राकेश दुबे।
भोपाल शहर में पानी –पानी हो गया है, बारिश का यह मिजाज भोपाल ने पहले नहीं देखा।
मध्यप्रदेश के कुछ जिलों के लिए मौसम विभाग ने फिर रेड अलर्ट जारी किया है।
आज यह सवाल मौजूं है , मौसम का मिजाज इतना क्यों बिगड़ता है ? गर्मी में तापमान का रिकार्ड तोड़ बढना |बारिश का इतना बरसना क्यों?
जलवायु वैज्ञानिकों का कहना है कि हाल के वर्षों में यह चिंताजनक रुझान बढ़ता गया है और जलवायु परिवर्तन के कारण ऐसा होना अपेक्षित भी है।
पूरे भारत को इस साल गर्मी के मौसम में असहनीय लू का सामना करना पड़ा था और अब भारी वर्षा और बाढ़ बिगड़ती जलवायु को इंगित करती हैं, मौसम के मिजाज में लगातार गंभीर बदलाव हो रहे हैं। ये जलवायु समस्याएं शासन के लिए चुनौती बनती जा रही हैं।
ऐसे में जो आधिकारिक प्रतिक्रियाएं होती है, वे या तो अधिक समस्याएं खड़ी करती हैं या ठीक से चिंताओं पर विचार नहीं करतीं।
सरकार ‘व्यापक जनहित’ को आधार बनती है यह फार्मूला प्रकृति पर लागू नहीं होता।
अस्पष्ट अर्थ वाली धारणा ‘व्यापक जनहित’ की तरह किसी कामकाज का निर्धारण उसी दृष्टि से होगा, जिससे स्थिति को देखा जायेगा।
राजनीतिक संदर्भ में, और इसके कारण आर्थिक दृष्टि से देखते हुए, जनहित में लिया गया कोई भी फैसला उन निर्धारित संवेदनशील क्षेत्रों में बसने वाले लोगों के जीवन को पूरी तरह बदल सकता है।
उदाहरण के लिए, बड़े शहरों की सीमा पर झुग्गी कॉलोनियां और उसके निकट बनी इमारतें हैं| वे वर्षों से वहां हैं और उन्हें दूसरी जगह नहीं बसाया जा सकता है।
जिन मामलों में आबादी कम है और बिखरी हुई है, वहां रह रहे लोग सरकारी अधिकारियों की दया पर हैं।
निर्धारित क्षेत्रों में जैव विविधता का संरक्षण, पेड़ों का होना, वन्य जीव और इनके कारण कॉर्बन डाईऑक्साइड में कमी हमारे सामने खड़े जलवायु संकट से लड़ने के लिए जरूरी हैं।
हमें वनों के व्यापक प्रभाव को भी नहीं भूलना चाहिए| जंगलों की बर्बादी को मानवता के विरुद्ध अपराध है, जो निरंतर हो रहा है। जैव विविधता में आमतौर पर 180 देशों की सूची में भारत 179 वें पायदान पर है।
इस सूचकांक के निर्धारण में पौधों व जीवों के निवास स्थान के लोप होने, वनों का क्षरण होने तथा क्षेत्रीय विविधता के बचाव में बाधा आदि के प्रभावों का संज्ञान लिया जाता है।
भारत ने इस सूचकांक को यह कहते हुए खारिज कर दिया है कि यह ‘अनुमानों और अवैज्ञानिक तरीकों' पर आधारित है। भले ही इस बात में कुछ सच हो, पर यह भी रेखांकित किया जाना चाहिए कि सूचकांक को खारिज तभी किया गया, जब देश को लगभग सबसे नीचे रखा गया।
इस चुनिंदा असहमति का खतरनाक संदेश निकलता है। जिसका प्रमाण मौसम का यह बदलाव है।
अभी चुनौती यह है कि हम किस प्रकार अभी प्रभावित और बाद में प्रभावित होने वाले लोगों की चिंता के समाधान के लिए क्या कर पाते हैं ?
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