साहब बहादुरों राजा के कोप से डरो, बैरीकेड के बाहर से दर्शन करके बताओ

खरी-खरी            Jul 30, 2023


 नितिनमोहन शर्मा।

लाखों भक्तों के लिए बेरिकेड्स ठोक बना दिये 6-8 फीट के कोंदवाड़े_

उज्जैन पहुंचने वाले हर श्रद्धालुओं बना दिया जाता है बंधक, जहाँ खड़ा बस वही से लौटने की मजबूरी_

जिनके जिम्मे अराजकता उजागर करने की जिम्मेदारी, वे भी वीआईपी दर्जे में दर्शन कर रहे, भक्तों का दर्द कैसे जानेंगे_

सिहंस्थ पर्व पर भी इतनी सख्ती नही बरती जाती जितनी सवारी में दिखा रहे

मध्यप्रदेश के उज्जैन में सवारी दर्शन के नाम पर किये बंदोबस्त किसी दिन किसी बड़े हादसे का सबब बनेंगे। सवारी मार्ग को बेरिकेड्स से घेरकर लाखों श्रद्धालुओं को बंधक बनाया जा रहा हैं। इस पार से उस पार तो दूर, श्रद्धालु जहां फंस गया वहां से वह टस से मस नहीं हो सकता। उसके लिए

उज्जैन के अफ़सरों ने सवारी मार्ग के दोनों तरफ 6-8 फीट के कोंडवाड़े बनाये हैं। दम घोंटू ये कोंडवाड़े अब राजा महाँकाल की सवारी के लिए सज़ा बन गए हैं।

सवारी मार्ग पर जब सिर्फ सवारी को ही चलना हैं और किसी को नही तो फिर लाखों की भीड़ के लिए जगह ज्यादा होना चाहिए कि उन मुट्ठीभर लोगों के लिए जिन्हें सवारी के साथ चलना हैं?

कभी आम श्रद्धालुओं की तरह सवारी का दर्शन कर के देखना, पता चलेगा कि अब राजा महाकाल की सवारी का दर्शन मज़ा नही सज़ा बन गया हैं।

अरे ओ साहब बहादुरों, जरा आप भी बेरिकेड्स के बाहर से सवारी के दर्शन कर के बताओ न? पूरे सवारी मार्ग को जेलखाने में तब्दील करने वाले साहब बहादुरों एक बार तो बेरिकेड्स के पार जाकर उस व्यवस्था से दर्शन कर जानने की कोशिश की, जो आम भक्तों के लिए की हैं? अगर की होती तो पता चलता कि आप लोगो ने राजा महाकाल की नगरी में किस तरह की अराजक कुव्यवस्था, व्यवस्था के नाम पर की हैं।

7 से 8 फीट ऊंचे बेरिकेड्स लगाकर जो जेलखाने सवारी मार्ग के दोनों तरफ आप लोगों ने बनाये हैं, कभी उसमें फंसकर देखा कि वहां क्या हाल होता है भक्तों का? ये जो छ-आठ फीट के आप लोगों ने कोंडवाड़े बनाये हैं, इसमें फंसने के बाद महिला, बच्चों और बुजर्गो का क्या हाल होता है?

दम घुट जाए ऐसी कुव्यवस्था को आप व्यवस्था के नाम से लागू कर पीठ थपथपा रहे हो कि सवारी टाइम पर और निर्विघ्न निकल रही हैं।

सवारी तो टाइम पर निकलेगी ही न। सवारी मार्ग तो पूरा खाली ही रहता है। सरपट सवारी निकलने में कोई दिक्कत कहाँ? दिक्कत तो सवारी मार्ग के दोनों किनारे पर बुरी तरह से फंसे हुए भक्तों की है जिन्हें एक तरह से सवारी मार्ग पर बंधक बना दिया जाता है।

जो जहां खड़ा, वहीं का होकर रह गया। न इस तरफ से इस तरफ, न उस तरफ से इस तरफ वो आ सकता हैं। अगर गलती से कोई परिजन उस तरफ रह गया तो फिर आप करो इंतजार।

कितना भी गिड़गिड़ा लो कि साहब पत्नी बच्चे उस तरफ रो रहे हैं। कोई सुनवाई नहीं। जिन्हें सुनना है, उनकी चिंता का विषय आम श्रद्धालु नहीं, बस वो खास लोग हैं जो सवारी के साथ चलेंगे।

