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जानलेवा महंगा इलाज,कुछ कीजिए !

खरी-खरी            Jun 06, 2022


राकेश दुबे।
हमारा भारत उन देशों में शामिल हैं, जो स्वास्थ्य पर अपेक्षाकृत कम खर्च करते हैं।

वित्त वर्ष 2021—22 में सकल घरेलू उत्पादन का करीब 2.1 प्रतिशत ही इस मद में खर्च हुआ है, जो 4.72 लाख करोड़ रुपये है| उपचार महंगा होने से लोगों पर दबाव भी बढ़ा है।

सामान्य जन जीवन जीने वाले आज उपचार खर्च वहन करने में असमर्थ नज़र आ रहे हैं।

सरकार शायद उस बात को भूल चुकी है जो वर्ष 2014 देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार संसद भवन में प्रवेश करते समय कही थी कि उनकी सरकार गरीबों को समर्पित है।

आज गरीबों की जेब से होने वाले खर्च में सबसे अधिक भाग दवाओं का है। सरकार के विभाग भी कुछ इसी तरह की बात कह रहे हैं।

एक रिपोर्ट सामने आई है, इस रिपोर्ट में केंद्र और राज्य सरकारों को सलाह दी गयी है कि दवा और जांच बाजार का नियमन होना चाहिए।

यह भी देखा गया है कि डॉक्टर रोगियों को कई दवाएं लिखते हैं, जो ठीक नहीं है।

मेडिकल कॉलेजों में छात्रों को तर्कपूर्ण दवाएं देने के बारे में सिखाया जाना चाहिए।

सस्ती दरों पर दवाएं उपलब्ध कराने के लिए प्रधानमंत्री जन औषधि परियोजना के तहत देशभर में दुकानें तो खुली पर लोगों को बड़ी राहत नहीं मिली है।

कहने को फार्मा उद्योग से सही दाम की जानकारी प्रयोग से पहले लोग दाम की सही जानकारी ऑनलाइन ले सकते हैं, पर ऐसा हो नहीं पा रहा है।

अमृत योजना में सस्ती दवा और उपचार के साजो-सामान मुहैया कराने की दिशा में उठाए गए कदम न काफी है।

ऐसे प्रयासों से निश्चित ही लोगों की जेब का बोझ कम नहीं हो सका है।

अभी इन्हें और व्यापक स्तर पर लागू करने की जरूरत है। सरकार को गांवों-कस्बों में अस्पताल, जांच केंद्र और दवा दुकान की व्यवस्था पर भी ध्यान देना चाहिए।

दवाओं के अलावा अस्पताल तक यात्रा करने और भाड़े पर रहने की जगह लेने में भी मरीज को बहुत खर्च करना पड़ता है।

सरकारी चिकित्सा केंद्रों और अस्पतालों की संख्या कम होने या उनके पास संसाधनों की कमी के कारण लोगों को शहर जाकर निजी अस्पतालों की सेवा लेना पड़ता है और निजी अस्पताल अपनी मनमानी पर उतारू हैं।

इसी रिपोर्ट में रेखांकित किया गया है कि करीब 70 प्रतिशत स्वास्थ्य सेवा निजी क्षेत्र द्वारा मुहैया करायी जा रही है।

बड़े शहरों के सरकारी संस्थानों में भीड़ होने से भी मरीज को बाहर रहना पड़ता है और बाहर ही दवा आदि खरीदना होता है।

कहने को आगामी वर्षों में हर जिले में मेडिकल कॉलेज स्थापित करने और ग्रामीण क्षेत्रों में संसाधन बेहतर करने का लक्ष्य सरकार ने निर्धारित किया है।

निजी कॉलेजों की संख्या बढ़ाने पर भी जोर दिये जाने की बात कही जा रही है पर कब ?

सही मायने में स्वास्थ्य के क्षेत्र में तकनीक का इस्तेमाल बढ़ाने से भी खर्च में कटौती करना संभव होगा।

उपचार को सस्ता करने के उपायों के साथ सार्वजनिक खर्च में बढ़ोतरी करने तथा स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या बढ़ाने पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार संसद भवन में प्रवेश करते समय कहा था कि हमारी सरकार गरीबों को समर्पित है,उपचार के मामले में यह बात ठीक नहीं मालूम होती।

प्रधानमंत्री मोदी की अंत्योदय योजना को साकार करने और समाज के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति तक सरकार की योजनाओं और पहलों का लाभ पहुँचाने की बात बात यदाकदा करते हैं।

परन्तु इसे सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार मौलिक और पारदर्शी तरीके से कुछ करती अनहि दिख रही है।

केंद्र में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार ने पिछले आठ वर्षों के दौरान जनहित और देशहित की बातें तो बहुत हुई परन्तु कदम कम उठाये गये हैं।

यदि हम इक्कीसवीं सदी के सुनहरे भारत का सपना देखते हैं, तो भारतीय समाज का व्यापक विकास एवं उनके जीवन-स्तर में सुधार और उनकी सांस्कृतिक धरोहर को संजोते हुए उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ना अत्यंत आवश्यक है।

शिक्षा ही एक ऐसा सशक्त माध्यम है, जिसे अंगीकार कर कोई भी समाज, वर्ग और राष्ट्र सकारात्मक दिशा में अग्रसर होते हुए भविष्य की एक समृद्धशाली संकल्पना को साकार कर सकता है।

 



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