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चुनाव कोई भी जीते, बिहार में यही इको सिस्टम चलता रहेगा

खरी-खरी            Oct 24, 2025


डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी।

टी 20 मैच में उतना मज़ा नहीं आ रहा, जितना बिहार चुनाव में आ रहा है !

तेजस्वी यादव महागठबंधन की तरफ से मुख्यमंत्री का चेहरा हैं। प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष फरमा रहे हैं कि वे 'महागठबंधन' नहीं, 'महालट्ठबंधन' के प्रत्याशी हैं।

देश की नौकरशाही में भरपूर योगदान देनेवाला बिहार फिर जाति, धर्म, पीडीए, एमवाय, आलू, लालू और चालू के नाम पर चुनाव मैदान में है। आलू का मतलब कृषि उत्पादन कम, बालू का मतलब खनिज संसाधन ... और लालू मिसरूल का प्रतीक थे। 'लागे कइलू जवानी आपन तू सेल, अभी ले महके करुआ तेल' और 'तेल पिलावन, लाठी भजावन'. जैसी बातें भी फ़िज़ाओं में तैर रही हैं।

बिहार चुनाव तो ड्रामा, प्रॉमिसेस और तीखे तंजों का खजाना है। मीडिया भी दो भागों में बंटा हुआ है - गोदी मीडिया और बोटी मीडिया।  मीडिया के अपने तर्क, मुहावरे और भक्तिपद हैं। वादों और दावों की बौछारें हो रही हैं। पीके के सुतली बम टिकली की तरह चट चट करने लगे।  चुनाव मैदान में गायकों, अभिनेताओं, कॉमेडियंस आ खड़े हुए।

बिहार, जो इतिहास, संस्कृति, और आधुनिक चुनौतियों का अनोखा मेल है। जहाँ की छठ पूजा का उत्साह हो, नालंदा का गौरव या पॉलिटिक्स का ड्रामा - हर चीज़ में एक कहानी है। पटना का मरीन ड्राइव और सब्जी मंडी का स्टार्टअप हब बनना बिहार के नये  चेहरे को दिखाता है।

बिहार का मतलब सस्ती लेबर फ़ोर्स नहीं, उत्पादक शक्ति होना चाहिए। लेकिन बिहार जातिवाद का ईंधन बन गया है।

बिहार में में कथित अगड़ी जातियां, पिछड़ा वर्ग, अति पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पीडीए शामिल हैं। लगता है कि बिहार में नागरिक वोट नहीं देंगे - बामन, बनिया, यादव, भूमिहार, राजपूत, कायस्थ, कुर्मी, कोइरी, निषाद, मल्लाह, कोरी, कहार, माली, नाई, दुसाध, रैदास, मुसहर, संताल, थारू, उराव, पसमांदा, शेख, अंसारी आदि ही वोट देंगे और पार्टियों ने जातिवाद की छलनी में छान छानकर उम्मीदवार छांटें हैं।

विकास की बातें हो रही हैं, लेकिन विकास का ब्लूप्रिंट किसी के पास नहीं है। धन बल, जाति बल, गुंडा बल को प्रोटीन डाइट दिया जा रहा है और सही या गलत का पैमाना केवल जाति को बना दिया गया है। भ्रष्टतम नेता जाति के दर्प से चमक रहे हैं। उनकी बेईमानी, अन्याय, अक्षमता को भुलाकर मंगल गीत गाए जा रहे हैं। 

चुनाव में कोई भी जीते, बिहार में यही इको सिस्टम चलता रहेगा। एक-एक करके लगभग सभी नेताओं को देखा है - सभी एक ही हमाम के साथी हैं। 

अगर चुनाव के बाद बिहार बदलेगा तो सबसे ज्यादा ख़ुशी मुझे ही होगी।

 


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