महाराज ऐसे बनाओगे हिन्दू राष्ट्र ! हैहय कलचुरी वंश का इतिहास तो पढ़ लेते

खरी-खरी            Apr 29, 2023


नितिनमोहन शर्मा।

महाराज, क्या ऐसे बनाओगे देश को हिन्दू राष्ट्र? आप तो सर्व समाज को समरस करने निकले हो न? समाज मे समरसता स्थापित करना आपका धेय्य है न? आप तो अब तक ये ही कहते आ रहे है न कि सर्व समाज- सर्व जातियां एक है-महान है?

फिर आपकी नजरो में हैहय कलचुरी वंश के आराध्य देवता और उनके वंशज कैसे खलनायक हो गए?

आप तो बाबा बागेश्वर के भक्त हैं। बल बुद्धि के देवता के उपासक हैं। ऊपर से शास्त्री की उपाधि भी हैं।

आपका शास्त्र अध्ययन इतना कमजोर कैसे रह गया कि आप राज राजेश्वर भगवान सहस्त्रार्जुन सहस्त्रबाहु के विषय में आपत्तिजनक बात कहते हैं?

वो भी व्यास पीठ पर बैठकर जहा से सिर्फ सत्य की उच्चारित होता हैं।

आप ये भूल गए क्या? फिर असत्य संभाषण क्यो किया?

आप शास्त्री है न? तो फिर इतना भी नही पता कि त्रेतायुग में भगवान सहस्त्रार्जुन का कब, कैसे और क्यो प्राकट्य हुआ था?

उन्हें भगवान विष्णु का अवतार कहा जाता है, ये आपको नहीं पता है क्या? उन्हें चक्रावतार भी इसलिए ही तो कहा जाता हैंं।

रावण जैसे महाबली को युद्ध मे पराजित ही नही, बंदी बना लेने वाले अवतार के विषय मे आपका ज्ञान अल्प कैसे रह गया?

बे तो दत्तात्रेय के शिष्य थे और उन्ही की कठोर साधना से उन्हें हजार हाथों का बल प्राप्त करने का वरदान मिला था जिसके कारण उन्हें सहस्त्रार्जुन कहा जाता है।

भगवान राजराजेश्वर के प्रति सनातन समाज मे कितनी आस्था है? इसका आकलन किया कभी आपने?

आपका " बाल सुलभ " व्यवहार तो इसका कारण नहीं? या इस बात का अहसास नहीं कि आप अपने मुखारविंद से क्या कह रहे है?

आज आपके कहे आपत्तिजनक शब्दों से करोड़ों लोग आहत हैं, उनके लिए आपके कहे शब्द एक मर्मान्तक पीड़ा दे रहें हैं। समाजजनो ने कभी कल्पना नही की थी कि कभी कोई इस तरह उनके इष्ट के विषय मे सवाल खड़े करेगा।

जो देव हैं, उनके लिए मानव टिप्पणी करें, ये बात तो आपको भी समझना ही चाहिए न? आप कथाकार है तो आपकी जिम्मेदारी तो और बढ़ जाती है और तब तो और भी ज्यादा जब आपको सुनने हजारों लाखों श्रद्धालु उमड़ रहे हैं।

उनके मन में आपके कहे शब्दो ने कितना भ्रम पैदा किया होगा, इसका अहसास है क्या आपको?

महाराज, आपके कहे शब्दों से न सिर्फ हैहय कलचुरी वंश के वंशज ही दुःखी, आहत और कुपित  नहीं है, बल्कि सनातन धर्म के समस्त धर्मावलंबियों को भी ठेस पहुंची है।

अच्छा होता आप ईमानदारी से बात को स्वीकारते कि भूल हुई। सिर्फ खेद प्रकट करने से समाज के आहत मन को कैसे राहत मिलेगी?

क्या भगवान राजराजेश्वर सनातनी नही? उनकी तो कुलदेवी माता दुर्गा हैं, देवता भगवान शिव हैं। वेद यजुर्वेद हैं, शाखा वाजसनेयी हैं, सूत्र परस्कारग्रहसूत्र हैं, गढ़ खडीचा है, नदी नर्मदा है, ध्वज नील है, शस्त्र कटार ओर वृक्ष पीपल हैं, प्राचीन महिष्मति नगरी राज्य की राजधानी है, इतनी जानकारी थी क्या आपको?

अगर नहीं थी तो फिर शब्द बाण क्यो चलाये और अगर जानकारी थी तो फिर तो आपका वक्तव्य घोर आपत्तिजनक है।

महाराज ऐसे तो बनने से रहा आपका वो हिन्दू राष्ट्र जिसे लेकर आजकल आप खूब चर्चाओं में भी हो और सत्ता प्रतिष्ठानों के लाडले भी हो।

हर मंच पर आप सनातन को एकजुट होने और देश के हिन्दू राष्ट्र होने का मूलमंत्र दे रहे हैं। सत्ता तो आपकी व्यास पीठ में अपनी सत्ता को अक्षुण्ण मानने का स्वप्न पाले बैठी हैं। बुंदेलखंड की चुनावी वैतरणी भी आपके जरिये पार करने के मंसूबे भी पल गए हैं और आप हैं कि सनातन में ही भेद करने वाले बोलवचन कर रहे हैं।

ऐसे में कैसे आपका हिन्दू राष्ट्र का सपना पूरा होगा? जब आप जैसा आचार्य की हिन्दू समाज मे मतभेद ही नही, मनभेद की बात करेगा।

 चंद्रवंशी राजा, सम्पूर्ण धरती के थे राजा

सहस्रबाहु अर्जुन ने अपने जीवन में यूं तो बहुतों से युद्ध लड़े लेकिन उनमें दो लोगों से लड़े गए युद्ध की चर्चा बहुत होती है।

पहला लंकाधिपति रावण से युद्ध और दूसरा भगवान परशुराम से। नर्मदा नदी के तट पर महिष्मती (महेश्वर) नरेश हजार बाहों वाले सहस्रबाहु अर्जुन और दस सिर वाले लंकापति रावण के बीच एक बार भयानक युद्ध हुआ।

इस युद्ध में रावण हार गया था और उसे बंदी बना लिया गया था। बाद में रावण के पितामह महर्षि पुलत्स्य के आग्रह पर उसे छोड़ा गया।

इस चंद्रवंशी राजा का धरती के संपूर्ण द्वीपों पर राज था। मत्स्य पुराण में इसका उल्लेख है। भागवत पुराण में उत्पत्ति की जन्मकथा का वर्णन है।

उन्होंने भगवान विष्णु की कठोर तपस्या करके 10 वरदान प्राप्त किए और चक्रवर्ती सम्राट की उपाधि धारण की थी।

सहस्रबाहु का जन्म महाराज हैहय की 10वीं पीढ़ी में माता पद्मिनी के गर्भ से हुआ था। उनका जन्म नाम एकवीर था।

चन्द्रवंश के महाराजा कृतवीर्य के पुत्र होने के कारण उन्हें कार्तवीर्य-अर्जुन कहा जाता है।

अपनी अराधना से भगवान दत्तात्रेय को प्रसन्न किया था।

भगवान दत्तात्रेय ने युद्ध के समय कार्त्तवीर्याजुन को हजार हाथों का बल प्राप्त करने का वरदान दिया था, जिसके कारण उन्हें सहस्त्रार्जुन कहा जाने लगा।

भगवान पराशुरामजी का हैहयवंशी राजाओं से लगभग 36 बार युद्ध हुआ था। क्रोधवश उन्होंने हैहयवंशीय क्षत्रियों की वंश-बेल का विनाश करने की कसम खाई थी।

 

 



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