
सुनील कुमार गुप्ता।
हमें एक अच्छा संविधान मिला है, पर यह हमारे नेताओं पर निर्भर करता है कि वो कैसे संविधान को आगे बढ़ाएं। वो अच्छे संविधान को बुरा बना सकते हैं और एक बुरे संविधान को भी अच्छा बना सकते हैं. -डॉ. भीमराव अंबेडकर
संविधान एक दृष्टिकोण है, एक रोशनी है, जो हमें, देश को आगे बढ़ा सकता है। संविधान के दस्तावेज में हर शब्द नहीं लिखा जा सकता है, लेकिन उसके भाव और नैतिकता महत्वपूर्ण है, जिसे अपनाकर आगे बढ़ा जा सकता है.-मदन बी. लोकुर, सेवानिवृत जस्टिस, सुप्रीम कोर्ट
आज 26 नवंबर है, वो ऐतिहासिक दिन जिसे हम संविधान दिवस के रूप में मनाते हैं। यह वह दिन है, जब सन् 1949 को देश का अपना संविधान बनकर तैयार हुआ था । 26 जनवरी 1950 में इसे लागू किया गया। भारत के संविधान को दुनिया को अनूठा संविधान भी माना जा सकता है। दरअसल यह केवल व्यक्ति के अस्तित्व, न्याय, स्वतंत्रता, समानता, बंधुता और गरिमा का ही ध्यान नहीं रखता है, बल्कि पूरे विश्व, महाद्वीप और प्रकृति के संरक्षण और मानवता की बात भी करता है।
हम जब देश के संविधान बनने के सफरनामे, उसकी प्रक्रिया पर नजर डालते हैं तो पाते हैं कि पाते हैं, कि यह केवल एक कानूनी, अनुच्छेदों से भरा एक दस्तावेज मात्र नहीं हैं, बल्कि इसमें शामिल हर पंक्ति के पाछे सामाजिक, आर्थिक बदलाव, सुधार के ठोस तर्क मौजूद हैं। संविधान बनाने वालों ने भारतीय समाज की बुराईयों और विसंगतियों को छिपाने की कोशिश नहीं की। भारत के लोग जिन बुनियादी अधिकारों से वंचित थे, उनका पूरा संरक्षण करने वाली व्यवस्था बनाने की पहल इस संविधान में की गई।
भारतीय संविधान की विकास यात्रा, तथ्य और तर्कों पर लिखी पुस्तकों का अध्ययन करने पर पाते हैं कि भारत का संविधान कोई एक बार की पहल में लिखा गया संविधान नहीं है, इसके पीछे सवा सौ सालों के सामाजिक सुधार के अभियानों, ब्रिटिश सरकार द्वारा डेढ़ सौ सालों में बनाए गए अलग-अलग कानूनों के अनुभव और राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलनकारियों के द्वारा 50 सालों में बनाए गए अलग-अलग प्रारूप खड़े हुए हैं ।
हमारे संविधान को बनाने में उन्नीसवीं सदी की शुरूआत से हुए सामाजिक सुधार आंदोलन मील का पत्थर साबित हुए। इन पहलों ने भारतीय समाज में यह चेतना जागृत करना शुरू की कि भारत में ऐसी संवैधानिक व्यवस्था होनी चाहिए, जो आपसी प्रेम को बढ़ावा दे और शोषणकारी व्यवस्था को समाप्त करे और न्याय की अवधारणा को स्थापित करे।
इसमें सेरामपुर मिशन प्रेस के माध्यम से सन् 1800 में बंगाल में जन शिक्षण को बढ़ावा देने की पहल, 1828 मे राजा राममोहन राय द्वारा की गई सती प्रथा और बाल विवाह की कुरीतियों को समाप्त करने के लिए समाज सुधार की पहल, 1848 में सावित्री बाई फुले द्वारा महिलाओं के लिए पहला स्कूल खोलने और 1853 में महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए बाल हत्या प्रतिबंध गृह खोलने की पहल, 1873 में ज्योतिबा फुले द्वारा समाज में जाति व्यवस्था को समाप्त करने के उद्देश्य से की गई सत्य शोधक समाज की स्थापना, महिलाओं को शोषण से मुक्त कराने की पहल को हम सब जानते हैं। इसके अलावा ईश्वर चंद्र विद्यासागर की कोशिशों से हिन्दू पुनर्विवाह अधिनियम, विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856 बना। वर्ष 1882 में रमाबाई के आर्य महिला समाज संगठन के माध्यम अनाथ संरक्षण और बालिका शिक्षा के कार्यों को कौन भुला सकता है।
