राकेश दुबे।
बहुत सारी प्रतिक्रियाएं मिली,पेंशन के मुद्दे पर लिखने से। सामाजिक सुरक्षा पेंशन, वृद्धावस्था पेंशन पाने वालों से लेकर , सरकारी नौकरियों से रिटायर होने वाले कर्मचारी और सेना से रिटायर होने वाले सैनिकों ने एक स्वर में कहा – सरकार !
हमारी पेंशन पर बुरी नजर न लगायें हमें मिलता ही क्या है ? कुछ ने तो मेरे ज्ञान में इतनी वृद्धि कर दी की लगने लगा नेताओं को मिलने वाली पेंशन का कोई मुकाबला नहीं है। सारी नौकरी-चाकरी इसके आगे फीकी है।
ज्ञान मिला कि संसद सदस्य वेतन, भत्ता और पेंशन अधिनियम 1954 के तहत सांसदों को पेंशन मिलती है। एक पूर्व सांसद को हर महीने 20 हजार रुपये पेंशन मिलती है।
जो कई रिटायर अधिकारी और कर्मचारियों के लिए सुलभ नहीं है। 5 साल से अधिक होने पर हर साल के लिए 1500 रुपये अलग से दिए जाते हैं योगी आदित्यनाथ कमेटी ने सांसदों की पेंशन राशि बढ़ाकर 35 हजार रुपये करने की सिफारिश की है।
आज की तारीख में पेंशन के लिए कोई न्यूनतम समय सीमा तय नहीं है। यानी कितने भी समय के लिए सांसद रहा व्यक्ति पेंशन का हकदार है।
एक और अजीब विरोधाभासी नियम है। सांसदों और विधायकों को डबल पेंशन लेने का भी हक है। कोई व्यक्ति पहले विधायक रहा हो और बाद में सांसद भी बना हो तो उसे दोनों की पेंशन मिलती है। अन्य सरकारी कर्मचारी–अधिकारी यह सुविधा प्राप्त नहीं कर सकते।
पति, पत्नी या आश्रित को फेमिली पेंशन की सुविधा भी है। सांसद या पूर्व सांसद की मृत्यु पर उनके पति, पत्नी या आश्रित को आजीवन आधी पेंशन दी जाती है। मुफ्त रेल यात्रा की सुविधा दी जाती है। पूर्व सांसदों को किसी एक सहयोगी के साथ ट्रेन में सेकेंड एसी में मुफ्त यात्रा की सुविधा है। अकेले यात्रा पर प्रथम श्रेणी एसी की सुविधा है।
सांसदों के अलावा विधानसभा और विधान परिषद के सदस्यों को भी पेंशन मिलती है।
हमारे देश में जनप्रतिनिधियों को दी जाने वाली पेंशन की व्यवस्था अपने आप में अजीबोगरीब है। न सिर्फ पेंशन वरन जनप्रतिनिधियों के लिए वेतन-भत्ते निर्धारित करने की प्रक्रिया भी अनूठी है। संविधान में सांसद, विधायक,विधान परिषद सदस्य, स्पीकर, डिप्टी स्पीकर, प्रधानमंत्री,मुख्यमंत्री, मंत्रियों के वेतन-भत्ते और अन्य सुविधाओं के संबंध में निर्णय लेने का अधिकार संसद, विधानसभा और विधान परिषद को दिया गया है।
दुनिया के अनेक देशों में जनप्रतिनिधियों को वेतन व अन्य सुविधाएं मिलती हैं,परंतु उन्हें निर्धारित करने का अधिकार अन्य संस्थाओं को दिया गया है। ब्रिटेन दुनिया का सबसे पुराना प्रजातंत्र है, वहां के सांसदों को वेतन व पेंशन की सुविधा है, परंतु वहां सांसदों का वेतन, पेंशन निर्धारित करने के लिए एक आयोग का गठन होता है। इस आयोग में विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को शामिल किया जाता है।
वहां इस आयोग को स्थायी रूप से यह आदेश दिया गया है कि सांसदों को इतना वेतन और सुविधाएं न दी जाएं जिससे लोग उसे अपना करियर बनाने का प्रयास करें और न ही उन्हें इतना कम वेतन दिया जाए जिससे उनके कर्तव्य निर्वहन में बाधा पहुंचे।
आयोग को यह भी निर्देश है कि सांसदों के वेतन-भत्ते निर्धारित करते समय देश की आर्थिक स्थिति को भी ध्यान में रखा जाए। सभी परिस्थितियों पर विचार कर आयोग अपनी सिफारिशें करता है, फिर इन सिफारिशों पर वहां का हाउस ऑफ कॉमंस (वहां की लोकसभा) विचार करता है।
अभी ऐसा भी हुआ आयोग ने वहां के सांसदों के वेतन में बढ़ोतरी की सिफारिशें कीं, परंतु प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि वे वेतन में बढ़ोतरी की सिफारिशों को मंजूर नहीं कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री के प्रस्ताव का ब्रिटेन के प्रतिपक्ष नेता ने तहेदिल से स्वागत किया और कहा कि देश की नाजुक आर्थिक स्थिति को देखते हुए सांसदों के वेतन में वृद्धि किसी भी दृष्टि से उचित नहीं हैं और : वेतन में वृद्धि का प्रस्ताव वापस ले लिया गया।
क्या ऐसा दृश्य कभी हमारी संसद और विधानसभाओं में देखने को मिलेगा? भारत में तो ऐसा विधेयक चंद सेकंडों में पारित हो जाता है? सदन कोई भी हो विधेयक सांसदों और विधायकों के वेतन-भत्ते निर्धारित करने वाला होना चाहिये। इससे इतर और कोई भी पेंशन हो राशि सम्मान के साथ कहाँ मिलती है ?
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