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सरकारी स्कूलों और अस्पतालों के लिए वरदान है यह फैसला

खरी-खरी            Aug 19, 2015


sriprakash-dixit श्रीप्रकाश दीक्षित नेताओं, अफसरों और जजों के बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाने का आदेश देने वाला इलाहाबाद हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला देश में इन स्कूलों का कायाकल्प करने का एकमात्र उपाय है। लगे हाथों इसमें सरकारी अस्पतालों में इलाज की अनिवार्यता को भी शामिल किया जाना चाहिए तभी यतीमखानों मे तब्दील हो चुके इन अस्पतालों के दिन फिर पाएंगे। जरा याद करें व्यापमं घोटाले के आरोपी नंबर-10 रामनरेश यादव जबसे मध्यप्रदेश के राज्यपाल बने हैं उनका एक पैर राजभवन में तो दूसरा भोपाल के सबसे महंगे प्राइवेट अस्पतालों मे रहता है। पहले वो हर छटे-छमासे नेशनल अस्पताल में भर्ती हो जाते थे और बंसल अस्पताल खुल जाने से वहाँ भर्ती होने लगे हैं। प्रदेश के कर्णधारों से पूछा जाना चाहिए कि जो इलाज नेशनल और बंसल अस्पताल में हो रहा है वह प्रदेश के सबसे बड़े हमीदिया अस्पताल में नहीं हो रहा है क्या..? यदि हो रहा है तो राज्यपाल सरकारी पैसे पर प्राइवेट अस्पतालों मे इलाज क्यों करा रहे हैं..? क्या अपनी शान-ओ-शौकत का भोंडा प्रदर्शन करने के लिए..! उनके इलाज पर पिछले तीन सालों में जो खर्चा हुआ है वह प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री से वसूला जाना चाहिए तभी सत्तारूढ़ नेताओं की अकल ठिकाने आएगी। यहाँ बताना जरूरी है कि मंतरी-संतरी और सरकारी मुलाजिमों को प्रदेश के बाहर दिल्ली, मुंबई और चेन्नई आदि बड़े शहरों के सितारा अस्पतालों मे सरकारी पैसे से इलाज कराने की सुविधा प्राप्त है। जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पत्नी बीमार हुईं थी तब उनका आपरेशन मुंबई के निजी अस्पताल में ही हुआ था। उनके इलाज पर खर्च हुई मोटी रकम के अलावा सरकारी उड़नखटोले के मुंबई आने—जाने में हुए अनेकों फेरों का खर्च जोड़ लें तो कुल खर्च करोड़ तो पार कर ही जाएगा । जब राज्यपाल, मुख्यमंत्री और मंतरी-संतरी सरकारी अस्पतालों से दूर भागते हैं तो इनकी बेहतरी की सुध कौन लेगा..? इसलिए जरूरी है की सरकारी खर्च पर प्रदेश से बाहर इलाज पर तुरंत प्रतिबंध लगे। अपनी सांसदी के दौर में और अब भी विदिशा को पेरिस बनाने का झांसा देने वाले शिवराजसिंह चौहान यदि वहाँ के जिला अस्पताल का मुआयना कर लें तो उनके रोंगटे खड़े हो जाएंगे..! एक साल पहले एक रिश्तेदार के वहाँ भर्ती के समय मैं वहाँ की दुर्गति से रू-ब-रू हो चुका हूँ। सरकारी अस्पतालों की दुर्गति सार्वजनिक ना होने पाए शायद इसीलिए सरकार पत्रकारों का इलाज भी सरकारी खर्च पर प्रदेश में और बाहर कराने लगी है। मीडिया की चर्चाओं के मुताबिक कुछ समय पहले एक पत्रकार का आपरेशन मुंबई के अस्पताल में सरकारी खर्च पर कराया गया जबकि यह भोपाल में ही हो सकता था..! श्रीप्रकाश दीक्षित के फेसबुक वॉल से


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