राघवेंद्र सिंह।
जो मर कर भी उन्हें जिंदा रखता है जो हर घड़ी उसे मारने की जुगत में रहते हैं... उद्योग और नोकरशाही के लिए खजाना खोला जाता है और किसान को दिन-रात की मेहनत के बाद उसके गेहूं-चावल दाल का लागत मूल्य भी नही। जबकि उसकी मेहनत से उद्योग चलते हैं , कर्मचारियों को तन्खवाह मिलती है।
एक साल फसल कमजोर आती है तो ग्रोथ रेट धड़ाम से नीचे गिरती है। तो भला बताइए किसान को गेहूँ-चना, चावल- दाल , साग भाजी ,फल फूल आदि का लागत मूल्य क्यों नही मिलना चाहिए..?
क्या इसके लिए भी उसे जान देनी और लेनी पड़ेगी..? उस पर शक करने वाले एहसान फरामोश हैं .. किसानों को मारने और खेती को खत्म करने की साजिश हो रही है देश मे... वो तो किसान ही है कि मर मर कर फिर जी उठता है अपने और अपने देश के लिए... जो सरकार में हैं उन्होंने वादा तो किया था लागत मूल्य में 50 फीसदी मुनाफा जोड़ कर बाजार मूल्य देने का, कर्ज माफ करने का।
सत्ता में आते ही सब भूल गए..! नारा तो लगाते हैं " जो कहते हैं वो करते हैं " मगर कथनी और करनी एक कहां..? पूछ रहा है अन्नदाता...है कोई उत्तर...।
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