सर सैय्यद अहमद खान ने 1863 में मुस्लिम समुदाय में वैज्ञानिक दृष्टिकोण स्थापित करने के लिए साइंटिफिक सोसायटी की स्थापना की। 1875 में हिन्दु समाज सुधार की पहलों के लिए चिरपरिचित गुजरात के स्वामी दयानंद सरस्वती, 1905 में शिक्षा, स्वास्थ्य, शराबबंदी, गरीबी, छुआछूत और अस्पृश्यता, सामाजिक विसंगति के खिलाफ अपनी संस्था के माध्यम से पहल करने वाले बाल कृष्ण गोखले, केरल के श्री नारायण गुरू, आंध्र प्रदेश के कंदुकूरि वीरेश लिंगम,, डॉ. आत्मरंग पांडुरंग, स्वतंत्रता आंदोलन के समानांतर ही देश की भीतरी विसंगतियों को दूर करने करने के लिए जी-जान से जुटे रहे महात्मा गांधी जैसे पुरखों के विचार-कर्मपथ और भाव दर्शन हमारे संविधान में आपको मिल जाएंगे।
राजनैतिक पहलों का इतिहास भी आप तलाशेंगे तो पाएंगे इसकी शुरूआत 1895 से हो गई थी. व्यक्तिगत, सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक संगठनों से लेकर उस दौर की रियासतों, राजे-रजवाड़ों तक ने आजादी के बाद देश की व्यवस्था, नियम-कानूनों कैसे होंगे, इसके अपने-अपने प्रारूप बनाए थे और संविधान सभा तक पहुंचे थे।
देश को आजादी 15 अगस्त 1947 को मिली, लेकिन उससे पहले से संविधान सभा के 299 सदस्य स्वतंत्र भारत के लिए संविधान बनाने में लगे हुए थे। यह काम इतना आसान नहीं था, 9 दिसंबर 1946 को संविधान सभा की पहली बैठक हुई। 2 साल 11 महीने, 18 दिनों तक कई बैठकों और बहसों के लंबे दौर चले। इसके बाद डॉ. भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता में बनी ड्राफ्टिंग कमेटी ने इसे अंतिम रुप दिया। 26 नवंबर 1949 साधारण सभा की आखिरी बैठक में इसे अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित किया गया। इसीलिए हम इस दिन को संविधान दिवस के रूप में मनाते हैं।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि यह विश्व का सबसे बड़ा और हस्तलिखित संविधान है। जब संविधान बना, तब इसमें 22 भाग, 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियां थीं. समय-समय पर हुए संशोधनों के बाद वर्तमान में संविधान में 470 से अधिक अनुच्छेद और 12 अनुसूचियां हैं।
अमेरिका, रूस, आस्ट्रेलिया, फ्रांस, ब्रिटेन जैसे देशों की श्रेष्ठ अवधारणाओं और संवैधानिक मूल्यों को हमारे संविधान की प्रस्तावना में शामिल किया गया है। यह उल्लेखनीय तथ्य है कि जो लोग भारत का संविधान बना रहे थे, वे आपस में भी एकमत नहीं थे। उनके विचारों में भारी टकराव था, इसके बावजूद वे हिंसक नहीं थे। उनका विचारों की विविधता और परस्पर प्रेम के भाव में भरपूर विश्वास था। असहमतियां थीं, लेकिन कोई भी सह-अस्तित्व की अनिवार्यता से समझौता नहीं कर रहा था।
जब संविधान की रचना की जा रही थी, तब संविधान सभा में शामिल लोगों ने कई बार कहा था कि हमें एक बेहतर भविष्य के लिए संविधान बनाना है। हमें उन मूल्यों को तय करना है, जिनसे भारत के स्वभाव और चरित्र का निर्माण हो। लेकिन वह यह भी कह गए कि संविधान कितना भी अच्छा बना लीजिए, यदि इसे लागू करने वाले लोगों का समूह और उनका विचार दूषित हुआ, तो अच्छे संविधान के कोई मायने नहीं रह जाएंगे।
संविधान बनने के बाद संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर ने भी कहा कि, हमें एक अच्छा संविधान मिला है, पर यह हमारे नेताओं पर निर्भर करता है कि वो कैसे संविधान को आगे बढ़ाएं. वो अच्छे संविधान को बुरा बना सकते हैं और एक बुरे संविधान को भी अच्छा बना सकते हैं।
