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सवाल कई! सरकार का एक जवाब, सीबीआई को नहीं सौंपेंगे जांच! मगर क्यों...?

खरी-खरी            Jul 05, 2015


ममता यादव व्यापमं घोटाले में जिस तरह से एक के बाद एक लोग हमेशा के लिये खामोश हो रहे हैं उसे अब महज संयोग मानना किसी के लिये भी मुश्किल काम है। कम से कम एक आम इंसान के लिये तो यह मुश्किल ही है। हॉं प्रदेश की सरकार, उसके मंत्री और साथ में हाईकोर्ट भी किसी दूसरे ग्रह से आये हुये लगते हैं, जिन्हें सारी मौतें सामान्य लग रही हैं। क्या कारण है कि इस मामले में ज्यादतर मरने वाले लोग अपनी मौत के एक दिन पहले सामान्य थे लेकिन अचानक दुनियां को अलविदा कह गये? क्या कारण है कि इतनी मौतों के बाद भी सरकार इसकी जांच सीबीआई को जांच सीबीआई को सौंपने तैयार नहीं हो रही? संदेह माननीय एमपी हाईकोर्ट पर भी जाता है जो एसआईटी से जांच करवा सकता है लेकिन सीबीआई से नहीं? आश्चर्य और अतिशंयोक्ति इससे बडी क्या होगी कि हाईकोर्ट के ही नियुक्त किये गये रिटायर्ड जस्टिस की नजरों में ये मौतें सामान्य है। अजीब इत्तेफाक है कि नरेंद्र तोमर की मौत तब हो गई जब कुछ दिन बाद उसकी गवाही होेने वाली थी। जबलपुर मेडीकल कॉलेज के डीन अरुण शर्मा की मौत के बाद खबर आ रही है कि उन्होंने 200 से ज्यादा जानकारियां एसटीएफ को सौंपी थी। एसटीएफ और एसआईटी भी शक के दायरे से बाहर नहीं हैं। इससे ठीक एक साल पहले 5 जुलाई को डॉ शाकल्ले की भी मौत संदिग्ध परिस्थतियों में हो गई थी? cm-governor हद तो यह है कि घोटाले में नाम आने के बावजूद प्रदेश के गर्वनर साहब ने इस्तीफा नहीं दिया और खुद के बेटे की मौत के बाद उसके पोस्टमार्टम से ही परिवार ने मना कर दिया? ऐसे में अगर कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय यह कहते हैं कि उन्हें किसी जांच पर भरोसा नहीं तो आश्चर्य नहीं,क्योंकि जिस प्रकार की घटनायें हो रही हैं उससे तो जनता का ही भरोसा उठ गया है। अजीब बात यह है कि इस मामले में अभी तक जेल में बंद किसी बडे मगरमच्छ को खरोंच तक नहीं आई है। नम्रता डाभोर की मौत से शुरू हुआ ये सि​लसिला थम नहीं रहा और लगातार छोटी मछलियों को व्यापमं नामक मगरमच्छ निगलता जा रहा है क्यों? व्यापमं घोटाले में बढ रहा मौतों का व्यापक आंकडा भी मध्यप्रदेश सरकार को बेचैन नहीं कर रहा उसे ये मामला सीबीआई को सौंपने लायक नहीं लगता क्यों? मुख्यमंत्री कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से हाईकोर्ट की निगरानी मे जांच हो रही है इसलिये मामला सीबीआई को नहीं सौंपा जा सकता। क्या सुप्रीम कोर्ट को एक पत्र लिखना एक प्रदेश के मुख्यमंत्री के लिये नामुमकिन है? और आखिर में केंद्र का खामोश रवैया इस मामले में हैरान करने वाला है? कुछ तो बोलिये पीएम साहब,कुछ तो करिये। लाखों होनहारों का भविष्य बरबाद कर दिया गया है यहां


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