सचिन कुमार जैन।
लोकतंत्र के तहत होने वाले चुनाव में हमने जनप्रतिनिधि के पद के लिए व्यक्ति नहीं चुना, ऐसा लगता है कि नागरिकों ने पंडे, पुजारी, मौलवी, धर्म नेता, हवन प्रबंधक चुने हैं।
जो चुने गए हैं, उन्हें यह अहसास है कि उनके पाप कर्म बहुत ज्यादा है। जिनका ह्रास करने के लिए बहुत सारे अनुष्ठान करने होंगे। वे सारे अनुष्ठान सरकारी खर्चे पर करवाते हैं, और 8 प्रतिशत की दर से विकसित हुआ समाज पुष्प वर्षा करके चिल्लाता है - जय, जय, जय हो।
मीडिया के लिए ये ब्रेकिंग न्यूज़ होती है यानी तोड़ू खबर। उन्हें भी इसका हिस्सा बनकर यही अहसास होता है कि उनके पाप कर्म झर रहे हैं। हम सामाजिक संस्थाओं ने प्रोजेक्ट ले रखे हैं, जिनमें सामाजिक बदलाव की बात करना गैर कानूनी है। यदि संविधान की बात करो तो विकास विरोधी मान लिया जाता है और इसके लिए अब दंड के प्रावधान भी हैं। सो हम डरे हुए हैं कि कहीं पंजीयन रद्द न कर दिया जाए।
संविधान में संशोधन के लिए तैयार रहिये। 21वीं सदी के लोकतन्त्र की चुनी हुई सरकार के काम देखिये - कन्यादान करना, तीर्थ यात्राएं करवाना, हज यात्राएं करवाना, कुम्भ मेले का आयोजन करना, अखाड़ों के शिविरों के खम्भे गाढ़ना, धर्म व्यापार के लिए सरकारी विभाग बना देना, शिक्षण संस्थाओं में वैज्ञानिक सोच को ख़तम करते हुए साम्प्रदायिक चरित्र की शिक्षा देना, सावन मास और चातुर्मास को शासकीय योजना से आयोजित करवाना, शासकीय संसाधनों का धार्मिक कृत्यों में उपयोग और शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार, पोषण, सामाजिक सुरक्षा के बजट से हवन पूजन धार्मिक नेताओं का पोषण करवाना; भारत वर्ष के इतिहास में यह नया अध्याय जुड़ा है।
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