अभी हाल ही संविधान संवाद की एक व्याख्यानमाला में अपने संबोधन में सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत जस्टिस मदन बी. लोकुर ने अपने संबोधन में कहा कि हमारे संविधान में तीन चार बातें सबसे महत्वपूर्ण हैं। एक तो है प्रस्तावना- जिसमें मार्गदर्शक हैं न्याय, स्वतंत्रता, समानता, गरिमा, ये मूल्य आधारित दृष्टिकोण हैं, जिससे हम अपने संविधान को आगे बढ़ा सकते हैं।
दूसरा-संविधान हमें कुछ बुनियादी अधिकार देता है, जैसे-जीवन जीने, अभिव्यक्ति, शैक्षिक, सांस्कृतिक और धार्मिक स्वतंत्रता आदि। तीसरा- संविधान में हमारे कर्तव्यों का भी उल्लेख है। लेकिन यह नहीं हो सकता है कि आप प्रस्तावना को एक तरफ रखें और अधिकारों को दूसरी तरफ और अपने स्वार्थ के हिसाब से संविधान को आगे बढ़ाएं। दरअसल संविधान एक दृष्टिकोण है, एक रोशनी है, जो हमें, देश को आगे बढ़ा सकता है।
यह देश के हम यानी नागरिकों और नेताओं पर निर्भर है कि वह इसका कैसे उपयोग करें और कैसे आगे बढ़ाएं। संविधान के दस्तावेज में हर शब्द नहीं लिखा जा सकता है. लेकिन संवैधानिक भाव और नैतिकता महत्वपूर्ण है, जिसे अपनाकर आगे बढ़ा जा सकता है।
यह बात इसलिए कर रहा हूं कि आज व्यवस्था की ओर से कई काम और फैसले ऐसे किए जा रहे हैं, जिसमें नागरिक को न्याय नहीं मिल रहा, समानता, स्वतंत्रता और गरिमा का संरक्षण नहीं हो रहा है।
भारतीय संविधान विविधता और अनेकता में एकता का अनुकरणीय उदाहरण है, जो विभिन्न संस्कृतियों, धर्मों, जातियों, भाषाओं, पहनाओं और परंपराओं के लोगों को एक साथ परस्पर, प्रेम, भाईचारे और सद्भाव के साथ रहने का संदेश देता है।
संविधान की प्रस्तावना की पहली पंक्ति ही है “हम, भारत के लोग”, यह वाक्यांश ही स्पष्ट कर देता है कि भारत का संविधान अपने अधिकार और वैधता लोगों से प्राप्त करता है, कहीं बाहरी व्यक्ति या शक्ति द्वारा थोपा नहीं जाता, बल्कि लोगों द्वारा स्वयं तैयार किया और अपनाया जाता है।
संविधान की प्रस्तावना में ही स्पष्ट कर दिया गया कि भारतीय संविधान का मूल आधार न्याय, स्वतंत्रता, समानता, बंधुता, गरिमा जैसे महत्वपूर्ण संवैधानिक मूल्य हैं। दरअसल मानवीय मूल्य ही संवैधानिक मूल्य है, जिसमें प्रेम, दया और करूणा को विशेष स्थान दिया गया है।
भारतीय संविधान यह तय करता है कि देश में कोई भी व्यवस्था, चाहे वह विधायिका, कार्यपालिका हो या न्यायपालिका अथवा भारतीय दण्ड संहिता का अनुपालन, सभी को संविधान के दायरे में नियम-कानूनों के अनुसार ही चलेगी। संविधान से परे कुछ भी नहीं। भारतीय संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों के साथ कर्तव्यों को भी परिभाषित किया गया है।
वंचित वर्ग, सामाजिक, आर्थिक रुप से पिछड़े वर्ग का विशेष ध्यान रखा गया है और इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है कि उसे हर वो अधिकार मिले, जो समाज के सक्षम वर्ग को प्राप्त हैं, बशर्ते सत्ता में बैठे लोग, व्यवस्था संविधान की इस भावना को समझें और शब्द नहीं, नैतिकता के आधार पर सही-गलत के फैसले करें।
संविधान दिवस हमें याद दिलाता है कि हर व्यक्ति अपने देश के संविधान को लेकर शिक्षित हों, जागरूक हो, उसे जाने और माने। आइए संविधान दिवस पर हम सब मिलकर यह संकल्प लें कि संविधान के मूल्यों को जीवन में अपनाएंगे और भारत को एक सशक्त, समृद्ध और न्यायप्रिय राष्ट्र बनाएंगे।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं
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