हेमंत कुमार झा।
उन्होंने कहा, "चालीसा पढ़ना अपराध है तो मुझे 14 साल जेल में रहना मंजूर"। अभी कल-परसों ही वे हनुमान चालीसा विवाद में 12 दिन की जेल काट कर लौटी हैं।
जब उन्हें गिरफ्तार किया गया था तो मीडिया के कैमरों के सामने अपनी मुट्ठियाँ भींच कर वे बलिदानी तेवर दिखा रही थीं।
लग रहा था कि महाराष्ट्र में आत्महत्या को मजबूर बेबस गरीब किसानों के हक की लड़ाई में वे जेल जा रही हैं।
बगल में उनके विधायक पतिदेव भी थे जो दोनों हाथों को उठा कर न जाने क्या कहना, क्या दिखाना चाह रहे थे।
हनुमान जी के प्रति उनकी भक्ति का प्रदर्शन अन्य भक्तों को आह्लादित कर रहा था और तमाम हिंदी न्यूज चैनल दिन भर उन्हें ही दिखाते रहे। उन्होंने संकल्प भी जोरदार लिया था कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के घर के सामने वे हनुमान चालीसा का पाठ करेंगी।
हालांकि, इसमें गहरे सन्देह हैं कि इससे पहले उन्होंने अपने जीवन में कभी हनुमान चालीसा पढ़ी भी होगी।
इसकी आठ दस पंक्तियां भी उन्हें याद हों, इसका तो सवाल ही नहीं उठता।
लेकिन, उन्हें एक साधारण एम पी से अब बड़ी नेत्री बनना है और इसके लिये धर्म की ध्वजा थाम लेना सबसे शार्ट कट है।
भाजपा ने देश की राजनीतिक संस्कृति बदल दी है। अब आप जनता को गड्ढे में गिराने वाले मुद्दे उठा कर जनता में लोकप्रिय बना सकते हैं।
बीते कुछ दिनों में टीवी न्यूज चैनलों ने उन्हें देश के घर-घर में जाना-पहचाना नाम बना दिया है।
इसके पहले हिंदी पट्टी में राजनीति के अच्छे खासे बहसबाज भी उन्हें शायद ही जानते हों।
जब मीडिया की किसी हल्की-फुल्की रिपोर्ट में 'खूबसूरत महिला सांसदों' की चर्चा होती थी तो उनका नाम भी आता था...उनकी खूबसूरत फोटो के साथ।
लेकिन, अब उन्हें सब जानते हैं। अब वे सीधे उद्धव ठाकरे को चुनाव में सामना करने की चुनौती दे रही हैं।
निर्दलीय के रूप में उन्होंने लोकसभा का चुनाव जीता था, अपने अप्रत्यक्ष राजनीतिक सहयोगियों के बल पर। अब वे महाराष्ट्र ही नहीं, देश भर में भाजपा की स्टार प्रचारक हो सकती हैं।
कितना मनोहारी दृश्य होगा, जब मॉडल और अभिनेत्री रह चुकी कोई महिला धर्म की ध्वजा थाम कर देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने के राजनीतिक अभियान पर निकलेगी, पहले से ही अवसन्न किये जा चुके बेरोजगार नौजवानों के मस्तिष्क में ढेर सारा कचरा भरेगी और...जब सभा स्थल पर हेलीकॉप्टर से उतर कर वह मंच की ओर बढ़ेगी तो "नवनीत तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं" के तुमुल नाद से इलाका गुंजायमान हो उठेगा।
वह संघर्ष करेगी...कि हनुमान जी को उनका हक मिलना ही चाहिये। जब मुल्ले-मौलवी लाउडस्पीकर पर चिल्ला-चिल्ला कर अल्लाह को पुकार सकते हैं तो हमारे हनुमान जी कम हैं क्या।
हम उन्हें डीजे पर पुकारेंगे और उनके मंदिर के सामने नहीं, किसी मस्जिद के सामने पुकारेंगे।
अनजाने में ही वे मंदिर-मस्जिद और अल्लाह-हनुमान जी के एक ही होने का दृश्य प्रस्तुत करेंगी।
हालांकि, उनकी पूरी कोशिश होगी कि अल्लाह के बंदों और हनुमान जी के भक्तों के बीच तनाव बढ़े, झगड़े-फसाद हों...तो वोटों की जोरदार फसल कटे, उन्हें स्टार प्रचारक बनाना, हेलीकॉप्टर पर घुमाना पार्टी के लिये नेमत साबित हो।
संभव है, उनकी सभाओं में हनुमान चालीसा का समवेत गान भी हो। अगर ऐसा होगा तो निस्संदेह यह हिट आइडिया होगा।
धंसे पेटों और सीने पर उभरी हड्डियों वाले कुपोषित, गरीब, बेरोजगार नौजवान भी उनके स्वर में स्वर मिलाएंगे। अद्भुत समां होगा।
जिन नौजवानों को रोटी, रोजगार, शिक्षा और चिकित्सा के मूलभूत अधिकारों के लिये विद्रोह गान करना था, सत्ता की नीतिगत विफलताओं से बढ़ती ही जा रही मंहगाई का विरोध करना था, उन्हें भजन और चालीसा गाते देखना-सुनना ऐतिहासिक अनुभव होगा।
छद्म रचती राजनीति छद्म राजनीतिक प्रतिमान भी गढ़ती है, छद्म नायक-नायिकाओं को भी गढ़ती है।
भूख और बीमारियों से लड़ रहे लोगों को, बेरोजगारी की ग्लानि में डूबे नौजवानों को बरगलाने के लिये, उन्हें अपना राजनीतिक संसाधन बनाने के लिये ऐसे छद्म प्रतिमानों को गढ़ते रहना बेहद जरूरी है।
नवनीत राणा नाम की अल्पज्ञात सांसद और राजनीतिक नेत्री अब एक विख्यात नाम है।
वह राजनीति के छद्म से उपजी एक प्रायोजित प्रतिमा है। किसी संसदीय क्षेत्र की संकुचित सीमाओं से निकल कर वह अब राष्ट्रीय फलक पर है।
जनविरोधी मीडिया किस तरह ऐसे भ्रामक प्रतिमान गढ़ता है, वह प्रतीक है इसकी।
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