राघवेंद्र सिंह।
सत्ता हासिल करने के लिये बातें और वादे किये जाते हैं मगर मध्यप्रदेश में सरकार में बने रहने के वास्ते पंचायतों के पिटारे के बाद सियासी टोटकों का दौर शुरू हो गया है। नमामि देवी नर्मदे जैसी यात्राओं से लेकर मिले बांचे जैसे अभियान इसके अहम हिस्से माने जा सकते हैं। विधानसभा चुनाव 2018 दिसंबर में होना है मगर लगता है मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की दिलचस्पी मंत्रालय में बैठ गुड गवर्नेंस के बजाय नर्मदा माई की परिक्रमा और स्कूल में मास्टर बनने जैसे दिखावटी काम में ज्यादा है। इससे सिस्टम तो सुधरने से रहा लेकिन ये टोटके चल गये और कांग्रेस सोती रही तो चौथी बार फिर शिवराज सरकार जरूर बना सकते हैं। राजनीति में सत्ता ही सफलता का पैमाना जो है।
सूबे में एक तरफ नर्मदा माई को प्रदूषण व अवैध खनन से बचाने के लिये मुख्यमंत्री यात्रा कर रहे हैं तो दूसरी तरफ उनके विधानसभा क्षेत्र में रेत पर डाका डालते डम्पर पकड़े जा रहे हैैं दोनों काम एक साथ ... नर्मदा बचाने का भी और माई को लूटने का भी। भाजपा और सरकार में इन दिनों एक शेर खूब चल रहा है.....
यहां हर काम सलीके से बांट रखा है
ये आग लगायेंगे और वो पानी डालेंगे।।
ये भ्रष्टाचार करेंगे और वो पर्दा डालेंगे
मसलन हमारे ही लोग अवैध रेत निकालेंगे, भ्रष्टाचार करेंगे, माफियागिरी का विस्तार करेंगे और हमारे ही नेता उसे रोकने का अभियान चलायेंगे। नसरूल्लागंज , बुधनी क्षेत्र में नर्मदा से सैकड़ों ट्रक रेत का दिन रात अवैध खनन परिवहन हो रहा है अरबों रुपये का कारोबार 24 घंटे दस साल से परवान चढ़ रहा है। इसमें भाजपा के कम सरकार के निकट के लोगों का ज्यादा बोलबाला है। वो तो भला हो खनिज अधिकारी रजनी पांडे का जिसने महिला होने के बाद भी सत्ता के शीर्ष से उनकी ही मांद में रेत माफिया से टकराने का साहस किया। मगर सच कहने और लिखने वालों का इस कदर टोटा पड़ा है कि अंधेरे में उजाला करने वाली रजनी को शाबासी देने कोई सामने नहीं आया। पन्ना में अलबत्ता माफिया की कमर तोड़ने का अभियान कलेक्टर-एसपी ने शुरू किया। सैकड़ों ट्रक पकड़े हैं उन्होंने। एसपी इकबाल रियाज और कलेक्टर को बधाई। मगर खरगौन कलेक्टर अशोक वर्मा शौचालय नहीं बनने के सवाल पर किसान को दो थप्पड़ मारने की बात करते हैं। नदियों में रेत का डाका डाला जा रहा है, सवाल करने पर कलेक्टर थप्पड़ मार रहे हैं, जेल में डाल रहे है।

स्कूल में बच्चों को गिनती पहाड़े नहीं आ रहे हैं। पढ़ाने के लिये स्कूलों एवजी मास्टर और दफ्तरों में बाबू काम कर रहे हैं। पहले कांग्रेस सरकार ने ठेके पर सड़क बनाने, प्राइवेट अस्पतालों और स्कूल कालेज का धंधा शुरू किया जिसे भाजपा सरकारें परवान चढ़ा रही हैं। पहले सरकारों ने काम ठेके पर दिये और आने वाले सालों में सरकारें ठेके पर जाती दिखें तो किसी को हैरत नहीं होगी।
असफलताओं को छिपाने के लिये निर्णय करने और कानून पर अमल कराने के बजाय सरकार ने प्राथमिकता बदली है। वह सिस्टम को सुधारने के बजाय संवाद करने यात्राओं के टोटके कर रही है। पहले हर वर्ग की पंचायत करने का पिटारा खोला था, उससे एक चुनाव जीता। फिर जनसंवाद से एक चुनाव जीता, अब नर्मदा की शरण में परिक्रमा, पेड़ लगाने, पौधरोपण के पैसे देने की फसल लगाकर 2018 का चुनावी फसल काटी जा सकेगी। कितना अच्छा हो कि एक दिन पढ़ाने से शिक्षा सुधर जाये, एक दिन अस्पताल का औचक निरीक्षण करने से बीमारों इलाज होने लगे..... अभी तो ऐसे ही हो रहा है जादूगर की तरह खुल जा सिम सिम.... न भूख न भ्रष्टाचार, हम देंगे ऐसी सरकार जैसे नारों पर सुशासन देने वाली सरकार केवल भाषण, नारों और वादों के टोकटों पर सवार है। हम डंडा लेकर निकले हैं, किसी बेईमान, भ्रष्ट को छोड़ेंगे नहीं..... देखते हैं आगे-आगे होता है क्या। अभी तो सब काम सलीके से बांट रखा है ये माल कमायेंगे, वो बैंकों में, खातों में ठिकाने लगायेंगे। कटनी हवाला कांड और सहकारी बैंकों में नोटबंदी के दौरान जमा अरबों रुपये इसके उदाहरण हैं।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं यह आलेख उनके फेसबुक वॉल से लिया गया है।
                  
                  
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