर क्राइम ब्रांच को दिया और टावर लोकेशन पता कर उसे गिरफ्तार किया गया। सागर पर इनाम रखा हुआ था। मैंने गिरफ्तारी के बाद इसका दावा किया तो पुलिस ने इनकार कर दिया। उसका कहना था कि वह नंबर बंद था पर मेरा कहना है कि टावर लोकेशन तो मिल ही गई थी। अब तक इस मामले में 17 सौ लोग गिरफ्तार हो चुके हैं और करीब
500 फरार हैं। कई अाईएएस, आईपीएस शामिल हैं। रेवड़ी बंट रही थी, सभी ने खाई। पूरे मामले में जो एक्सेल शीट सामने आई है उस पर सारे नाम हंै। इसी शीट के कारण सीबीआई जांच से बचा जा रहा है, क्योंकि फिर सारे नाम उजागर हो जाएंगे। मेडिकल का क्षेत्र ही नहीं अन्य सारी भर्तियां भी घपले से प्रभावित हुई हैं।
अब इस संबंध में 40 से ज्यादा मौतें होने पर हंगामा मचा हुआ है, लेकिन मुझे लगता है कि 8 से 10 मौतें संदिग्ध हैं। इन 10 मौतों का राज सामने आना चाहिए। जांच तो सभी की होनी चाहिए, लेकिन बाकी को मैं जानता नहीं, इसलिए निश्चित तौर पर कुछ कहना मुश्किल है। अक्षय सिंह, नम्रता डामोर, नरेंद्र तोमर, जबलपुर वाले डॉ. साकल्ले ये सब संदिग्ध मौतें हैं। सड़क हादसों में चार बिचौलियों की मौत भी संदिग्ध है। कथित रूप से घपले में शामिल डॉ. राजेंद्र आर्य भी जमानत पर रिहा होने के बाद मारे गए। इसकी भी जांच होनी चाहिए। फिर मौतें तो हो रही हैं न। इतनी बड़ी संख्या है कि
संयोग नहीं कहा जा सकता। सारी मौतों की निष्पक्ष समिति के जरिये जांच होनी चाहिए।

भोपाल स्थित फोरेंसिक साइंस लैब के विशेषज्ञ डीके सत्पथी जैसे किसी व्यक्ति को समिति का मुखिया बनाया जाना चाहिए। इस विशेषज्ञ समिति को सारी मौतों की अलग से जांच करनी चाहिए। घोटाले की जांच अपनी जगह है। इस सारे घपले से मध्यप्रदेश में मेडिकल शिक्षा की बहुत बदनामी हुई है। दुनिया भर में खबर चलरही है। बीबीसी ने दी है, वॉशिंगटन पोस्ट ने खबर दी है। हमने जो प्रतिष्ठा खोई है, उसे फिर पाना बहुत मुश्किल है। इसके लिए बहुत मेहनत करनी होगी।
अब व्यावसायिक परीक्षा मंडल तो बंद ही पड़ा है। इसे तो भंग ही कर देना चाहिए। पिछले दो साल से तो ऑल इंडिया पीएमटी के माध्यम से भर्ती हो रही है, लेकिन इस परीक्षा के पर्चे भी लीक हो गए हैं। सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के बाद यह परीक्षा दोबारा करवाई गई है। ऐसे में समझ में नहीं अाता कि किया क्या जा सकता है। अब इसमें रास्ता एक ही नज़र आता है कि इस परीक्षा के स्वरूप में परिवर्तन करना चाहिए। मल्टीपल चॉइस प्रश्नों को कुछ हद तक बंद कर देना चाहिए। इन प्रश्नों के कारण धांधली करना आसान हो जाता है। प्रश्न लीक हो जाए तो उत्तर पर सिर्फ निशान ही लगाना है। ऐसे में कम से कम दस फीसदी वर्णनात्मक प्रश्न पूछे जाने चाहिए। जैसा कि आईआईटी प्रवेश परीक्षा में होता है। वर्णनात्मक प्रश्नों में थोड़ी मुश्किल आती है। एेन वक्त पर लीक भी हो जाए तो ज्ञान के बगैर विस्तृत उत्तर देना मुश्किल है। फिर दो परीक्षाएं रखनी चाहिए। एक स्क्रीनिंग और एक फाइनल हो। आईआईटी का पैटर्न अपनाना चाहिए। 12वीं की परीक्षा के अंकों को भी आधार बनाना चाहिए जैसा आईआईटी में किया गया है। इससे एक हद तक लगाम लग सकती है।
डॉ. आनंद रॉय ऑप्थेल्मोलॉजिस्ट एवं व्यापमं घोटाले को उजागर करने वाले आरटीआई एक्टिविस्ट
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