संजीव जैन।
आजादी के बाद से ही देश के कुछ राज्यों की सियासत रक्त रंजित रही है। फिर बात चाहे बिहार या, उत्तर प्रदेश की हो अथवा पश्चिम बंगाल की या कुछ अन्य राज्य की, यहां राजनीति मैं रंजिश का परिणाम लोकतंत्र की मत पेटिया नहीं होती है बल्कि इसका निर्णय सड़कों पर संघर्ष ही रहा है। राजनीति और अपराध के खतरनाक गठबंधन की वजह से इन राज्यों में सर्वाधिक बाहुबली जनप्रतिनिधि चुने गए और मंत्री जी रहे।
यहां अपराध जगत के कुख्यात लोग ही वर्षों तक राजनीति में अपना सिक्का जमाए रहे। इसके विपरीत मध्य प्रदेश एक ऐसा राज्य रहा जिसे सदैव शांति का टापू माना जाता रहा है। अपराध से विमुख प्रदेश की जनता के शांत स्वभाव को जानते हुए राजनीतिक दल भी अपने चेहरे को उजला रखने की ही हर संभव कोशिश करते हैं।
अब तक प्रदेश में कोई भी राजनीतिक दल हो अपराधियों को टिकट देने से बचता रहा है। यहां तक कि किसी चुने हुए जनप्रतिनिधि का अपराधिक चेहरा सामने आने के बाद राजनीतिक सुचिता दिखाते हुए उसे तत्काल पद और पार्टी से हटाया गया है, लेकिन प्रदेश का वर्तमान राजनेतिक दौर एक अलग इतिहास रचने जा रहा है।
प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आने के बाद से ही कत्ल और अन्य संगीन अपराधों की जो फेहरिस्त सामने आई है वह चौंकाने वाली है।
हालांकि, प्रदेश में सबसे पहले सनसनीखेज मामला तब सामने आया जब राज्य विधानसभा में उपाध्यक्ष चुनी गई महिला नेत्री हिना कांवरे का काफिला सड़क दुर्घटना का शिकार हुआ। इस वारदात में नक्सलियों के शामिल होने की आशंका रही है और जांच भी इसी दिशा में चल रही है।
इसके बाद पहले इंदौर में हत्या बाद में मंदसौर में भाजपा के नगर पालिका अध्यक्ष और विगत दिवस बड़वानी में भाजपा के मंडल अध्यक्ष की निर्मम हत्या ने प्रदेश को हिला दिया है। हालांकि नगर पालिका अध्यक्ष का कत्ल करने वाला आरोपी खुद स्वयं भी भाजपा का ही कार्यकर्ता है, लेकिन कत्ल तो कत्ल ही होता है।
इन संगीन अपराधों के बाद अब प्रदेश की राजनीति अन्य ज्वलंत मुद्दों से दूर होकर सिर्फ अपराध पर केंद्रित हो गई है। मुख्य विपक्षी दल इन मामलों को लेकर कांग्रेस सरकार को कटघरे में खड़ा करने की पुरजोर कोशिश कर रहा है तो वहीं सरकार अपने बचाव में खूनी वारदातों के पीछे भाजपा के ही लोगों के हाथ बता रही है।
बहरहाल, शांति के टापू मध्य प्रदेश में यह क्रमबद्ध अपराध अशांति फैलाने और जनता को भयभीत करने के लिए पर्याप्त है।
राजनीतिक जानकारों की मानें तो प्रदेश की राजनीति ने अपराध की जिस दिशा में यू टर्न लिया है, वह आगे चलकर बेहद खतरनाक साबित होगा। कम से कम निकट भविष्य में होने वाले लोकसभा चुनाव पर तो इसका व्यापक असर दिखेगा ही जबकि राजनीति और अपराध के गठजोड़ को नहीं तोड़े जाने पर आगामी कुछ माह बाद होने वाले प्रदेश के स्थानीय निकाय चुनाव में भी इसका पूरा असर दिखेगा।
कानून व्यवस्था के इन बिगड़े हुए हालात में यह प्रदेश बिहार, उत्तर प्रदेश या पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों की श्रेणी में आ जाएगा जहां राजनीतिक प्रतिद्वंदिता का निष्कर्ष खूनी संघर्ष ही होता है। कम से कम शांति के टापू मध्य प्रदेश को ऐसी खूनी सियासत से बचाया जाना चाहिए...
लेखक प्रदेश की हलचल समाचार पत्र के संपादक हैं।
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