समीर चौगांवकर।
सुषमा स्वराज इस देश के करोड़ों लोगों और भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं की प्रिय नेता अपने अंतिम दिन तक बनी रहीं। सुषमा जी के बारे में यह भी सच है कि पार्टी ने उनको जितने मौक़े नहीं दिए उससे ज़्यादा चुनौतियां दीं और उन्होंने दी हुई जिम्मेंदारियों को पूरे समर्पण भाव से निभाया।
सुषमा स्वराज ने हर भूमिका चाहे वह पार्टी कार्यकर्ता,सांसद या मंत्री की हो पक्के इरादे,लगन और ईमानदारी से निभाई जो उनकी अनूठी खूबी थी।
सुषमा स्वराज जन्मजात वक्ता थी। उनकी वक्तृता शैली अपनी सहजता और शुद्धता में वाजपेयी की ठहराव भरी नाटकीयता को टक्कर देती थी। वे सरल और सहज थीं हालांकि सरलता और सहजता की भी अपनी जटिलताएं और वक्रताएं होती हैं।
भारतीय जनता पार्टी में सुषमा स्वराज वह अकेली महिला नेता थीं जो कई पुरुष नेताओं की कतार में अलग से दिखती थीं और कई बार उन पर भारी भी पड़ती थी।
मदनलाल खुराना और साहिब सिंह वर्मा के झगड़े में पिसती दिल्ली और विधानसभा में भाजपा की हार तय मान रहे वाजयेपी ने ठीक चुनावी साल 1998 में जब सुषमा स्वराज को मुख्यमंत्री बनने के लिए कहा तो सुषमा ने अपनी अनिच्छा के बाद भी चुनौती स्वीकार की। इसके बाद 1999 में जब बीजेपी ने सुषमा स्वराज को कर्नाटक के बेल्लारी से सोनिया गांधी के खिलाफ लड़ने के लिए कहा तब भी अपनी अनिच्छा और तय हार के बाद भी लड़ने का जस्बा दिखाया।
सुषमा स्वराज ने कन्नड़ सीखी और अपने हुनर और जबरदस्त स्मरण शक्ति के बल पर एक पखवाड़े के भीतर रैलियों को धाराप्रवाह कन्नड़ में संबोधित करने लगीं। हालांकि सुषमा हार गईं, लेकिन उन्होंने लोगों का दिल जीत लिया।
विदेश मंत्री रहते हुए उन्होंने कूटनीति कम की, विदेश मंत्रालय को मानवीय शक्ल ज्यादा दी। सोशल मीडिया के सहारे वह लगातार लोगों से जुड़ी रही और मदद करती रही। विदेश मंत्री के तौर पर उन्होंने बंधे बंधा सांचे को तोड़ दिया और खुद को ज्यादा सुलभ बनाने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वाली पहली मंत्री बनी।
दुनिया भर से हिंदुस्तानी उनका दरवाजा खटखटाते और उन्होंने कभी निराश नहीं किया। नरेंद्र मोदी जैसे कद्दावर नेता के सामने जब सब मंत्रालय बौने बन गए तब भी भारत की विदेश मंत्री का कद अगर छोटा नहीं पड़ा तो इसलिए कि सुषमा स्वराज ने इसे एक अलग स्तर पर पुनर्परिभाषित कर दिया।
सुषमा स्वराज की सौम्य साड़ी और बड़ी बिंदी आज भी याद आती है।एक पारंपरिक भारतीय स्त्री की जो अपनी आधुनिक छवि हो सकती है,सुषमा उस पर बिल्कुल खरी उतरती थीं। समकालीन भारतीय राजनीति में इस दृश्यसाम्य में बहुत कम नेत्रियां उनके पास फटकेंगी।
सुषमा स्वराज को न्यूनतम तय 25 साल की उम्र में सबसे नौजवान मंत्री बनने का श्रेय हासिल है।
वे किसी भी राष्ट्रीय पार्टी की पहली महिला प्रवक्ता थीं और देश की पहली पूर्णकालिक महिला विदेश मंत्री भी बनी।
सुषमा स्वराज मुखरता के लिए जानी जाती थी, लेकिन उनकी राजनीतिक मजबूरियों ने उनकी मुखरता की सीमांए भी तय की और कई महत्वपूर्ण मामलों पर उन्होंने चुप्पी चुनी।
उनके ही विभाग के राज्य मंत्री एमजे अकबर पर जब एक के बाद एक यौन उत्पीड़न के आरोप लगे, तब मुखरता के लिए जाने वाली सुषमा चुप रही।
अपने राजनीतिक दल के वैचारिक खोल से बाहर न देखने की मजबूरी ने उनको चुप रहने के लिए विवश किया लेकिन सुषमा स्वराज से इनसे परे होने की उम्मीद जरूर थी।
स्वराज पूरी की पूरी भारतीय थीं, पर उनका नजरिया वैश्विक था।
वे पूर्णकालिक राजनीतिक, पेशेवर और पारिवारिक महिला भी थीं, भारतीय परंपराओं और संस्कृति की साक्षात मूर्ति।
सुषमा स्वराज के व्यक्तित्व में सौम्यता उनका वह मूल्य थी जिसने उन्हें लगभग सार्वदेशिक और सर्वदलीय स्वीकृति दी और हर भारतीय का चहेता नेता बनाया। सुषमा स्वराज भारतीय राजनीति का सौम्य और शालीन चेहरा थी।
आज के दिन सुषमा जी का निधन हुआ था। सुषमा जी को नमन
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