उनको कोई दिक्कत न हो, बस ये ही चिंता उस अमले की है जो अलग अलग रंग की जैकेट के साथ सेकड़ो की संख्या में सवारी मार्ग पर तैनात किए गए हैं।

भीड़ प्रबन्धन के नाम से सवारी मार्ग को जेल बनाने का प्रयोग करने वाले साहब बहादुरों को क्या इतनी भी समझ नहीं कि व्यवस्था लाखों श्रद्धालुओं के हिसाब से जुटाना चाहिए या सिर्फ उस हिसाब से कि सवारी टाइम पर मन्दिर पहुंच जाए बस और हम अपनी पीठ ठोककर जल्दी घर लौट जाएं।

आम जनता क्या कर लेगी? किसको अपनी परेशानी बताएंगी? बता भी देगी तो होना क्या हैं?

बेचारा श्रद्धा से उज्जैन आया भक्त, स्वयम को ही कोसता हुआ लौट रहा है। उज्जैन के लोग भी इस नई व्यवस्था से जबरदस्त दुःखी हैं लेकिन कर क्या सकते हैं? उज्जैन में भी फैसले, उज्जैन में बाहर से आये लोग ले रहे हैं। जिन पंडे पुजारियों, मन्दिर समिति पदाधिकारियों- सदस्यों, कांग्रेस भाजपा के नेता, विधायक पार्षदों को इस अराजकता के खिलाफ आवाज उठाना है, उन्हें तो सवारी मार्ग पर बतौर वीआईपी इजाज़त है, फिर कौन बोलेगा?

जिस मीडिया को ये सब उजागर करना है उसे भी सीधे मन्दिर परिसर, रामघाट से दर्शन की सुविधा हैं। आम जनता के बीच किसने वक्त गुजारा? वक्त गुजरा होता तो जरूर ये अराजकता सामने आती। लेकिन दूसरे दिन साहब बहादुरों के लाखो ने किये दर्शन जैसे जय-जयकारे के अलावा कुछ नहीँ।*

उज्जैन में जो भी कलेक्टर आता है वो पहले से ही सख्त सवारी बंदोबस्त को और कड़ा करता जा रहा है। इससे ये तय है कि आने वाले दिनों में "राजा" और "प्रजा" के बीच का ये फ़ासला और बढ़ना है।

बंदोबस्त के नाम पर सख्ती बरतने वाले अमले को ये रत्तीभर चिंता नहीं कि इससे उज्जैन का उत्सवी स्वरूप दांव पर लगता जा रहा है। हालात इस कदर खराब हैं कि लोगों ने परिवार सहित सवारी के दर्शन करने जाना बंद करना शुरू कर दिया है।

लोगों का कहना है कि इससे तो सोमवार को छोड़कर आना ही बेहतर है। क्या ढाई तीन लाख भक्त उज्जैन पहली बार आ रहे हैं?

सालों साल से ये जनसैलाब अपने आराध्य की एक झलक पाने जुटता है। सवारी जब आती थी तब रस्से प्रकट होते थे। सवारी को घेरे में ले लेते थे। सवारी निकली कि फिर पुरी सड़क श्रद्धालुओं की।

अब लाखों श्रद्धालुओं के लिए सड़क के दोनों ओर संकरे गलियारे हैं जिसमें अगर फंस गए तो पीने के पानी को तरस जाओ।

  

साहब बहादुरों! कम से कम राजा महाँकाल के कोप से तो डरो, प्रजा को तो आप घोलकर पी गए। इस पूरे उत्सव का मूल भाव भी नहीं पता क्या? ये साल में एक बार राजा का अपनी प्रजा के हाल जानने का उत्सव है और आप लोग बंदोबस्त के नाम पर राजा को उसकी निर्दोष प्रजा से दूर किये जा रहे हैं।

इतने ऊंचे बेरिकेड्स की दीवार बना दी गई है कि पालकी में सवार अपने इष्ट के दर्शन सड़क पर खड़ा भक्त कर ही नहीं सकता। पालकी तो मन्दिर समिति के लोगों से घिरी रहती है। बेरिकेड्स से सटकर पुलिस और नगर सुरक्षा समिति के लोग खड़े हों जाते हैं। जब तक ओटले या ऊंचाई पर आप नहीं खड़े हो तब तक एक झलक भी मुश्किल है। पहले क्या कम भीड़ उमड़ती थीं? लेकिन कभी भी पूरा सवारी मार्ग " भेरूगढ़ जेल" नहीं बनाया गया। तब क्या आज जेसे साहब लोग नही होते थे?

 

 



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