राकेश दुबे।
अयोध्या किले में बदल दी गई है। धर्म संसद, शिव सेना और राम भक्त मन्दिर निर्माण की तारीख मांग रहे हैं। जिन सरकारों को तारीख बताना है, वे चुप है। जिससे जल्दी तारीख की उम्मीद थी उस सर्वोच्च न्यायालय ने लम्बी तारीख देते हुए अपना नजरिया साफ कर दिया है कि उसकी प्राथमिकता अलग है।
अयोध्या के समग्र निवासी जिनमें सब शामिल हैं, सोच रहे हैं कि पांच राज्यों में चुनाव और २०१९ के लोकसभा चुनाव से पहले “राम मंदिर” का निर्माण का मुद्दा क्यों गरमाया हुआ है? अयोध्या के साथ देश का शांत वातावरण कोलाहल में बदल रहा है आगे क्या होगा ? राम जाने!
प्रश्न यह है कि क्या भाजपा और कांग्रेस इन चुनावों में हिंदुत्व के आसरे है, यह शोध का विषय नहीं जग जाहिर है ? एक पक्ष में हवा दे रहा है तो एक इससे संभावित चुनावी परिणामों डरकर इसे टालना चाहता है।
यह टालमटोल विश्लेषण का विषय हो सकता है। इन दोनों के अलावा अब इस अयोध्या में राम मंदिर के सहारे शिवसेना अब महाराष्ट्र के बाहर निकलने की तैयारी कर रही है। उसका अयोध्या कूच इसी रणनीति का अंग है। शिव सेना महाराष्ट्र में अब भाजपा के बाद नंबर-२ पार्टी बनकर नहीं रह सकती है। इसलिए अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए अब शिवसेना ने अयोध्या का मुद्दा थामा है।
दशहरे से ही २५ नवम्बर के हालात की भूमिका बनने लगी थी। दशहरे के मौके पर शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को अयोध्या जाने की घोषणा करते कि उससे पहले ही संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मंदिर निर्माण के लिए कानून बनाने की मांग कर दी थी। मोहन भागवत के इस बयान ने उद्धव ठाकरे की रणनीति को साफ़ कर दिया था।
संघ की यह मांग स्वभाविक थी और इसके बाद से उद्धव ठाकरे के निशाने पर संघ प्रमुख मोहन भागवत भी आ गए और अयोध्या कूच के साथ वो सब जुड़ गया जो आस्था से इतर होता है और राजनीति कहलाता है।
इसी के चलते संघ की अनुषांगिक संगठन विश्व हिंदू परिषद ने भी आज [२५ नवंबर] धर्म संसद का ऐलान कर दिया और पूरे देश से लाखों कार्यकर्ताओं को अयोध्या पहुंचने ही नहीं लगे पहुँच गए। जितनी तेजी से उद्धव ठाकरे पिछले दिनों अयोध्या आने के पहले बयान और कार्यक्रम कर रहे थे। उससे तेज़ विश्व हिन्दू परिषद भी उत्तर प्रदेश और आसपास के राज्यों में सक्रिय थी।
धर्मसंसद को देखते हुए शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे का एक दिन पहले ही यानी २४ नवंबर को अयोध्या पहुंचे और यह प्रमाणित करने का प्रयास किया कि यह उनका ही कार्यक्रम है। अयोध्या में रैली साधु-संतों के साथ बैठक सब कुछ किया। चूँकि उत्तर प्रदेश में शिवसेना का कॉडर इतना मजबूत नहीं है इसलिए ठाकरे के साथ महाराष्ट्र से शिवसैनिक भी आये हैं और बाबरी ढांचे के ध्वंस में अपनी वीरता का बखान कर रहे है। इस बार मुद्दा विध्वंश नहीं निर्माण है।
सब इस मुद्दे को अपनी तर्ज भुनाने को आमादा है। किसी की मांग अध्यादेश है, कोई कानून चाहता है तो किसी का निशाना २०१९ है। मुद्दे को सब जिन्दा रखना चाहते हैं। निराकरण चाहने वाले रामभक्त और रामलला बैचेन है। १९९२ के बाद अयोध्या एक बार फिर किले में तब्दील है, आगे क्या होगा राम जाने ?
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और प्रतिदिन पत्रिका के संपादक हैं।
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