राघवेंद्र सिंह।
देश में इन दिनों राष्ट्रवाद और आक्रामक देशभक्ति की लहर है वजह है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इजरायल यात्रा और उससे उपजे नये समीकरण। इजरायल दुनिया का इकलौता ऐसा देश है जो चौतरफा अपने शत्रुओं से घिरा हुआ है। कह सकते हैं 32 दांतों के बीच में जीभ की तरह। उसकी कुल जमा आबादी 83 लाख से कुछ ज्यादा है लेकिन दुश्मनों से लोहा लेने, देश की सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य और शोध कार्यों में दुनिया में अव्वल है। समुद्र के खारे पानी को मीठा बनाने का हुनर भी उसके पास है। देश भक्ति ऐसी कि कोई उसके एक नागरिक को मारे तो बदले में वह एक दर्जन को मारकर हिसाब चुकता करता है।
अब यहीं से बात शुरू होती है भारत की। राष्ट्रवाद और देशभक्ति की बातें करने के लिये हमारे यहां गज—गज भर लंबी जुबानें हैं मगर आचरण में इंच भर भी पालन नहीं। भारतीय अक्सर जापान और इजरायल की प्रशंसा करते थकते नहीं हैं। यह दोनों ही देश हमारे साथ ही अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हुये थे। दोनों ने दूसरे विश्व युद्ध में तबाही देखी थी। हम और इजरायल विश्व युद्ध विजेता मित्र राष्ट्रों के साथ थे। इजरायल अलबत्ता हिटलर के निशाने पर था और उस समय 60 लाख यहूदियों को जर्मनियों ने मार दिया था। जिनमें में बच्चे भी शामिल थे।
अब आज का इजरायल केवल इतना बड़ा है कि मध्यप्रदेश को भी देखें तो आबादी के मान से हमारे यहां आठ इजरायल बन सकते हैं। यूपी से तुलना करें तो 25 इजरायल अकेले यूपी में बन सकते हैं। दिल्ली मुंबई कोलकाता चेन्नई बेंगलुरु जैसे शहर इजरायल से बड़े हैं। अगर देश की बात करें तो भारत डेढ़ सौ इजरायल के बराबर हैं। भारत के एक शहर से भी छोटा इजरायल अपने दुश्मनों को नेस्तानाबूद करने की ताकत रखता है। उसके पास आधुनिक फाइटर प्लेन, मिसाइलें हैं। साथ ही हवाई हमले और मिसाइल अटैक से बचने के लिये रक्षा छत्रियां हैं।
दूसरी तरफ हम हैं कि अपने ही भीतर देशद्रोहियों को देखने के बाद भी उनका बाल बांका नहीं कर सकते। दिल कहे जाने वाले मध्यप्रदेश जहां राष्ट्रवादी पार्टी भाजपा की हुकूमत चौदहवें साल में प्रवेश कर चुकी है इसके साथ उसमें देशद्रोही भी घुस चुके हैं। मगर उनको कुचलने के बजाय आस्तीन में पाला जा रहा है। क्रिकेट में टीम इंडिया के पाकिस्तान हारने पर मध्यप्रदेश में कई जगह पटाखे चल जाते हैं। भोपाल के हमीदिया अस्पताल में शिलालेख निकलने पर दंगे हो जाते हैं। ऐसे तत्वों को खत्म करना तो दूर पुलिस और प्रशासन उन्हें जानने के बाद भी छू भी नहीं पाता है। फिर कैसे हम इजरायल-जापान की बातें कर सकते हैं। पिछले महीनों में प्रदेश भाजपा युवा मोर्चे में कुछ पदाधिकारी देशद्रोही और आतंकी संगठन आईएसआई से जुड़े पाये गये थे। मेहरबानी इतनी भर हुई कि वे पकड़े गये। लेकिन जब कार्यकारिणी दोबारा घोषित हुई तो देशद्रोहियों को पद और पनाह देने वाले नेता फिर भाजयुमो में प्रदेश पदाधिकारी बनने में सफल हो गये। क्या इजरायल और जापान में ऐसा संभव था?
