हद तो यह है कि घोटाले में नाम आने के बावजूद प्रदेश के गर्वनर साहब ने इस्तीफा नहीं दिया और खुद के बेटे की मौत के बाद उसके पोस्टमार्टम से ही परिवार ने मना कर दिया?
ऐसे में अगर कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय यह कहते हैं कि उन्हें किसी जांच पर भरोसा नहीं तो आश्चर्य नहीं,क्योंकि जिस प्रकार की घटनायें हो रही हैं उससे तो जनता का ही भरोसा उठ गया है।
अजीब बात यह है कि इस मामले में अभी तक जेल में बंद किसी बडे मगरमच्छ को खरोंच तक नहीं आई है। नम्रता डाभोर की मौत से शुरू हुआ ये सिलसिला थम नहीं रहा और लगातार छोटी मछलियों को व्यापमं नामक मगरमच्छ निगलता जा रहा है क्यों?
व्यापमं घोटाले में बढ रहा मौतों का व्यापक आंकडा भी मध्यप्रदेश सरकार को बेचैन नहीं कर रहा उसे ये मामला सीबीआई को सौंपने लायक नहीं लगता क्यों? मुख्यमंत्री कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से हाईकोर्ट की निगरानी मे जांच हो रही है इसलिये मामला सीबीआई को नहीं सौंपा जा सकता। क्या सुप्रीम कोर्ट को एक पत्र लिखना एक प्रदेश के मुख्यमंत्री के लिये नामुमकिन है? और आखिर में केंद्र का खामोश रवैया इस मामले में हैरान करने वाला है? कुछ तो बोलिये पीएम साहब,कुछ तो करिये। लाखों होनहारों का भविष्य बरबाद कर दिया गया है यहां
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