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कलयुग केवल नाम अधारा

खरी-खरी            Apr 16, 2023


हेमंत कुमार झा।

उन्हें बड़ा माफिया बनना था क्योंकि छोटे-मोटे अपराध से उन्हें वह नाम हासिल नहीं हो रहा था जो वे चाहते थे। जाहिर है, अतीक अहमद और उसके भाई को सरेआम फिल्मी अंदाज में मार डालने के बाद उनका नाम पूरा देश जान गया है और हर कोई उनके बारे में जानने को उत्सुक है।

हालांकि, अब इसमें गहरे संदेह है कि आगे वे बड़े माफिया या गुंडा के रूप में नाम बना पाएंगे, क्योंकि सारे सबूत स्पष्ट हैं और शायद ही वे आजीवन कारावास से बच पाएं।

वैसे, गोली चला कर जय श्रीराम का पवित्र उदघोष भविष्य में उनके लिए संभावनाओं के नए द्वार खोल सकता है।

"कलयुग केवल नाम अधारा,

सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा"

श्रीराम नाम के उच्चारण की महिमा कितनी बड़ी है, इसका प्रत्यक्ष अनुभव तो अब जाकर कलयुग के इस कालखंड में लोगों को हो रहा है, खास कर मोदी युग में, जब लोग देख रहे हैं कि संत-साध्वी वेशधारी लंपट गण मंच पर खुलेआम हत्या, धर्मांधता, रेप आदि का आह्वान करते हैं और फिर अंत में गगनभेदी स्वरों में 'जय श्रीराम' का उदघोष उनको कानून के शिकंजे से बचा ले जाता है।

क्या पता, गोली चलाने के बाद राम नाम का उच्चारण इन तीनों के लिए कौन से अवसर ले कर आएगा। पता नहीं, उन गली छाप शोहदों ने किस प्रेरणा या किनकी प्रेरणा से नाम सुमिरन किया।

इतिहास किस नजरिए से ऐसी घटनाओं को देखेगा, यह वक्त बताएगा। लेकिन लगता नहीं कि यह रहस्य कभी खुल कर सामने आ पाएगा कि बड़ा माफिया गुंडा बन कर नाम कमाने के लिए तीन नौजवानों ने आखिर क्यों और कैसे इस लोमहर्षक घटना को अंजाम दिया।

 पुलवामा का ही पूरा सच कहां सामने आ सका अब तक? शायद आएगा भी नहीं।

सत्यपाल मलिक के इंटरव्यू के बाद भी सच का संधान ईमानदारी से हो, इसकी कोई संभावना नहीं दिखती।

खबरों के इस रेले में जम्मू कश्मीर के पूर्व गवर्नर साहब का यह विस्फोटक इंटरव्यू कब और कैसे गुम हो जाएगा, पता भी नहीं चलेगा।

वैसे भी, कोई राष्ट्रवादी चैनल या हिन्दी अखबार इस खबर का जरूरी संज्ञान लेने से परहेज ही कर रहे हैं।

कुछ दिलजले पत्रकार इस इंटरव्यू को मुद्दा बना कर चर्चा-परिचर्चाओं में लगे ही थे, करण थापर के बाद रवीश कुमार ने दोबारा मलिक साहब का हिन्दी में इंटरव्यू लिया ही था और उस पर लोगों का ध्यान जाने ही वाला था कि अचानक से अतीक अहमद अपने भाई समेत बेहद नाटकीय तरीके से मार डाला गया और लोगों का ध्यान उस पर चला गया।

जिन्हें उन तथ्यों की गहराई में जाने की दिलचस्पी होती जो सत्यपाल मलिक के कबूलनामों से फिजाओं में तैरने लगे थे, वे अब उत्सुकता से उन तीनों हत्यारों की कुंडली खंगालने वाली खबरों में डूब गए हैं।

राजनीति के कितने अंधेरे कोने होते हैं और वे अंधेरे कितने घने होते हैं, उन सघन अंधेरों में क्या-क्या खेल रचे जाते हैं, यह आम आदमी समझने की कोशिश कर के भी नहीं समझ पाता। यहां तो समझने की कोशिश भी नहीं दिखती।

बहरहाल, अब प्रादेशिक, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया उन तीन सड़क छाप गुंडों की जन्म कुंडली खंगालने में लग गया है। कोई उनके पिता और भाई से बात कर रहा है, कोई उनके फूफा और मामा से।

वे कितने दिनों पर घर आते थे, कितने दिनों पर नहाते थे, नाश्ते में क्या पसंद करते थे आदि आदि ज्वलंत प्रश्नों के जवाब हमें अगले कुछ दिनों तक मिलते रहेंगे। कुछ उत्साहित और जागरूक रिपोर्टर तो यह भी पता कर लेंगे कि मूड आने पर वे किस ब्रांड की पीते थे।

कुछ सप्ताहों के बाद यह मामला ठंडे बस्ते में चला जाएगा, इस घटना प्रधान और सूचना क्रांति के युग में फिर कुछ नया घटित होगा, लोगों की नजरें उधर मुड़ जाएंगी, अगला माफिया सरदार बनने की घोषित महत्वाकांक्षाओं से प्रेरित वे तीनों लफंगे कोर्ट और जेल का चक्कर लगाते बूढ़े हो जाएंगे, लेकिन, यह सच शायद ही सामने आ सके कि आखिर उन्होंने क्यों ऐसा किया, उनकी असल प्रेरणा कहां से आई।

वैसे, देखना यह भी है कि सार्वजनिक रूप से, कैमरों के सामने हत्या करने के बाद 'जय श्रीराम' का उदघोष उन्हें कहां ले जाता है।

बचपन में हमने अजामिल की कथा पढ़ी थी जो जीवन भर पाप कर्मों में लिप्त रहा, लेकिन, जब उसका अंत समय आया तो उसने नारायण नामक अपने पुत्र को पुकारा।

अब जब, "कलयुग केवल नाम अधारा"...तो, भले ही वह पुत्र का नाम हो, नाम मात्र का उच्चारण करते ही बैकुंठ से नारायण के दूत उस पापी अजामिल को बचाने दौड़ पड़े।

अतीक अहमद जैसे लोगों की अक्सर ऐसी ही नियति होती है, लेकिन दिलचस्प होगा यह देखना कि हत्या के बाद नाम सुमिरन करने वाले उन तीनों की क्या गति हुई।

हालांकि, मुश्किल यह है कि खबरों के इस रेले में किसी एक खबर पर लोगों की अधिक दिनों तक दिलचस्पी रहती ही नहीं।

इसलिए, वे तीनों हत्यारे अपनी नियति का साक्षात्कार स्वयं करेंगे, उनके परिजन करेंगे। लोग तो जल्दी ही यह सब भूल जाएंगे।

लेकिन, इतना तय है कि इतिहास इन सबको दर्ज कर रहा है और वह एक दिन आएगा जब वह आने वाली पीढ़ियों को बताएगा कि राजनीति के किन सघन अंधेरों में कितनी दुरभिसंधियां रची जाती रहीं।

 

 



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