हम राष्ट्रवाद की बातें तो करते हैं। क्विंटलों से उपदेश भी देते हैं। मगर आचरण में छटांक भर भी अमल नहीं करते। इजरायल में हर नागरिक सैन्य प्रशिक्षण लेता है। युवकों के लिये तीन साल और युवतियों के लिये दो साल सैन्य सेवा अनिवार्य है। लेकिन हमारे यहां मजाल है कि लीडर और अफसरों के बच्चे सेना में जायें। ( अपवाद स्वरुप मुख्य सचिव वी.पी. सिंह के पुत्र सेना में अधिकारी हैं) यह अलबत्ता है कि मुख्यमंत्री से लेकर मंडल अध्यक्ष तक के बेटे राजनीति करेंगे और उसमें पद-प्रतिष्ठा भी उनके लिये आरक्षित है। कार्यकर्ता यहां अब दोयम दर्जे में चले गये हैैं। जैसे ट्रेन में स्लीपर क्लास और जनरल बोगी होती है।
जापान की देशभक्ति भी अनुकरणीय है। ये कहते तो सब हैं। लेकिन ऐसी कार्य संस्कृति विकसित करने के लिये देश में इसका गुणगान करने वाली सरकारें और दल भी निर्णय नहीं करते। जापान में परमाणु संयंत्र रिसाव हो गया था। इसके चलते रेडियोधर्मी किरणें फैलने लगी थीं। उसे हर हाल में नियंत्रित करना था। ऐसे में वहां काम करने वाले कर्मचारी-अधिकारी अपने घर जाकर परिजनों से मिले बिना संयंत्र में रेडियेशन रोकने के लिये उतर गये जबकि उन्हें पता था कि वे जिंदा वापस नहीं आयेंगे। उन्होंने ईमेल पर अपने परिजनों को संयंत्र में उतरने की सूचना देते हुये गुडबाय जरूर किया था। यह है राष्ट्रभक्ति। लेकिन भारत में ऐसा कितने लीडर और पार्टियों के लोग करते हैं। सेना की कार्यवाही पर सवाल जरूर होते हैं। अच्छा हो कि इजरायल-जापान की यात्रा और राष्ट्रवाद के गुणगान को भारतीय पार्टियां अपने आचरण में भी उतारें।
भारतीय चुनाव आयोग पूरी दुनिया में निष्पक्षता के लिये मशहूर है लेकिन देश में उसकी छवि को दागदार करने की कोशिशें हो रही हैं। ईवीएम पर भाजपा को छोड़ लगभग सभी पार्टियों ने गड़बड़ी का शक किया है लेकिन जब आयोग ने साबित करने की चुनौती दी तो कोई भी पार्टी बिलों से बाहर ही नहीं आयी। चुनाव की प्रतिष्ठा इतनी है कि दूसरे देश उसकी सेवाएं लेने की बात करते हैं। रूस जैसा देश ईवीएम मांगता है।
हम मध्यप्रदेश के संदर्भ में इतना ही कहेंगे एक उप चुनाव में आयोग के पर्यवेक्षक के विरुद्ध सत्ताधारी दल ने टिप्पणी की थी। वह बात आई गई हुई थी कि संसदीय मंत्री नरोत्तम मिश्रा के निर्वाचन को पेड न्यूज के कारण शू्न्य घोषित कर दिया। यह फैसला सूबे की सियासत में तूफान लाने वाला था। ऐसे संजीदा मौके पर प्रदेश भाजपा की टिप्पणी आयोग के खिलाफ आना गरिमा के विपरीत है। टिप्पणी का लब्बोलुआब यह था कि आयोग ने मिश्रा की बात को ठीक से नहीं सुना और ध्यान नहीं किया। मामला अब हाई कोर्ट में है। लेकिन संगठन द्वारा आयोग पर पक्षपात का आरोप लगाना उसकी साख को घटाने वाला है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और IND24 न्यूज चैनल के समूह प्रबंध संपादक हैं। यह आलेख उनके फेसबुक वॉल से लिया गया है।
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