छतरपुर से धीरज चतुर्वेदी।
जब मंच पर केन्द्रीय मंत्री सहित मुख्यमंत्री का आगमन होना हो और उस मंच से बुंदेलखंड के मजदूरों के पलायन को शौकिया बताया जाये तो क्या इसे भाजपा का नजरिया माना जायेगा ? क्योकि जब पूर्व मंत्री हरिशंकर खटीक ने सरकार के कसीदे पढने के चक्कर में मजदूरो के पलायन को उनका शौक करार दे दिया। यह वाकया 31 जनवरी को केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी और मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान द्वारा नौगांव में आयोजित फोरलेन शिलान्यास समारोह के दौरान का है।
सच तो यह है कि किसानों के नाम पर सरकारी लूट का परिदृश्य सभी जानते हैं। किसान को खाद-बीज तक नकली दे दिया जाता है तो मुआवजे के नाम पर घोटाले सामने आते हैं। फसल बीमा ने सरकार की जगहसाई तक कर दी कि चार रूपये का चैक देकर किसान को राहत दे दी गई। वहीं कई किसान इस बीमा राशि को पाने के लिये ज्ञापन देते फिर रहे है। सिचांई योजनाओ में घोटालो की पोल स्वयं भाजपा के विधायक खोलते नजर आते है। किसानो की आड में लूटखसोट का परिणाम है कि बुंदेलखंड में खेती का रकवा कम होता जा रहा है। अन्नदाता की मजबूरी ने उसे मजदूर बना दिया है। जो परदेश जाकर अपनी तकदीर लिखने पर विवश है।
सुनकर आश्चर्य होगा कि बुंदेलखंड के सागर संभाग में खेती का रकवा कम होता जा रहा है। किसानी घाटे का सौदा साबित हो रही है इस कारण अन्नदाता का मोहभंग हो रहा है। सरकार के आंकडे गवाह है इस सच के कि संभाग के पांच जिलो में कुल काश्त रकवा 1863.32 हजार हेक्टेयर के करीब 70 प्रतिशत भाग पर ही बुबाई होती है। वहीं मात्र 1176.1 हजार हेक्टेयर ही सिचिंत क्षेत्र है। इधर सरकार यह दावा करती है कि सिचिंत क्षेत्र बढने से खेती बुबाई का रकवा बढ रहा है। वहीं आम बजट में भी केन्द्र सरकार ने किसान की आय दुगना करने दम भर रहा है। सरकारी दावो के अनुसार बुंदेलखंड में सिचाई का रकवा बढा है। वहीं दूसरी ओर खेती का रकवा कम होता जा रहा है। हासिल आंकडो के अनुसार 2015-16 में रबी फसल का कुल लक्ष्य 1604 हजार हेक्टेयर का था पर 1041.52 हे। में ही बुबाई हो सकी। सीधा अर्थ कि लक्ष्य से 35 प्रतिशत कम बुबाई का आंकडा रहा।
इसी तरह 2013-14 में 1664.40 लक्ष्य था तो 1633.01 हजार हेक्टेयर में ही बुबाई हुई। 2014-15 में भी कुछ यही हाल रहे जब 1657 हजार हेक्टेयर के बदले मात्र 1483.19 हजार हेक्टेयर में किसानो ने फसल की बुबाई की थी। बुंदेलखंड के सागर संभाग के पांच जिलो छतरपुर, पन्ना, दमोह, टीकमगढ और दमोह में अमुमन गेहू की फसल किसानो की पहली पंसद होती है। अब गेहू के उत्पादन और बुबाई के आंकडो पर नजर डाली जाये तो यह चितां से कम नही है। वर्ष 2011-12 में 695.80 हजार हे. में गेहूं की बुबाई हुई थी वही 2012-13 में 701.40, 2013-14 मेें 746.20, 2014-15 में 673.56, 2015-16 में 347.70 हजार हेक्टेयर एंव 2016-17 में 498.14 हजार हे. में ही गेहू बोया गया। इस वर्ष बारिश औसत से अधिक हुई लेकिन खेती का रकवा लक्ष्य से 82 प्रतिशत की ही पूर्ति कर सका। कृषि विभाग ने 2016-17 में रबी फसल का लक्ष्य 1600.67 हजार हेक्टेयर रखा था पर 1313.67 हजार हेक्टेयर पर ही बुबाई हो सकी। अच्छी बारिश और सरकार के सिचिंत रकवा बढ़ने के दावों के बाद भी खेती का रकवा कम होना इस लाके के लिये चिंता का विषय है। स्वयं अन्नदाता के पास ही रोटी खाने के लाले पडते जा रहे है।
किसान को लागत के हिसाब से फसलों की कीमतें ना मिलने से वह कर्ज में डूबता जा रहा है। खेत की जुताई, बुबाई से लेकर खाद-बीज की जुगाड में किसान टूट जाता है। साथ ही परिवार के विस्तार के साथ खेती पर निर्भरता के बंटवारे के कारण भी पलायन की मजबूरी है। परिवार के कुछ सदस्य खेती पर निर्भर हो जाते हैं तो कुछ परदेश जाकर मजदूरी करने लगते है। तभी बुंदेलखंड से पलायन का आंकडा प्रतिवर्ष बढता ही जा रहा है। परदेश जाकर मजदूरी करने वाले मूलतः किसान को उसकी मेहनत के बदले वाजिब मजदूरी मिलती है। जो उसकी जिदंगी को स्थायित्व प्रदान करती है। दूसरी तरफ खेती के नाम चढता कर्ज है और सरकारी योजनाओ की लूट का वह सच है जिससे तंग आकर ही बुंदेलखंड में कुल काश्त रकवे के बजाय खेती का रकवा कम होता जा रहा है। इन मजबूरियो में बंधा अन्नदाता मजदूर बनकर पलायन करने पर विवश होता है तो प्रजातंत्र में जिन खद्दरधारियों पर उनकी मजबूरी पर मरहम लगाने की जिम्मेदारी है वही मजदूरों का उपहास उड़ाते नजर आ रहे हैं।
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