राकेश दुबे।
अभी भी आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और बिहार में नकदी का संकट बरकरार है। ये वे नाम हैं, जहां यह नकदी और नये नोटों की मांग तेजी से बढ़ी थी। सरकार की बात पर यकीन किया जाए, तो नगदी का यह संकट कुछ दिनों में खत्म हो जाएगा।
लेकिन अगर आंकड़ों का विश्लेषण किया जाए, तो पता पडे़गा कि नगदी की आपूर्ति में कमी नवंबर 2016 से ही बनी हुई है, जब देश में 1000 और 500 रुपये के पुराने नोटों को बंद किया गया था।
नोटबंदी के समय जितनी मुद्रा के नोट बाजार में थे,फरवरी 2018 में वे फिर से उसी स्तर पर पहुंच गए। नोट बाजार में पर्याप्त थे या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि नोटबंदी के बाद लोगों की नगदी के प्रति प्राथमिकता किस स्तर तक कम हुई।
अगर नोटबंदी नहीं हुई होती, तो इस वक्त तक भारतीय अर्थव्यवस्था में पचास खरब रुपये के अतिरिक्त नगदी नोट प्रचलन में आ चुके होते।
यानी अगर कैशलेस या इलेक्ट्रॉनिक विनिमय अभी इस स्तर तक नहीं पहुंचा है, तो इसका मतलब है कि अर्थव्यवस्था में नगदी की कमी है।
इसका विश्लेष्ण ऐसे भी हो सकता है, उपलब्ध दो और सूचकांक हैं, जिनसे हम यह समझ सकते हैं कि नगदी मुद्रा का भंडार क्या इतना है कि वह अर्थव्यवस्था की मांग को पूरा कर सके? इसमें से एक सूचकांक है एटीएम से निकाला जाने वाला धन, जिसे हम कुल नगदी नोटों के प्रतिशत के रूप में देखेंगे।
दूसरा सूचकांक है बैंक में जमा होने वाले धन की वृद्धि दर। इनमें से पहला आंकड़ा हमें यह बताएगा कि अर्थव्यवस्था में रोजमर्रा की नगदी की मांग कितनी है?
जबकि दूसरे आंकड़े से इस बात का अंदाज मिलेगा कि लोग कहीं बैंकिंग व्यवस्था के बाहर नगदी की जमाखोरी तो नहीं कर रहे?
इन दोनों ही तरह के आंकड़ों पर नोटबंदी के बाद हुई उथल-पुथल का असर पड़ा है। नोटबंदी के बाद नए नोटों को जारी करने की प्रक्रिया भले ही पूरी हो गई हो, लेकिन ये दोनों ही आंकड़े उस स्तर तक नहीं पहुंच सके, जहां वे नोटबंदी से पहले तक थे।
फरवरी 2018 में एटीएम से नगदी की जो निकासी हुई, उसके प्रतिशत की अगर हम नोटबंदी पूर्व के उसी दौर से तुलना करें, तो वह पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा थी।
हमें यहां पर यह भी समझना होगा कि अगर एटीएम काम नहीं कर रहे हैं,तो लोग धन की निकासी नहीं कर पाएंगे। इसलिए हमें जो निकासी के आंकडे़ मिलेंगे, वे सामान्य से काफी कम होंगे। इसी तरह, हम देखें तो बैंक में जमा होने वाले धन की वृद्धि दर अभी भी नोटबंदी से पहले की वृद्धि दर से काफी नीची है।
लोग बैंकों में पैसा जमा करने की बजाय उसे अपने पास रखने में ही भलाई समझ रहे हैं। इसका एक अर्थ यह भी हो सकता है कि अपनी आर्थिक गतिविधियों के लिए धन को करों से बचाने के लिए लोग इसे बैंकों के हवाले नहीं करना चाहते।
संभावित कारणों की एक सूची भी है, जिनके कारण नगदी की मांग काफी बढ़ जाती है। ये कारण हैं चुनाव, त्योहार, केंद्र और राज्यों की विभिन्न सामाजिक कल्याण योजनाएं वगैरह। इन कारणों का असर कुछ खास क्षेत्रों में दिख सकता है।
इसी इंटरव्यू में उन्होंने यह आकलन भी बताया कि अगर लोग नोटबंदी से पहले की नकदी की प्राथमिकताओं के स्तर पर लौट गए होते, तो भी नगदी की मौजूदा आपूर्ति उनकी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं थी।
अभी मुद्रा आपूर्ति की जो स्थिति है, उसमें हालात और बिगड़ सकते हैं। अभी यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है कि नगदी की इस कमी का कारण व्यवस्थागत है या फिर संरचनात्मक। अगर पहला कारण है, तो इसे आसानी से सुलझा लिया जाएगा।
बस करना यह होगा कि जिन राज्यों में नकदी पर्याप्त या जरूरत से ज्यादा मात्रा में उपलब्ध है, वहां से उसे उन राज्यों में भेज दिया जाए, जहां इसकी भारी किल्लत है। लेकिन अगर इसका कारण संरचनात्मक है, तो फिर हमें नगदी की आपूर्ति काफी बड़े स्तर पर बढ़ानी होगी।
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